ओमप्रकाश ठाकुर
केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से एक झटके में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद हिमाचल प्रदेश में हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम-1972 की धारा 118 को लेकर बवाल खड़ा हो गया है। जहां पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने इस धारा को हटाने का मामला मीडिया में उठाया वहीं हिमाचल कांग्रेस ने प्रदेश की जयराम सरकार को निशाने पर ले लिया। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉक्टर यशवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम-1972 में धारा 118 इसलिए जोड़ी थी ताकि हिमाचलियों की जमीन बाहरी राज्यों के रईसों व कारोबारियों के हाथ में न चली जाए और हिमाचली अपनी ही जमीन पर मजदूर बन कर न रह जाएं। धारा 118 के तहत हिमाचल प्रदेश का कोई भी जमीन मालिक किसी भी गैर कृषक को किसी भी माध्यम जिसमें सेल डीड, लीज, गिफ्ट, तबादला, गिरवी आदि शामिल है, से जमीन हस्तांतरित नहीं कर सकता।
हालांकि अधिनियम में कई बार संशोधन हुए और इस धारा को कमजोर करने की कोशिश की गई। इस धारा में कई उपधाराओं का प्रावधान भी है, जिसके तहत प्रदेश सरकार के लिए किसी भी उद्देश्य के लिए जमीन हस्तातंरित हो सकती है। इसके अलावा अगर किसी मजदूर व अनुसूचित जाति व जनजाति का कोई परिवार भूमिहीन हो गया हो, उसे भी जमीन हस्तातंरित हो सकती है। बशर्ते वे पहले कृषक रहे हों।
प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत दर्जनों लोगों को मकान बनाने के लिए जमीन दी गई है। इसके लिए इस धारा की उपधाराओं के तहत प्रावधान किया गया है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति मकान बनाने के लिए जमीन ले सकता है। वकील आरएल ठाकुर ने कहा कि ऐसे में उसे सरकार से मंजूरी लेनी होगी, लेकिन उसका दर्जा गैर कृषक का ही रहेगा। प्रियंका गांधी और वाजपेयी इसी श्रेणी में आते हैं। उनके मकान तो यहां है लेकिन वे गैर कृषक माने जाएंगे ताकि वह यहां ज्यादा जमीन न खरीद सकें।
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जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद भाजपा के उपाध्यक्ष गणेश दत ने प्रदेश में इस धारा को हटाने की मांग कर दी। गणेश दत मूल रूप से उतराखंड से है और एक अरसे से हिमाचल में रहते हैं। वे गैर कृषक है। इसलिए सरकार की मंजूरी के बिना वे जमीन नहीं खरीद सकते। गणेश दत ही नहीं प्रदेश गैर कृषक एकता मंच ने भी मांग कर दी है कि इस धारा को खत्म किया जाए या फिर दो श्रेणियों सरकारी नौकरियों पर कार्यरत कर्मचारियों और छोटे कारोबारियों के लिए जमीन हस्तांतरण पर रोक नहीं होनी चाहिए।
उधर, इस अधिनियम को पांच बार संशोधन कर चुकी कांग्रेस पार्टी इसमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ के खिलाफ आ गई है। पार्टी अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर कह चुके हैं कि अगर सरकार ने छेड़छाड़ की तो पार्टी इसे बर्दाशत नहीं करेगी। इससे सहमी सरकार को बचाव में अपने तीन मंत्री और भाजपा अध्यक्ष को मैदान में उतारना पड़ा। शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज, उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह और वन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने कहा कि सरकार धारा 118 में कोई छेड़छाड़ नहीं कर रही है। जबकि भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने कहा कि कांग्रेस पार्टी लोगों को गुमराह करने के लिए दुष्प्रचार कर रही है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद इस धारा में किसी तरह की छेड़छाड़ की बात को नकार चुके हैं। लेकिन इनवेस्टर मीट के लिए जिस तरह से उद्योगपतियों को बुलाया जा रहा है, उससे लोगों के मन में शंका जरूर है कि सरकार इस धारा को कमजोर कर सकती है।
इस धारा में कई उपधाराएं जोड़ गए
इसके तहत सरकार अधिग्रहण के तहत जमीन ले सकती है। इसके अलावा कारोबारियों को कारोबार शुरू करने के लिए इमारत खड़ी करने को भी जमीन हस्तांतरित करने का प्रावधान किया गया है। लेकिन सरकार और उसके विभागों की मंजूरी से ही ये जमीन हस्तातंरित हो सकती हैं। साथ ही शर्त यह है कि जिस उद्देश्य के लिए किसी ने जमीन ली है, मंजूरी के दो साल के भीतर उसे वहां निर्माण करना होगा। यह अवधि ज्यादा से ज्यादा एक साल तक बढ़ सकती है। उसके बाद यह जमीन सरकार की हो जाएगी। शिमला से लेकर मनाली और डलहौजी तक देश के नामी कारोबारियों व नेताओं ने प्रदेश में होटलों का निर्माण इन्हीं प्रावधानों के तहत किया है।
इसके अलावा बैंकों और सहकारी समितियों को जमीन हस्तातंरित हो सकती है लेकिन इनमें भी कई पेच है। इस धारा के तहत कितनी जमीन ली जा सकती है इसकी सीमा भी बांधी गई। आवासीय भवन के पांच सौ वर्ग मीटर का प्रावधान किया गया और दुकानों के लिए 300 वर्ग मीटर का प्रावधान किया गया है। उद्योगों के लिए कितनी जमीन चाहिए ये उद्योग विभाग तय करेगा, जबकि होटलों व रेस्तरांओं के लिए पर्यटन विभाग तय करेगा कि कितनी जमीन हस्तातंरित की जा सकती है। जबकि कृषि व बागवानी के लिए चार एकड़ जमीन किसी को हस्तांतरित की जा सकती है। लेकिन इसके लिए भी सरकार से मंजूरी की जरूरत है।