राज्यों में सत्ता बदलने पर सार्वजनिक संस्थानों पर भी सरकारी रंग चढ़ता दिखने लगता है। कहीं जल्द और कहीं कुछ समय बाद ऐसी गतिविधियां होती रहती हैं। यूपी में भाजपा सरकार आई तो भगवा रंग का असर दिखा। मायावती सरकार में नीला रंग छाया रहा तो समाजवादी पार्टी की सरकार में लाल-हरा ने अपना असर दिखाया था। अब बारी है झारखंड की। यहां सीएम हेमंत सोरेन की सरकार ने आदेश दिया है कि राज्य के स्कूलों को पार्टी के झंडे के रंग में रंग दिया जाए।
गुलाबी से लेकर हरा और सफेद रंगों के शेड में हो रहा है बदलाव। सरकार के आदेश पर राज्य के 35 हजार सरकारी स्कूलों की इमारतें झारखंड मुक्ति मोर्चा के झंडे के रंग में रंगी जा रही है। इस आदेश से विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा का आरोप है कि इससे “स्कूलों का राजनीतिकरण” किया जा रहा है। जबकि झारखंड के शिक्षामंत्री जगरनाथ महतो ने इसे लोगों की पसंद कहा। वे बोले कि हर व्यक्ति रंग पसंद करता है, इसलिए ऐसा किया जा रहा है।
13 मई को एक पत्र में, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद (जेईपीसी), जो राज्य के शिक्षा विभाग के अंतर्गत आता है, ने स्कूल भवनों के रंग में बदलाव का आदेश दिया और कहा कि शौचालयों को नारियल, हंस या अंगोरा सफेद और फ्रास्टेड ग्रीन या मेहंदी हरे रंग में रंगा जाए। दरवाजों और खिड़कियों को गहरे हरे रंग से रंगना होगा। वर्तमान में शौचालयों को नीले रंग में रंगा गया है।
पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2002-03 में भाजपा शासन के दौरान स्कूल भवनों का रंग पीले से गुलाबी में बदल दिया गया था। 2014 में, जब झामुमो सत्ता में था, तो रंग बदलकर चमकीला गुलाबी कर दिया गया था, जिसमें दरवाजे और खिड़कियां सुनहरे भूरे रंग में रंगी हुई थीं। 2018-19 में, भाजपा के शासन के दौरान, इमारत का रंग अपरिवर्तित रहा, लेकिन शौचालयों को नीले रंग से रंगा गया।
सरकार के एक सूत्र ने कहा, “झारखंड के विभिन्न जिलों में वर्तमान में 400 मॉडल स्कूलों के निर्माण के साथ यह विचार शुरू हुआ। इन स्कूलों को हरे और सफेद रंगों से रंगने का निर्णय लिया गया। फिर सभी 35,000 स्कूलों को एक ही रंग से रंगने का फैसला किया गया। करोड़ों का एक बड़ा खर्च किया जाएगा, जो राज्य की शिक्षा की प्रमुख प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने की अनदेखी करने जैसा है।”
वर्तमान में, राज्य में 60,000 शिक्षकों के पद खाली हैं, जबकि 20 प्रतिशत से कम स्कूलों में प्रधानाध्यापक हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कोविड -19 महामारी के कारण हुए व्यवधान के बाद लर्निंग गैप का आकलन कर उसे कम करना है। सूत्रों ने यह भी बताया कि माता-पिता की स्कूल प्रबंधन समितियों के साथ जुड़ाव भी एक बड़ा मुद्दा है।
स्कूलों के रंग बदलने का काम करने वाले शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “यह सरकार की इमारतें चमकाने के अलावा और कुछ नहीं है। यह लोगों की आंखों में रंग भरने के लिए खुद मंत्री जगरनाथ महतो द्वारा लिया गया एकतरफा फैसला है।”
मंत्री ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हर किसी को हरा रंग पसंद होता है। समस्या कहाँ है? हम बात कर मामले को सुलझा लेंगे। बार-बार रंग बदलना चाहिए… अगर भाजपा को रंग से कोई समस्या है तो उनको अपने झंडे में कुछ हरा रंग है, तो उन्हें भी इसे हटा देना चाहिए।”
महतो ने यह भी घोषणा की कि स्कूली पाठ्यक्रम में झामुमो के सह-संस्थापक शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो जैसे “झारखंड आंदोलन के नायकों” पर अध्याय होंगे।