Protocol Violated: गुजरात में एक शहीद जवान के घर वालों ने बेटे की वीरता पर भेजे गए ‘शौर्य चक्र’ को लौटा दिया है। 5 साल पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से मुठभेड़ में ये जवान शहीद हुआ था। लांस नायक गोपाल भदौरिया जो साल 2017 में जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए थे उनके पिता ने बेटे की वीरता पर मिला ‘शौर्य चक्र’ लौटा दिया है। उन्होंने बताया ये डाक के माध्यम से भेजा गया था। उन्होंने ये कहा ये देश के लिए एक शहीद का अपमान है।

5 सितंबर को लांस नायक गोपाल भदौरिया के पिता मुनीम सिंह ने ‘शौर्य चक्र’ वाला एक डाक कूरियर लौटा दिया था जो उनके बेटे को फरवरी 2017 में ड्यूटी के दौरान मरने के एक साल बाद मरणोपरांत दिया गया था। अहमदाबाद शहर के बापूनगर इलाके में रहने वाले मुनीम सिंह ने मांग की कि देश का तीसरा सबसे बड़ा शांतिकालीन वीरता पुरस्कार नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में परिवार को सौंपा जाए।

शहीद के पिता ने बताया ये शहादत का अपमान

शहीद के पिता ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में बताया,”सेना डाक से पदक नहीं भेज सकती। यह न केवल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि एक शहीद और उसके परिवार का अपमान भी है। इसलिए मैंने पदक वाले पार्सल को स्वीकार नहीं किया और यह कहते हुए लौटा दिया कि हम इसे स्वीकार नहीं करते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “इस तरह के पदक हमेशा 26 जनवरी या 15 अगस्त को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में प्रदान किए जाते हैं और पूरा देश टीवी पर इस कार्यक्रम को देखता है। यदि राष्ट्रपति नहीं है तो एक वरिष्ठ सेना अधिकारी इस पदक को शहीद के परिवार सौंपता है। ये पदक कभी भी कूरियर के माध्यम से नहीं भेजा जाना चाहिए।”

33 वर्ष की उम्र में शहीद हुआ था जवान

साल 2017 में जब लांस नायक भदौरिया का निधन हुआ था तब वो महज 33 वर्ष के थे। इसके एक साल के बाद 2018 में सैनिक को मरणोपरांत ‘शौर्य चक्र’ से सम्मानित किया गया जो अशोक चक्र और कीर्ति चक्र के बाद तीसरा सबसे बड़ा शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है। उन्हें पहले राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) कमांडो समूह का हिस्सा होने के लिए “विशिष्ट सेवा पदक” से सम्मानित किया गया था, जिसे मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों के दौरान आतंकवादियों के ताज होटल को साफ करने का काम सौंपा गया था।

पत्नी को लेकर था कानूनी विवाद

चूंकि जवान साल 2011 में अपनी पत्नी से अलग हो गया था इसके लिए जवान के पिता दीवान सिंह ने साल 2018 में एक सिविल कोर्ट में दस्तक दी ताकि अपनी बहू को अपने बेटे की शहादत के बाद मिलने वाले पुरस्कार और सेवा लाभ का दावा करने से रोका जा सके। भदौरिया अपनी पत्नी से अलग जरूर हुए थे लेकिन उन्होंने तलाक नहीं दिया था। लगातार देश की सेवा के लिए सीमा पर तैनात जवान अदालती प्रक्रियाओं में नहीं शामिल हो सका था जिसकी वजह कानूनी रूप से तलाक नहीं हुआ था। शहीद के पिता ने बताया कि सितंबर 2021 में हमने कानूनी लड़ाई जीती जिसके मुताबिक बेटे की शहादत के बाद सभी तरह के सेवा लाभ माता-पिता को दिए जाएं पत्नी को नहीं।