नगर निगम की 13 सीटों पर मई में होने वाले उपचुनाव की तैयारी सभी दल आधे-अधूरे मन से कर रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि अगले साल मार्च तक निगमों के आम चुनाव होने वाले हैं और दूसरा यह कि निगम की सीटों के परिसीमन का काम इस साल जुलाई तक पूरा होना है। यानी जिन सीटों पर उपचुनाव होंगे उनका वजूद ही कुछ महीने में खत्म हो जाएगा। आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार की बेरुखी के कारण इन उपचुनावों का लंबा इंतजार करना पड़ा। प्रदेश चुनाव आयुक्त राकेश मेहता काफी समय से उपचुनाव के लिए प्रयास कर रहे हैं और यह भी मुमकिन हुआ तो एक जनहित याचिका पर हाई कोर्ट के आदेश की बदौलत। चुनाव तो दिल्ली चुनाव आयोग कराएगा, लेकिन इस पर खर्च होने वाले 20 करोड़ रुपए और कर्मचारी तो दिल्ली सरकार को ही मुहैया कराने हैं। वहीं अब तक उपचुनाव कराने से ना-नुकुर करने वाली आप ने भी चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है। इससे तय हो गया है कि निगम चुनावों से पहले दिल्ली के राजनीतिक दलों के बीच घमासान होने वाला है।

चुनाव आयुक्त राकेश मेहता ने बताया कि विधानसभा के बजट सत्र के बाद अप्रैल के पहले हफ्ते में उपचुनावों की अधिसूचना जारी की जाएगी। चुनाव कराने के लिए एक महीने का समय जरूरी है, इसलिए चुनाव मई के दूसरे हफ्ते तक संपन्न हो जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि लगातार दो विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव में आप ने कांग्रेस को दरकिनार करके दिल्ली की राजनीति को आप बनाम भाजपा कर दिया है। अगर कांग्रेस ने इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया तो भाजपा से ज्यादा परेशानी आप को होगी। कांग्रेस का आरोप है कि इसी डर के कारण आप चुनावों को लगातार टालती आ रही थी। मेहता ने बताया कि दिसंबर 2013 में नई सरकार बनने और थोड़े ही दिनों में राष्ट्रपति शासन लगने के कारण उन्होंने दोबारा विधानसभा चुनाव होने का इंतजार किया।
फरवरी 2015 में हुए विधानसभा के मध्यावधि चुनाव में सात और पार्षदों के विधायक बनने से सात सीटें खाली हो गई। तभी से चुनाव आयोग और दिल्ली सरकार में उपचुनाव कराने के लिए वाद-विवाद चलता रहा। विधान यह भी है कि अगर आम चुनाव में छह महीने से कम का समय हो तो उपचुनाव को टाला जा सकता है, लेकिन आम चुनाव में अभी डेढ़ साल से ज्यादा का समय है, इसलिए उपचुनाव कराया जाना जरूरी है। इसी आधार पर अदालत ने उप चुनाव कराने के आदेश दिए।
2012 के निगम चुनाव में तीनों निगमों में भाजपा की जीत हुई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में निगम के छह पार्षदों के विधायक बनने से ये सीटें खाली हुई थीं। अब दिल्ली के तीनों निगमों की सीटों की संख्या 272 हो गई है। इस लिहाज से 13 सीटों के चुनाव का ज्यादा महत्व नहीं है, लेकिन ये 13 सीटें दिल्ली के हर इलाके की हैं, इसलिए चुनाव एक तरह से विधानसभा चुनाव के बाद और 2017 के निगम चुनाव से पहले सैंपल सर्वे का चुनाव बनने वाला है। इनमें पूर्वी दिल्ली नगर निगम की दो सीटें-झिलमिल व खिचड़ी पुर, उत्तरी नगर निगम की चार सीटें-वजीरपुर, शालीमार बाग, कमरुद्दीन नगर व बल्ली मारान और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की सात सीटें-मटियाला,भाटी, नानकपुरा, मुनीरका, नवादा, तेखंड व विकास नगर शामिल हैं। जिन 13 पार्षदों के विधायक बनने से ये सीटें खाली हुई हैं उनमें छह भाजपा के और सात आप के हैं।