Annu Tandon case: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व सांसद अन्नू टंडन और तीन अन्य के रेल रोको मामले पर सुनवाई करते हुए कहा चलती ट्रेन को रोकना रेलवे अधिनियम की धारा 174 (ए) के तहत अपराध है। भले ही विरोध शांतिपूर्ण क्यों न हो।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, एक पूर्ण अधिकार नहीं है और यदि कोई कानून एक निश्चित तरीके से विरोध करने के अधिकार के प्रयोग को प्रतिबंधित करता है तो ऐसे कानून की रक्षा की जाएगी।

कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, ‘भले ही शांतिपूर्ण आंदोलन/विरोध के कारण बैठने या धरना देकर या किसी रेल रोको आंदोलन या बंद के दौरान किसी ट्रेन के चलने में बाधा उत्पन्न होती है तो यह रेलवे अधिनियम की धारा 174 (ए) के तहत अपराध होगा। कोर्ट ने कहा कि तथ्य यह है कि अपीलकर्ताओं सहित प्रदर्शनकारियों ने रेलवे ट्रैक पर धरना देकर 15 मिनट के लिए ट्रेन को रोक दिया था और ट्रेन के इंजन पर चढ़ गए थे।’

जज ने कहा कि नागरिकों को विरोध करने के अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए विधायिका द्वारा बनाए गए कानून का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘एक लिखित संविधान द्वारा शासित लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में लोगों को सरकार की नीतियों, कथित अत्याचारों के विरोध का अधिकार है। विरोध करने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकारों का भी हिस्सा है। यह देश में प्रदर्शन, आंदोलन और विरोध प्रदर्शन के अधिकार हैं। हालांकि, यह अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है, और यह उचित प्रतिबंध के अधीन है।’

अदालत कांग्रेस पार्टी की पूर्व सांसद अन्नू टंडन और कुछ अन्य कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। जिन पर 12 जून, 2017 को उन्नाव में “रेल रोको” विरोध प्रदर्शन करने के लिए मामला दर्ज किया गया था। पूर्व सांसद पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 150 से 200 कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ चलती ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश की। इस वजह से लंबी दूरी की ट्रेन को 15 मिनट के लिए रुकना पड़ा।

पूर्व सांसद ने कोर्ट में अपने बचाव में कहा कि उन्होंने किसी भी व्यक्ति को रेलवे ट्रैक के पास इकट्ठा होने और ट्रेन को रोकने या उस पर चढ़ने के लिए नहीं उकसाया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में किसानों के साथ भाजपा सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के संबंध में सिटी मजिस्ट्रेट के माध्यम से राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपना एक सांकेतिक विरोध था।

न्यायाधीश ने ट्रेन चालक की गवाही पर विचार किया, जिसने विशेष रूप से कहा था कि अपीलकर्ता अन्य श्रमिकों के साथ रेलवे ट्रैक पर विरोध प्रदर्शन कर रहा थे और यहां तक ​​कि ट्रेन पर चढ़ गया थे। जिसके कारण ट्रेन 15 मिनट से अधिक समय तक रुकी रही।

रेलवे अधिनियम के प्रावधान पर विचार करते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘कानून स्पष्ट करता है कि यदि कोई रेल कर्मचारी या कोई अन्य व्यक्ति रेल रोको आंदोलन और बंद आदि के दौरान ट्रेन में बाधा डालता है तो वो रेलवे अधिनियम की धारा 174 (ए) के अपराध है।पीठ ने निचली अदालत द्वारा अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। हालांकि, पीठ ने निचली अदालत द्वारा लगाए गए दो साल के साधारण कारावास को हटाकर सजा को संशोधित किया।

पीठ ने कहा, ‘लोकतंत्र में संविधान के तहत लोगों को सरकारी नीतियों, कार्रवाई या निष्क्रियता के खिलाफ विरोध करने का अधिकार है, बशर्ते विरोध प्रदर्शनकारियों द्वारा अपराध कारित नहीं किया जाता हो। पीठ ने कहा कि ट्रेन को 15 मिनट के लिए रोकने के अलावा, निजी को कोई नुकसान नहीं हुआ और प्रदर्शनकारियों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति, कुल मिलाकर यह एक शांतिपूर्ण और प्रतीकात्मक विरोध था। इसे देखते हुए अदालत दो साल की कैद को अनुचित मानती है। इसलिए अदालत ने अपीलकर्ताओं पर लगाए गए 25,000 रुपये के जुर्माने की राशि को बरकरार रखते हुए कारावास की सजा को रद्द कर दिया।