उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को साधने की राजनीतिक दलों में गजब होड़ मची है। प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 200 पर अपनी खासी दखल रखने वाली मतदाताओं की इस बिरादरी का इस्तेमाल अमूमन वोट लेने तक ही सीमित रहा है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों में ब्राह्मणों का वोट लेने के बाद उन्हें दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकने की परंपरा ने उन्हें दोनों ही सियासी दलों से दूरी बनाने पर विवश कर दिया।
इतने के बाद भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं।उत्तर प्रदेश में प्रमुख तौर पर सरयूपारी, कान्यकुब्ज और जुझौतिया ब्राह्मण हैं। इनमें से सरयूपारी ब्राह्मण रायबरेली, ऊंचाहार, सुलतानपुर, जौनपुर, आजमगढ़, प्रयागराज, वाराणसी, गोरखपुर समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश की 100 विधानसभा सीटों पर किसी भी सियासी दल की हार-जीत का अंतर तय करने की कुव्वत रखते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई भी विधानसभा क्षेत्र ऐसा बचा हो जहां सरयूपारी ब्राह्मण सात फीसद से कम हों। ऐसे में खुद इनकी सियासी ताकत और उस ताकत का प्रदेश की सत्ता पर होने वाले असर का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वहीं, मध्य उत्तर प्रदेश कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का गढ़ है। यहां की 55 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां कान्यकुब्ज ब्राह्मण बहुतायत में हैं। इन्हें ही बस में करने के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित का कभी सहारा लिया था। जिन विधानसभा सीटों पर कान्यकुब्ज काबिज हैं उनमें कानपुर, कन्नौज, इटावा, मैपुरी, उन्नाव, लखनऊ, गोंडा, बहराइच प्रमुख हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में और पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में भी पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड में ब्राह्मणों ने सपा और बसपा से किनारा कर भाजपा को मतदान किया था।
यही वजह रही कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को उम्मीद से अधिक सीटें मिलीं। अब बात जुझौतिया ब्राह्मणों की। रानी लक्ष्मी बाई के साथ रण में जूझ गए इन ब्राह्मणों के आगे जुझौतिया इस लिए लगाया गया क्योंकि इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हथियार उठा कर बरतानिया हुकूमत का मुकाबला किया था। बुंदेलखंड की सभी विधानसभा सीटों पर जुझौतिया ब्राह्मण बहुतायत में हैं।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों में कभी सूखा, कभी पानी की कमी और कभी दस्युओं का सामना करना इनकी रोज का हिस्सा हुआ करता था। मायावती का बुन्देलखण्ड में अस्थायी तालाब बनवाने का वादा, अखिलेश यादव का इजरायल की प्रौद्योगिकी के सहारे पाइपलाइन से पूरे बुन्देलखण्ड को पानी देने का सब्जबाग झूठा साबित होने और इन दोनों सियासी दलों के प्रमुखों से पहले कांग्रेस के काल में पाठा जल परियोजना में हुए अरबों रुपए के घोटाले से तंग आ चुके जुझौतिया ब्राह्मण अब भारतीय जनता पार्टी के पाले में आ कर खड़े हैं।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को साधने की कोशिश में जुटे सम्पूर्ण विपक्ष की कारगुजारियों से वाकिफ मतदाताओं की बेहद जागरूक ये बिरादरी जिस भी दल में रहती है, उसकी फिजा बनाने में इसका अहम योगदान रहता है। मसलन सोशल इंजीनियरिंग के उस फार्मूले को ही देख लीजिए जिसके सहारे मायावती ने पूर्ण बहुमत की उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी। इस सरकार के बनने के बाद जिस तरह बहनजी ने ब्राह्मणों को दूध की मक्खी की तरह निकाल कर फेंका, वो टीस आज भी रह रह कर ब्राह्मणों को नश्तर की तरह चुभती है।