Swami Prasad Maurya: राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RRSP) के प्रमुख स्वामी प्रसाद मौर्य ने मंगलवार को समृद्धि के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा पर सवाल उठाकर विवाद पैदा कर दिया। मौर्य ने कहा कि देवी लक्ष्मी की पूजा करना व्यावहारिकता से कोसों दूर है।
पारंपरिक प्रथा पर सवाल उठाते हुए मौर्य ने कहा कि यदि देवी लक्ष्मी की पूजा करने से सचमुच धन की प्राप्ति होती तो भारत को अब भी गरीब देशों में नहीं गिना जाता, जहां 80 करोड़ लोग गरीबी में जीवन जी रहे हैं।
समाचार एजेंसी ANI के अनुसार, उन्होंने कहा, “…देवी लक्ष्मी की पूजा करना एक परंपरा हो सकती है, लेकिन यह व्यावहारिकता से कोसों दूर है। अगर देवी लक्ष्मी की पूजा करने से कोई अमीर बन जाता, तो भारत दुनिया के गरीब देशों में से एक नहीं होता। देश में 80 करोड़ लोग अभी भी गरीबी में जीवन जी रहे हैं… ।”
समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता ने देश में गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दों को उठाते हुए सवाल किया कि क्या इस पूजा का लाखों लोगों के जीवन पर कोई असर पड़ा है। मौर्य ने कहा, “क्या 5-10 किलो चावल खाकर गुज़ारा करने वाले 80 करोड़ लोग अपने बच्चों को विश्वविद्यालयों में पढ़ा सकते हैं? क्या ऐसे लोग अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफ़ेसर, वकील, आईएएस, आईपीएस या वैज्ञानिक बना सकते हैं? कभी नहीं। आज करोड़ों युवा बेरोज़गार हैं।”
पूर्व कैबिनेट मंत्री ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वे किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना का विरोध नहीं करते। हालाकि, उन्होंने लोगों से घरों में महिलाओं के काम को पहचानने और उनका सम्मान करने की अपील की, जिन्हें अक्सर ‘घर की लक्ष्मी’ कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि मैंने अभी कहा कि ‘घर की लक्ष्मी’ की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वह घर को चौबीसों घंटे साफ़-सुथरा रखती हैं और उसे दिव्य बनाती हैं… अगर आपको प्रार्थना करनी ही है, तो ‘घर की लक्ष्मी’ की प्रार्थना करें ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। यह एक अपील है। उन्होंने आगे कहा कि अगर लोग इसे अन्यथा लेते हैं, तो यह उनकी मानसिकता पर निर्भर करता है।
विहिप की प्रतिक्रिया
मौर्य की टिप्पणी पर विहिप ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे सनातनियों के भीतर भी ‘सर तन से जुदा’ गिरोह चाहते हैं।
विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा, “उनकी पत्नी का नाम ‘शिवा’ है। ऐसा कहने से पहले, उन्हें उनकी पूजा करके हमें दिखाना चाहिए था। अच्छा होता… उनकी मां का नाम ‘जगन्नाथी’ है। जब उन्होंने उनका नाम ‘स्वामी प्रसाद’ रखा था, तो उन्होंने क्या सोचा होगा?”
उन्होंने आगे कहा, “कोई व्यक्ति भले ही अच्छा हो, लेकिन जब वह किसी पार्टी से जुड़ा होता है, तो मुझे लगता है कि वह सब कुछ भूल जाता है… एक नेता दिवाली पर क्रिसमस की वकालत करता है, दूसरा नेता दीयों पर भी बयान देता है और कहता है कि जो दीये जलाते हैं, वे देश जलाते हैं। उनकी मानसिकता, उनके अंदर के ज़हर की कल्पना कीजिए… वे सनातनियों के भीतर भी ‘सर तन से जुदा’ गैंग चाहते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होगा। हिंदू ऐसा नहीं करेंगे… भारतीय जनता पार्टी का एक गठबंधन है, एक यूपी से बोलेगा और दूसरा कर्नाटक से…”
पिछला विवाद
यह पहली बार नहीं है जब मौर्य ने धार्मिक या सांस्कृतिक प्रथाओं को चुनौती देने वाला बयान दिया हो। इससे पहले, पूर्व मंत्री ने कहा था कि तुलसीदास द्वारा रचित पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया है।
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उन्होंने कहा था, “यह सच नहीं है कि करोड़ों लोग इसे पढ़ते हैं। तुलसीदास ने इसे अपने सुख के लिए लिखा था। लेकिन धर्म के नाम पर गालियाँ क्यों? पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को गालियाँ। मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ। लेकिन अगर धर्म के नाम पर किसी समुदाय या जाति को अपमानित किया जाता है, तो यह आपत्तिजनक है।”
इस टिप्पणी की कड़ी निंदा हुई और उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई। बता दें, रामचरितमानस, अवधी भाषा का एक महाकाव्य है, जो रामायण पर आधारित है और इसकी रचना 16वीं शताब्दी के भक्ति कवि तुलसीदास ने की थी।
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