सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के नाबम तुकी के नेतृत्व वाली सरकार के एक महीने से अधिक लंबे निलंबन के बीच संविधान के तहत राज्यपाल के विवेकाधिकारों के दायरे की विवेचना शुक्रवार को शुरू की। न्यायमूर्ति जेएस खेहड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सरकार के परामर्श के बगैर ही विधानसभा का सत्र आहूत करने के राज्यपाल के अधिकार सहित विभिन्न कानूनी सवालों को इंगित किया। अदालत को इन बिंदुओं का निर्णय करना होगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति पीसी घोष और न्यायमूर्ति एनवी रमण संविधान पीठ के अन्य सदस्य हैं।

सिब्बल ईटानगर के एक सामुदायिक केन्द्र में 16 दिसंबर को संपन्न विधानसभा के सत्र में कांग्रेस के विद्रोहियों और भाजपा विधायकों द्वारा विधान सभा अध्यक्ष के पद से हटाये गये नबाम रेबिया का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। यह भी आरोप लगाया गया है कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह के बगैर ही विधानसभा की बैठक का कार्यक्रम 14 जनवरी के स्थान पर 16 दिसंबर कर दिया था।

सिब्बल ने पीठ से कहा, ‘‘क्या राज्यपाल को मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह के बगैर सदन की बैठक आहुत करने का विवेकाधिकार प्राप्त है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘सदन को संदेश देने के लिये राज्यपाल के अधिकार, विशेषकर सदन के गठन के मामले में राज्यपाल के अधिकार की सीमा क्या है?’’ उन्होंने कहा कि राज्यपाल विधानसभा में विधायकों की दलगत स्थिति में बदलाव नहीं कर सकते हैं।