पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने आज पंजाब विधानसभा में पठानकोट हमले को लेकर चौकाने वाला दावा किया। मान ने कहा कि पठानकोट में हमले के बाद सेना भेजने के लिए 7.5 करोड़ रुपए की मांग की थी। जिसके तुरंत बाद मैं और साधु सिंह तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पास मिलने पहुंचे। उनसे कहा कि मेरी सांसद निधि में कटौती करें और लिखा दें कि पंजाब देश का हिस्सा नहीं है और सेना किराए पर ली गई थी।

चंडीगढ़ पर दावे का प्रस्ताव पास किया: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों पर पंजाब सेवा नियमों के बजाय केंद्रीय सेवा नियमों को लागू कर दिया है। केंद्र के इस फैसले के जबाब में शुक्रवार को पंजाब विधानसभा के एक विशेष सत्र में राजधानी चंडीगढ़ पर राज्य के दावे को दोहराते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव का विरोध का करते हुए विधानसभा में मौजूद भाजपा विधायकों ने सदन से बाहर चले गए।

इस दौरान मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि “मैं राज्य के लोगों को गारंटी देता हूं कि मैं राज्य के अधिकारों के लिए लडूंगा। मैंने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने की इजाजत मांगी और उनसे मिलकर इस मुद्दे को उठाऊंगा।”

प्रस्ताव को पास करने के दौरान मान ने कहा है कि पंजाब को ‘पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966’ के माध्यम से पुनर्गठित किया गया था। तब केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और पंजाब के कुछ हिस्सों को तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दिया गया था। तब से, भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) जैसी संयुक्त संपत्ति के प्रशासन में भी राज्यों के अनुपात के हिसाब से संतुलन बनाए रखा गया था।

विपक्षी पार्टियों ने किया समर्थन: आम आदमी पार्टी सरकार के इस प्रस्ताव का समर्थन सभी पार्टियों ने एक सुर में किया। इन पार्टियों में कांग्रेस, अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी ने शामिल है। भाजपा के विधायक अश्विनी शर्मा ने यह कहते हुए इस फैसले का विरोध किया कि प्रस्ताव का उद्देश्य राज्य के निर्दोष लोगों को गुमराह करना है ताकि राज्य सरकार अपनी नाकामियां छिपा सकें। उन्होंने आगे कहा कि चंडीगढ़ में पहले भी 1 मार्च 1986 से 31 मार्च 1991 तक केंद्रीय सेवा नियम लागू रह चुके हैं लेकिन बाद में पंजाब सरकार की ओर से दिया जाने वाला वेतन अधिक लाभकारी हो गया, तब कर्मचारियों की मांग के बाद, उन्हें उधर शिफ्ट कर दिया गया ।