Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि कोई व्यक्ति भारत या किसी विशिष्ट घटना का उल्लेख किए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन करता है, तो प्रथम दृष्टया यह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 के तहत अपराध नहीं बनता है। यह धारा उन कृत्यों को दंडित करती है जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालते हैं।
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह टिप्पणी 18 वर्षीय रियाज को जमानत देते हुए की। रियाज पर कथित तौर पर एक इंस्टाग्राम स्टोरी पोस्ट करने का आरोप था, जिसमें लिखा था, चाहे जो हो जाए सपोर्ट तो बस… पाकिस्तान का करेंगे। उस पर बीएनएस की धारा 152 और 196 के तहत आरोप लगाए गए थे।
रियाज के वकील ने दलील दी कि इस पोस्ट से देश की गरिमा या संप्रभुता को कोई ठेस नहीं पहुंची, क्योंकि इसमें न तो भारतीय ध्वज, न ही देश का नाम या कोई ऐसी तस्वीर थी, जिससे भारत का अनादर होता। उन्होंने तर्क दिया कि केवल किसी देश का समर्थन करने से, भले ही वह भारत का शत्रु क्यों न हो, बीएनएस की धारा 152 के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आता। वकील ने यह भी बताया कि मामले में आरोप पत्र पहले ही दाखिल हो चुका है, इसलिए हिरासत में पूछताछ की कोई जरूरत नहीं है।
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अपर महाधिवक्ता ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि इंस्टाग्राम आईडी के माध्यम से याची द्वारा की गई ऐसी पोस्ट अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने क्या कहा?
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि रियाज ने ऐसा कुछ भी पोस्ट नहीं किया, जिससे भारत के प्रति अनादर झलकता हो। कोर्ट ने कहा कि किसी घटना या भारत का नाम लिए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन करना, प्रथम दृष्टया, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने का अपराध नहीं होगा।
कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया और कहा कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान के मूलभूत आदर्शों में से एक है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 152 एक नया प्रावधान है जिसमें कठोर दंड का प्रावधान है, इसलिए इसे सावधानी से लागू किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, धारा 152 को लागू करने से पहले उचित सावधानी और उचित व्यक्ति के मानकों को अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि सोशल मीडिया पर बोले गए शब्द या पोस्ट भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आते हैं, जिसकी संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि वह ऐसी प्रकृति का न हो जो किसी देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करता हो या अलगाववाद को बढ़ावा देता हो।