The new Nihangs: सिंघु बॉर्डर पर किसानों के प्रदर्शन के बाद निहंग सिख चर्चा में आ गए थे। सिख समुदाय के बीच स्वभाव से आक्रामक रुख रखने वाले इस विशेष तबके के सिखों को निहंग सिख कहते हैं। निंहग का फारसी भाषा में अर्थ होता है ‘मगरमच्छ’। यह अपनी आक्रामकता के कारण दुनियाभर में जाते हैं, लेकिन बदलते वक्त के साथ नए निहंग अब उस धारणा (स्टीरियोटाइप) को तोड़ रहे हैं, जिसको लेकर उनको अब तक जाना जाता रहा है।
निहंग सिखों में धर्म को लेकर कट्टरता आम सिखों की तुलना में अधिक होती है। सभी निहंग सिख संन्यासी जीवन और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। इनके धर्म चिह्न भी आम सिखों की तुलना में अधिक बड़े होते हैं और ये परंपरागत परिधानों में बड़े-बडे़ हथियार लेकर ही कहीं पहुंचते हैं। निहंग सिख नीला बाना (नीले रंग की पोशाक), एक कृपाण (तलवार), चौड़ी बेल्ट (कमर कस्सा) और गले में सुअर के दांत की माला पहनते हैं।
निहंग सिख की पोशाक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का अहसास कराती
एक लोकप्रिय ओटीटी ऐप में काम करने वाले जो अपना नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि उनका मानना है कि उनकी पोशाक, उनको महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का अहसास कराती है। यह याद करते हुए कि किस चीज ने उन्हें निहंग बनने के लिए प्रभावित किया, उन्होंने कहा, “यूनाइटेड किंगडम में पढ़ाई के दौरान (लगभग 10 साल पहले), मैंने ब्रिटिश सिख लड़कों को बनास पहने और कृपाण लिए देखा था। मैं इस बात से प्रभावित हुआ कि ब्रिटिश सिख समुदाय अपनी संस्कृति और जड़ों से कितनी गहराई से जुड़ा हुआ था। इसके बाद मैंने निहंग सिख का बाना (पोशाक) पहनना शुरू किया।
संगीत के छात्र साहिलदीप बताते हैं-
पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में संगीत के द्वितीय वर्ष के छात्र साहिलदीप सिंह कहते हैं कि उन्होंने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान निहंग बनने का फैसला किया। 20 साल के साहिलदीप ने कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान पुलिस लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं देती थी, लेकिन मैं हर दिन सभी बाधाओं को दरकिनार कर दरबार साहिब (स्वर्ण मंदिर) जाता था। दरबार साहिब में ही मेरी मुलाकात कुछ निहंगों से हुई थी। उन्होंने मुझे ‘निंहग’ बनने के लिए प्रेरित किया।
अपने पारंपरिक कपड़ों में घूमते हुए साहिलदीप पंजाबी यूनिवर्सिटी कैंपस में कई धारणाओं को तोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं। वो कहते हैं कि शुरुआत में जब कुछ छात्रों ने मुझे देखा तो उन्हें कुछ अजीब सा जरूर लगा, लेकिन कैंपस में मेरे पारंपरिक पहनावे पर कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। वो कहते वो किसी एक जत्थेबादी (संगठन) से नहीं जुड़े हैं। वो सभी से कुछ न कुछ सीखने के लिए विभिन्न सेंटर पर जाते हैं।
पिछले कुछ सालों से इन कारणों से चर्चा में रहे निहंग सिख
पिछले कुछ सालों में निहंग अक्सर गलत कारणों से सुर्खियों में रहे हैं। अक्टूबर 2021 में निहंगों के एक समूह ने किसानों के विरोध के दौरान सिंघु सीमा पर एक 35 वर्षीय व्यक्ति की हत्या की जिम्मेदारी ली। उस व्यक्ति ने कथित तौर पर सिख पवित्र पुस्तक का अपमान किया था। अप्रैल 2020 में निहंगों ने पटियाला में पंजाब पुलिस की एक पार्टी पर हमला किया था और तालाबंदी के बीच कर्फ्यू पास के लिए रोके जाने पर एक सहायक उप-निरीक्षक का हाथ काट दिया था।
लेखक जगदीप सिंह जानिए क्या कहते हैं?
