देश में कुतुब मीनार परिसर के बाद कई मुगल कालीन मस्जिदों के सर्वे की मांग हिन्दू संगठनों की ओर से उठाई जा रही है। ताजा मांग अजमेर के सूफी संत मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर है जहां एक हिन्दू संगठन ने दावा किया है कि यह पहले एक मंदिर था जिसे बाद में तोड़कर मस्जिद बनाया गया है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से सर्वे करवाने की मांग की है।
महाराणा प्रताप सेना के राजवर्धन सिंह परमार ने दावा किया कि दरगाह की दीवारों व खिडकियों में हिन्दू धर्म से संबंधित चिह्न है। परमार ने कहा कि “उनकी मांग है कि एएसआई द्वारा दरगाह का सर्वे करवाया जाये।”
दरगाह की खादिमों की कमेटी ने दावे को खारिज करते हुए कहा कि वहां इस तरह का कोई चिह्न नहीं है। उन्होंने कहा कि दोनों समाज हिन्दू और मुस्लिम के करोड़ो लोग दरगाह में आते हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि दरगाह में कहीं भी स्वास्तिक चिह्न नहीं है। दरगाह 850 वर्षो से है। इस तरह का कोई प्रश्न आज तक उठा ही नहीं हैं। आज देश में एक विशेष तरह का माहौल है जो पहले कभी नहीं था।’’
आगे इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर सवाल उठाने का मतलब उन करोड़ो लोगो की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है, जो अपने-अपने धर्म को मानने वाले हैं और यहां आते हैं। चिश्ती ने कहा कि ऐसे सभी तत्वों को जवाब देना सरकार का काम है। कमेटी के सचिव वाहिद हुसैन चिश्ती ने कहा कि यह सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाडने की कोशिश है।
बता दें, परमार की ओर यह पत्र राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजा गया है। साथ ही इस पत्र की प्रतिलिपि को राष्ट्रपति, राजस्थान के राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी को भेजा गया है।
इससे पहले भी परमार ने दिल्ली में तीन मुगल शासकों के नाम पर रखी गई सड़क का नाम बदलकर हिन्दू शासकों के नाम पर रखने की मांग की थी। उनकी ओर से कहा गया था कि दिल्ली की अकबर रोड का नाम महाराणा प्रताप मार्ग, शाहजहां रोड का नाम बदलकर परशुराम मार्ग और हुमायूं रोड का अहिल्याबाई होलकर करने की मांग सरकार से की थी।