Rajasthan News: विवादों में चल रहे राजस्थान लोक सेवा आयोग के मामले में एक बड़ा अपडेट आया है। मशहूर कवि डॉ कुमार विश्वास की पत्नी मंजू शर्मा ने विवादों के चलते ही RPSC की सदस्यता से इस्तीफा दिया था। अब राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने उस मंजू शर्मा के इस्तीफे को मंजूर कर लिया है।

दरअसल, राजस्थान लोक सेवा आयोग के काम करने के तरीके को लेकर हाईकोर्ट ने सवाल खड़े किए थे और सब इंस्पेक्टर की भर्ती को भी रद्द कर दिया था। कुमार विश्वास की पत्नी मंजू शर्मा भी लोक सेवा आयोग की सदस्य थीं। ऐसे में विवाद बढ़ता देख मंजू शर्मा ने इस्तीफा दे दिया था।

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क्यों दिया मंजू शर्मा ने इस्तीफा?

डॉ मंजू शर्मा ने 01 सितंबर 2025 को अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा था। इस इस्तीफे का कारण उन्होंने भर्ती प्रक्रिया से जुड़े विवादों को बताया था। उनका कहना था कि इसकी वजह से व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और आयोग की गरिमा प्रभावित हो रही है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर डॉक्टर कुमार विश्वास पर भी सवाल खड़े किए जा रहे थे।

जानें क्या है कुमार विश्वास की पत्नी के इस्तीफे के पीछे की कहानी

‘नहीं चल रहा कोई केस’

डॉक्टर मंजू शर्मा ने यह भी कहा था कि उनके खिलाफ किसी भी जांच एजेंसी में कोई मामला लंबित नहीं है और न ही उन्हें किसी प्रकरण में अभियुक्त माना गया है। उनका कहना है कि सार्वजनिक जीवन में निष्पक्षता, पारदर्शिता और आयोग की गरिमा उनके लिए सर्वोपरि है।

गौरतलब है कि राजस्थान की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत की सरकार में डॉक्टर मंजू शर्मा को आरपीएससी की सदस्यता मिली थी लेकिन प्रक्रिया में खामियों के चलते रद्द हुई पुलिस भर्ती परीक्षा के चलते आयोग पर सवाल खड़े हो रहे थे। ऐसे में उन्होंने नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

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हाईकोर्ट ने मामले में क्या कहा था?

इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि उन्होंने और अन्य ने परीक्षा की शुचिता से समझौता किया था। हाईकोर्ट ने 28 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि पेपर लीक होने और साक्षात्कार प्रक्रिया को प्रभावित करने में अपनी सक्रिय भागीदारी या इसकी जानकारी के ज़रिए, आरपीएससी सदस्य बाबू लाल कटारा, रामूराम रायका, मंजू शर्मा, संगीता आर्य, जसवंत राठी और अध्यक्ष संजय श्रोतिया ने परीक्षा की शुचिता से व्यवस्थित और बड़े पैमाने पर समझौता किया।

अदालत ने मंजू शर्मा, संगीता आर्य और जसवंत राठी सहित आयोग के कई अन्य सदस्यों की “सक्रिय मिलीभगत और संलिप्तता” को भी “चिंताजनक” बताया था। आरोप-पत्र के अनुसार, इन सदस्यों को आयोग के सदस्यों के बीच निजी लाभ के लिए होने वाले लेन-देन और गड़बड़ियों की पूरी जानकारी थी।

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