आम बजट पेश करने के बीच में इस बात को लेकर बहस छिड़ी थी कि क्या भारत को मंदी से निपटने के लिए वैधानिक तौर पर तय की गई राजस्व की उच्चतम सीमा से अतिरिक्त खर्च करना चाहिए। ऐसे समय पर दृढ़ता से चेतावनी-भरी एक राय भी आई थी। इस राय के मुताबिक अतिरिक्त खर्च से विकास दर को तेज नहीं किया जा सकता। इसकी तुलना में निकट भविष्य में धीमी विकास दर पर काबू पाने के लिए समष्टि आर्थिक प्रबंधन के साथ चलना चाहिए। क्योंकि कम विकास दर के फायदों पर अस्थिरता बहुत भारी पड़ती है जिससे आक्रामक नीतियों के जरिये ही निपटा जा सकता है। यह राय थी रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन की। अर्थशास्त्री, प्रोफेसर, रिसर्चर, लेखक और केंद्रीय बैंकर के रूप राजन का रेकॉर्ड एक दूरदर्शी का रहा है।

राजन 12 मार्च, शनिवार, को नई दिल्ली में रामनाथ गोयनका व्याख्यान माला का उद्घाटन करेंगे। इंडियन एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका की 25 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में इंडियन एक्सप्रेस ने इस व्याख्यान माला की शुरुआत की है, ‘रामनाथजी और इस अखबार समू्ह की विचारधारा के मुताबिक इस व्याख्यान माला का लक्ष्य बदलाव के प्रति गहरी समझ पैदा करना और महत्वपूर्ण समसामयिक मुद्दों पर बहस चलाना है।’ कहते हैं एक्सप्रेस समू्ह के अध्यक्ष विवेक गोयनका,‘हमारे पाठकों को इस रोमांचक वैचारिक यात्रा पर ले जाने के लिए डॉ. राजन से बेहतर व्यक्ति हमें नहीं मिल सकता था।’ राजन की रुचि का विषय ‘वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत’ प्रासंगिक है।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के कमजोरी के अंदेशे के मद्देनजर भारत के प्रति उत्सुकता बढ़ी है। ऐसे में केंद्रीय बैंक के प्रमुख ने बेचैन वैश्विक निवेशकों को सकारात्मक संकेत दिए हैं और इस बात पर जोर दिया है कि समस्याओं के सागर के बीच भारत किस तरह से अपेक्षाकृत स्थिर नजर आ सकता है। दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ अर्थव्यवस्थाओं में से एक के सेंट्रल बैंकर राजन ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के प्रमुख अर्थशास्त्री के तौर पर और शिकागो यूनिवर्सिटी के बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में शिक्षक के रूप में बेहतरीन काम किया है। लोक वित्त और नीतियों समेत वैश्विक अर्थव्यवस्था पर उनके लेखन ने वित्तीय क्षेत्र में मानदंड स्थापित किए हैं। ब्रिटेन के बैंकरों ने उन्हें इस साल की शुरूआत में साल का केंद्रीय बैंकर चुना था। राजन नीतियों पर प्रतिक्रिया देने में हमेशा आगे रहे हैं। साथ ही सरकार के साथ उन्होंने भी महत्वपूर्ण बैंकिंग बदलाव और बढ़ते ‘बेड लोन्स’ की समस्या की ओर ध्यान दिलाया है।