भारतीय राजनीति में एक कहावत है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता, यूपी की सियासत से होकर जाता है… वो यूपी जो ना सिर्फ देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है बल्कि सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें और 31 राज्यसभा सीटें इसी सूबे से आती हैं। यानि कि संसद के निचले सदन के साथ साथ अगर ऊपरी सदन में भी दबदबा बनाए रखना है तो यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से ज्यादा से ज्यादा पर कब्जा करना हर राजनीतिक दल की जरूरत भी है और चाहत भी। यही वजह है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए हर दल की रणनीति तैयार हो चुकी है। फिर चाहे वो सत्ताधारी बीजेपी हो या विपक्षी दल सपा-बसपा और कांग्रेस। मजे की बात ये है कि इस बार सबकी रणनीति का केन्द्र बिन्दु हैं ब्राह्मण, किसान और मुसलमान वोट बैंक। एक-एक करके समझते हैं कि ब्राह्मण, किसान और मुसलमान की ये तिकड़ी 2022 में किस पार्टी का खेला कैसे बना या बिगाड़ सकते हैं।

यूपी में वोटों का गणित: इससे पहले की हम राजनीतिक दलों के समीकरणों पर चर्चा करें, एक नज़र यूपी के वोटों की गणित पर डाल लेते हैं। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुल 14,43,16,893 वोटर हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के कुल मतदाताओं में से सबसे ज्यादा 20% अति पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं, इसके बाद दूसरे नंबर पर आता है मुस्लिम वोट बैंक जो कि कुल वोट का 19.3% है। जाटव वोट 13%, अन्य पिछड़ा वोट 12% और ब्राह्मण वोट 11% हैं। इसके बाद बारी आती है यादव वोटबैंक की जो कि 9% हैं, जाटव को हटाकर अन्य अनुसूचित जातियों का वोट प्रतिशत 8 फीसदी है। जबकि ब्राह्मणों को छोड़कर अन्य सवर्ण वोट 7.7% हैं।

बीजेपी का चुनावी बहिखाता: अब बात करते हैं कि कौन सी राजनीति पार्टी, वोटों का हिसाब किताब कैसे लगा रही है। सबसे पहले नजर डालते हैं सत्ताधारी बीजेपी की चुनावी गणित पर। 2017 के विधानसभा चुनावों में 39.67% वोट शेयर और 312 विधानसभा सीटें हासिल करते हुए बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि सामाजिक समरसता का नारा देकर बीजेपी ने बीएसपी के दलित वोट बैंक में से जाटव छोड़कर अति दलित वोटों का बड़ा हिस्सा अपने पाले में कर लिया, जो कि करीब 8% है, इसी तरह केशव प्रसाद मौर्य और अनुप्रिया पटेल की बदौलत यादव छोड़कर अति पिछड़ा और अन्य पिछड़ा वर्ग के भी बड़े हिस्से को बीजेपी अपने पाले में करने में कामयाब रही, जो मिलकर 32% होते हैं। इसके अलावा ब्राह्मणों ने भी अपना आर्शीवाद भाजपा को दिया और नतीजा सबके सामने है। इसीलिए बीजेपी ब्राह्मणों को मनाने में जुटी है क्योंकि अगर ये वर्ग रूठा तो एक बड़ा वोट शेयर उसके हाथ से चला जाएगा और शायद यूपी की सत्ता भी। ऐसे ही लगभग हर वर्ग के किसान तीन कृषि बिल के मुद्दे पर बीजेपी से नाराज बताए जा रहे हैं। राकेश टिकैत ने तो महापंचायत में खुलेआम इस बात का इजहार भी कर दिया है।

बीएसपी की चुनावी गणित: 2017 के विधानसभा चुनावों में 19 सीटें और 22.23% वोट शेयर पाने वाली बीएसपी ये मानकर चल रही है कि 13 फीसदी परम्परागत जाटव वोट उसके खाते में रहेंगे। ऐसे में 19.3% मुस्लिम वोट और 11% ब्राह्मण वोट अगर बसपा के खाते में आ जाते हैं तो मायावती की चिंता काफी हदतक खत्म हो जाएगी। रही बात अति दलित वोटों के बीजेपी की तरफ जाने से हुए नुकसान की तो उसी की भरपाई के लिए बहन जी की नजर किसान आंदोलन पर है। अपनी सभाओं में मायावती कभी ब्राह्मणों को सुरक्षा देने की बात करती हैं तो कभी किसानों के लिए हमदर्दी जताती हैं। मगर यहां मायावती को अखिलेश यादव से कड़ी टक्कर मिल रही है, जो कि ऐसी ही कवायद समाजवादी पार्टी के लिए कर रहे हैं।

सपा और वोटों का हिसाबकिताब: किसी समय में मुलायम सिंह यादव के M.Y, यानि कि मुस्लिम-यादव समीकरण ने सूबे की सियासत में तूफान ला दिया था, मगर उस वक्त बात और थी क्योंकि मुलायम को पूरे पिछड़े वर्ग का निर्विवाद नेता माना जाता था। मगर बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग करते हुए पिछड़े में से अति पिछड़ा और अन्य पिछड़ा को अलग क्या किया, सारा समीकरण ही बदल गया। ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव, 19.3% मुस्लिम और 11% ब्राह्मण वोटों को 9% यादव वोटबैंक के साथ मिलाकर एक पुख्ता आधार तैयार करने में जुटे हैं। यही वजह है कि यूपी पुलिस के बहाने कभी वो ब्राह्मणों और मुसलमान पर ज्यादती किये जाने का आरोप लगाते हैं तो कभी भगवान परशुराम के प्रति अपने प्यार का खुलेआम इजहार करते नजर आते हैं। अखिलेश की नजरें अब टिकैत पर भी टिकी हैं, जो कि हर वर्ग से जुड़े किसानों को सपा के खाते में लाकर गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।

कांग्रेस का क्या होगा: किसी समय में सवर्ण और मुस्लिम वोट कांग्रेस का आधार माने जाते थे। लेकिन 1989 के बाद सवर्ण और 1992 के बाद यूपी का मुसलमान मानो कांग्रेस से नाराज हो गया। नतीजा, कभी दशकों तक यूपी की सत्ता पर कब्जा जमाने वाली कांग्रेस पार्टी 2017 में महज 7 सीटों और 6.25% वोट शेयर तक सिमट गई। अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी किसान आंदोलन का समर्थन करने के बहाने खोई जमीन दोबारा हासिल करने में जुटी है। अब उसे कितनी कायमाबी मिलती है, ये एक बड़ा सवाल है।