विपक्षी दलों ने सोमवार से शुरू होने वाले संसद के बजट सत्र के दूसरे हिस्से में देश में सूखे के मुद्दे को जोरशोर से उठाने की तैयारी की है। कई सदस्यों ने इस पर चर्चा के लिए पहले ही नोटिस भी दे दिए हैं। विपक्षी दल सूखे पर सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर समस्या पर आंखें मूंदने का आरोप लगाते रहे हैं। वो देश में जलसंकट पर चर्चा के लिए सरकार से सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करते रहे हैं।
राज्यसभा में विपक्ष के नेता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और उनकी पार्टी के सहयोगियों आनंद शर्मा, हुसैन दलवई, भुवनेश्वर कलिता, रजनी पाटील, विप्लव ठाकुर, मोहम्मद अली खान, एयू सिंह देव (बीजद), केसी त्यागी जद (एकी), सतीश चंद्र मिश्र (बसपा) और निर्दलीय सदस्य राजीव चंद्रशेखर व मनोनीत सदस्य केटीएस तुलसी ने सूखे पर चर्चा के लिए राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को पहले ही नोटिस दिया है।
इन नोटिसों में वर्तमान सूखे से उत्पन्न होने वाली गंभीर स्थिति, गर्म हवाओं और उसके परिणामस्वरूप देश में जलसंकट और इस संबंध में सरकार की ओर किए गए उपायों पर चर्चा की बात कही गई है। नोटिस को प्रक्रिया और कार्य संचालन नियम 177 के तहत स्वीकार किया गया है।
इस मुद्दे पर 27 अप्रैल को चर्चा होगी। भाकपा ने दावा किया है कि केंद्र के पास सूखे से निपटने के लिए कोई गंभीर योजना नहीं है। भाकपा ने कहा है कि सरकार को आपदा पर चर्चा करने और उससे निपटने के तरीके खोजने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए। वहीं कांग्रेस ने मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्थिति से युद्धस्तर पर निपटने के लिए सूखा प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल में केंद्र पर सूखा प्रभावित बुंदेलखंड पर आंखें मूंदने का आरोप लगाया था।
सूखा और उससे उत्पन्न जल संकट मुद्दे को लेकर सरकार की आलोचना के बीच ग्रामीण विकास मंत्री बीरेंद्र सिंह ने कहा है कि राज्यों में 1500 करोड़ रुपए केंद्रीय राशि बिना खर्च हुए बची हुई है। इसका इस्तेमाल सूखा प्रभावित क्षेत्र में पेयजल संकट को कम करने के लिए किया जा सकता है। उनके मुताबिक उन्होंने पहले ही राज्यों से कहा है कि वे प्राकृतिक आपदा जैसी समस्याओं को कम करने के लिए अपने पास पड़े लचीला कोष में से 10 फीसद राशि का इस्तेमाल कर सकते हैं।