बिहार की राजनीति में पिछले ढाई दशक से सत्ता पर जदयू-भाजपा गठबंधन या फिर राजद-कांग्रेस गठबंधन का ही कब्जा रहा है। लेकिन साल 2000 के बाद से बिहार की राजनीति में छोटी पार्टियां भी चुनावों में अहम रोल निभाती आ रही हैं। खासकर 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद तो बिहार में छोटी पार्टियों की अहमियत काफी ज्यादा बढ़ गई है। आइए बिहार की इन छोटी पार्टियों और उनके बिहार की राजनीति में प्रभाव पर एक नजर डालते हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा): रामविलास पासवान की अध्यक्षता वाली लोक जनशक्ति पार्टी काफी पुरानी पार्टी है। लोजपा मुख्यतः पासवान जाति पर निर्भर करती है, जिनकी बिहार में संख्या 5% के करीब है। फरवरी, 2005 के बिहार विधानसभा चुनावों में लोजपा ने 29 सीटें जीतकर अपनी ताकत का एहसास कराया था। हालांकि अक्टूबर, 2005 में फिर से हुए विधानसभा चुनावों में लोजपा सिर्फ 9 सीटों पर सिमट गई थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के साथ गठबंधन में लोजपा ने 7 में से 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जो कि लोजपा का आम चुनावों में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन है। लोजपा बिहार के चुनावों में लगातार 5%-8% वोट शेयर हासिल करती रही है। ऐसे में दलितों की वोट हासिल करने के लिए भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए रामविलास पासवान अहम हो सकते हैं। 2019 के आम चुनावों के लिए हुए सीट बंटवारे में लोजपा के हिस्से में बिहार से 5 और उत्तर प्रदेश से 1 सीट आयी है। साथ ही रामविलास पासवान को राज्यसभा की सीट भी ऑफर की गई है। लोजपा का बिहार की हाजीपुर, वैशाली, खगड़िया, समस्तीपुर, मुंगेर, जमुई आदि लोकसभा सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव है।

राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा): रालोसपा का गठन साल 2013 में ओबीसी में कोरी जाति से आने वाले उपेन्द्र कुशवाहा ने किया है। उल्लेखनीय है कि उपेन्द्र कुशवाहा और बिहार के सीएम नीतीश कुमार का ओबीसी में कोरी-कुर्मी वोटबैंक एक ही है। बिहार में कोरी-कुर्मी वोटबैंक राज्य की कुल जनसंख्या का 10% है। 2014 में रालोसपा ने एनडीए के साथ गठबंधन किया और और 3 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में रालोसपा को सिर्फ 2 सीटें ही मिल सकीं। बीते साल रालोसपा ने एनडीए का दामन छोड़कर राजद का साथ पकड़ लिया है। 2014 के आम चुनावों में राजद और कांग्रेस के गठबंधन को 30% वोट मिले थे, वहीं भाजपा, जदयू और रालोसपा के गठबंधन को 39% वोट मिले थे। ऐसे में आगामी चुनावों में रालोसपा का वोट प्रतिशत भाजपा और राजद-कांग्रेस के लिए काफी अहम हो जाता है।

हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (एस): हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (एस) का गठन साल 2015 में जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार से बगावत के बाद किया था। जीतन राम मांझी बिहार की दलित मुसहर जाति से आते हैं। 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में जीतन राम मांझी की पार्टी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी थी। माना जाता है कि राजद की अररिया, जेहनाबाद और जोकिहाट सीटों पर हुए उप-चुनाव में जीत में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा का बड़ा योगदान था। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा फिलहाल राजद के साथ है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, यह पार्टी एनडीए के साथ भी बातचीत कर रही है।

विकासशील इंसान पार्टी (VIP): वीआईपी पार्टी का गठन हाल ही में बिहार में पिछड़ों के नेता मुकेश साहनी ने किया है। साहनी EBC वर्ग से आने वाली मल्लाह जाति से ताल्लुक रखते हैं। हाल ही में मुकेश साहनी ने बिहार में सफलतापूर्वक रैलियों का आयोजन कर अपनी मौजूदगी का बखूबी एहसास कराया है। बिहार में EBC वर्ग का वोटबैंक हमेशा से ही काफी अहम रहा है। विकासशील इंसान पार्टी फिलहाल राजद के साथ है और माना जा रहा है कि मुजफ्फरपुर, दरभंगा, झंझरपुर, ईस्ट चंपारण और वाल्मिकी नगर में वीआईपी पार्टी अहम हो सकती है।