राइटर जगदीप सिंह फरीदकोट कहते हैं, ये घटनाएं अक्सर समुदाय को लेकर एक गलत धारणा बनाती हैं। वो कहते हैं कि यह एक स्टीरियोटाइप है कि निहंग केवल लड़ते हैं। हर स्ट्रीम में निहंग विद्वान हुए हैं। वे गायक, लेखक, कवि और शिक्षक भी हैं, लेकिन दुनिया ज्यादातर उन्हें भूतकाल में फंसे सैनिकों के रूप में देखती है।
दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री कर रहे निक्का सिंह का मानना है-
अरविंदर सिंह, जिन्हें निक्का सिंह (25) भी कहा जाता है। वो पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री कर रहे हैं। उन्होंने निहंग कविताओं को लेकर एक एक किताब लिखी है। वो बताते हैं कि अरविंदर सिंह मेरे माता-पिता द्वारा दिया गया नाम है, जबकि निक्का सिंह मुझे पंथ (एक निहंग समुदाय) द्वारा दिया गया नाम है। साल 2012 के होला मोहल्ला के दौरान निहंग बनने के लिए प्रेरित किया गया था, जो 17 वीं शताब्दी में 10वें सिख गुरु गुरु गोबिंद सिंह द्वारा शुरू किया गया तीन दिवसीय उत्सव था। निक्का सिंह कहते हैं कि मुझे यह पता चला कि एक बाना सिर्फ एक वस्त्र नहीं है बल्कि गुरु गोबिंद सिंह का आशीर्वाद है।
उन्होंने कहा, “कई लोग सोचते हैं कि निहंगों और विश्वविद्यालयों में कुछ भी समान नहीं है। सच तो यह है कि निहंगों ने शिक्षकों की भूमिका भी निभाई है। बलवंत गार्गी (एक प्रसिद्ध पंजाबी लेखक) ने अपनी जीवनी में लिखा है कि एक निहंग उनके गांव में बच्चों को पढ़ाने के लिए आया करते थे और उन्होंने अपना पहला गुरुमुखी पाठ प्राप्त किया, जबकि निहंग अपने घोड़े पर बैठे थे।
सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहे तेजबीर सिंह बताते हैं-
तेजबीर सिंह (24) फतेहगढ़ साहिब के एक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहे हैं। वो कहते हैं कि मैं नहीं कह सकता कि मुझे निहंग बनने के लिए क्या प्रेरित किया, लेकिन मैं लगभग आठ साल से उड़ना दल के साथ हूं। मेरे निहंग बनने की कोई खास वजह नहीं है। मुझे केवल इतना पता है कि एक निहंग का अकाल (कालातीत होने) की सेवा करने के अलावा कोई मकसद नहीं हो सकता है। तेजबीर ने कहा कि वह उड़ना दल के अस्तबल में काम करते हैं। पहले फेसबुक पर सक्रिय थे, अब ऑफलाइन हो गए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वह समझते हैं कि निहंग होने का मतलब भौतिक चीजों से मुक्ति है।
वो कहते हैं कि मेरे रिश्तेदार यह जानकर हैरान हैं कि मैं सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा होने के बावजूद घोड़ों की देखभाल करता हूं। उन्हें कम ही पता है कि 18वीं शताब्दी में एक व्यक्ति को नवाब के रूप में नियुक्त किया गया था (नवाब कपूर सिंह, सिख संघ के एक प्रमुख सैन्य प्रमुख)। हर निहंग को समान माना जाता है और गुरु किसी पर भी कृपा कर सकते हैं।”
28 साल की कुलजीत कौर जानिए क्या कहती?
लुधियाना की रहने वाली 28 साल की कुलजीत कौर खालसा ‘लाडलियन फौज (गुरु की प्यारी सेना)’ नाम से एक फेसबुक पेज चलाती हैं। उस पेज के लगभग 68,000 फॉलोअर्स है। कौर कहती हैं उनका काम निहंगों के घोड़ों की देखभाल करना, लंगर (सामुदायिक भोजन) तैयार करना, अनुयायियों से मिलना, उनकी भाषा आदि पर पोस्ट शामिल हैं।