एनसीआर में उच्च शिक्षण संस्थानों के हब के रूप में प्रसिद्ध नोएडा, ग्रेटर नोएडा में इन दिनों अजीब स्थिति है। जहां नोएडा के कुछ इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थान इस सत्र से सीटें नहीं भरपाने की वजह से बंद करने का फैसला ले चुके हैं। वहीं, इस स्थिति को आपदा में अवसर मान कर ग्रेटर नोएडा के कुछ कॉलेज ज्यादा मांग वाली ब्रांच और कोर्स में दाखिले के लिए मनमाने शुल्क की मांग कर रहे हैं। बेदिल को पता चला है कि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका से अभिभावक अपने बच्चों को दूरदराज पढ़ाई करने के लिए भेजने से कतरा रहे हैं। साथ ही कई कॉलेजों के बंद होने और सीबीएसई बोर्ड में अधिकांश परीक्षार्थियों का अच्छा परीक्षा परिणाम दाखिले के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा पेश कर रहा है। जिसका फायदा कई निजी कॉलेज मनमानी फीस मांगकर उठा रहे हैं।

विभाग की व्यस्तता

दिल्ली पुलिस में सीपी सचिवालय के निर्माण के बाद पुलिस के एक विभाग पर गाज गिरने वाली है। विभाग वैसे तो अपने आप को दिखाता काफी व्यस्त है लेकिन यहां काम के नाम पर कुछ नहीं होता। बताया जा रहा है कि सालों से इस विभाग को देखने वाला ही नहीं है। खानापूर्ति के लिए पूरे दिन विभाग के लोग व्यस्त रहते हैं। लेकिन जरूरत के समय विभाग का कोई जिम्मेवार या तो नजर नहीं आते या फिर उन्हें कोई जानकारी ही नहीं होती। बेदिल को मिली सूचना के मुताबिक, नए आयुक्त की नजर में इस विभाग को भी कुछ दिन के लिए सीपी सचिवालय से जोड़कर उनके मूल काम को याद कराया जाएगा।

याद आया शासन

दिल्ली नगर निगम में अभी भी कांग्रेस वाले खुद को सत्ताधारी या विपक्ष से कम नहीं मानते। पिछले दिनों निगम की एक बैठक में कांग्रेस के पार्षद बोल रहे थे तो सत्ताधारी भाजपा के एक पार्षद ने टोका टोकी शुरू कर दी। इतना सुनते ही कांग्रेस के वरिष्ठ पार्षद जो चार बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं बोले-‘चुप और बैठ जा। यह मत भूल की देश में हमारी पार्टी ने भी शासन किया है। तू अभी आया है और खुद को मठाधीश मानता है’। तभी ‘आप’ की तरफ से आवाज आई कि भले ही कांग्रेस सत्ता में न हो लेकिन शान में कोई कमी नहीं है।

मजबूरी वाली मांग

विरोध -प्रदर्शन के दौरान वक्ता कई बार कुछ ऐसी मांग कर बैठते हैं कि उनके साथी भी बगले झांकने लगते हैं। स्थिति ऊहापोह की होती दिखने लगती है। कुछ ऐसा ही दिखा बीते दिनों तीस हजारी में। दरअसल वकीलों का एक समूह कोरोना राहत की मांग को लेकर धरने पर था। सभी वकीलों के लिए 20,000 रुपए की कोरोना सहायता देने की मांग हो रही थी। खासकर महिला वकीलों की मांग थी कि कई वकील साथी नए हैं लिहाजा उनका संकट ज्यादा है। इसे भारी समर्थन मिल रहा था। तभी 20 हजार रुपए देने की मांग उन महिला वकीलों के लिए भी उठी जिनके पति की मृत्यु कोरोना से हुई, भले वे खुद पेशेवर वकील नहीं थे। इसकी मांग होते ही कई लोग इधर-उधर देखने लगे। हालांकि समर्थन करना मजबूरी थी, सो समर्थन हुआ। धीमी आवाज और दबे जुबान से ही सही!

आंकड़े तेरे-मेरे

आंकड़ों की बाजीगरी सरकारी महकमें में खूब देखने को मिलती है। आए दिन कोई न कोई इसमें अपनी महारत का प्रदर्शन करते दिख जाता है। ऐसी ही एक बानगी बेदिल को भी देखने को मिली। मामला था दिल्ली में एक उद्घाटन समारोह का। परियोजना को लेकर जितने वक्ता उतने आंकड़े पेश किए। एक जपानी अधिकारी ने परियोजना की लंबाई 70 किलोमीटर कहा तो एक अन्य अधिकारी ने इसे 59 किलोमीटर बताया। वहीं, दूसरे वक्ता ने कुछ और ही दूरी बताई। जबकि परियोजना की वास्तविक लंबाई 58 से 59 किमी के बीच है। अब देशी आंकड़ों को सही माने या जापानी आंकड़ों को इसको लेकर संबंधित अधिकारी भी बगले झांकते दिखे।
-बेदिल