Rajasthan Politics: राजस्थान (Rajasthan) में 2023 के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव कांग्रेस या भाजपा से ज्यादा राज्य में पार्टियों के दो सबसे बड़े नेताओं के लिए महत्वपूर्ण होंगे। तीन बार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और दो बार राज्य की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के सामने बाहर के दबाव से ज्यादा अपनी-अपनी पार्टियों के अंदर की चुनौतियां ज्यादा बड़ी होंगी। सीएम अशोक गहलोत ने इस बार अपनी सरकार के दौरान कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया है। जहां वह कई एजेंसियों के माध्यम से लगातार केंद्र सरकार की जांच का सामना करते रहे। वहीं पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी उनके सामने चुनौती की तरह रहे हैं। यदि गहलोत अभी भी अपने कार्यकाल को बचाने में सफल रहे हैं तो यह काफी हद उनके राजनीतिक अनुभव के रहते हुआ है।
गहलोत-वसुंधरा एक जैसी स्थिति में ?
राजस्थान में तीन दशकों से कांग्रेस और भाजपा सरकारों के बीच बारी-बारी से आने जाने का सिलसिला रहा है। आने वाले चुनाव को अशोक गहलोत की राजनीतिक ज़िंदगी का आखरी बड़ा तूफान कह सकते है। जनवरी के बजट में कई बड़ी घोषणाओं के होने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, दिल्ली के साथ पायलट की बातचीत बरकरार रहने का मतलब है कि अभी भी गहलोत हार नहीं मानने वाले हैं। वहीं वसुंधरा राजे खुद को उसी नाव में पाती हैं जिसमें गहलोत हैं। वसुंधरा राजे के उन्हीं की पार्टी में कई विरोधी माने जाते हैं।
वसुंधरा राजे के आलोचक रहे सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा नेतृत्व यह देख रहा है कि वसुंधरा राजे कितनी मजबूत और कमजोर हैं। हालाँकि पूनिया को राज्य में बड़ी सफलता नहीं मिल पाई है। और वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा के लिए नंबर एक पोजीशन पर बरकरार दिखाई देती हैं।
महत्वपूर्ण होगी 2023 के चुनाव में भूमिका
अशोक गेहलोत और वसुंधरा राजे दोनों के लिए जब नतीजे आएंगे तो सबसे महत्वपूर्ण बात यह नहीं होगी कि कितने लोग दूसरे पक्ष के साथ खड़े हैं। बल्कि देखना यह होगा कि उनके पाले की संख्या क्या है। इस प्रकार टिकट बांटने से लेकर अधिक से अधिक वफादारों जुटाना दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण होगा।
संभावना है कि कांग्रेस गहलोत और पायलट के वफ़ादारों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करेगी, हालांकि भाजपा में वसुंधरा राजे की राह कठिन होगी। राज्य में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP), बसपा, आम आदमी पार्टी, AIMIM और भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) जैसी अन्य पार्टियों में जातिगत समीकरणों के कारण RLP, BSP और BTP पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।