यूपीए सरकार के दौरान बने वक्फ बोर्ड कानून को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से आए हजारों लोगों ने रविवार को जंतर-मंतर पर धरना दिया। उनका कहना है कि मौजूदा कानून के जरिए उन लोगों को बेदखल करने की तैयारी की जा रही है, जो आजादी के बाद पाकिस्तान से भारत आए, यहां व्यवसाय शुरू किया व मकान बनाकर जीवन-यापन कर रहे हैं।
वक्फ की जमीनों पर किराए पर रह रहे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उन्होंने वक्फ की जमीन पर कब्जा नहीं कर रखा है, लेकिन वे इन जमीनों पर आजीविका चलाने और रहने के अधिकारी हैं क्योंकि करीब छह दशक से वे इस जमीन की तयशुदा कीमत देते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2013 के वक्फ बोर्ड कानून के मुताबिक, तीन साल बाद न्यूनतम किराए में 2 से 2.5 फीसद की बढ़ोत्तरी कर वक्फ जमीन किसी दूसरे को अधिक बोली लगाने पर दी जा सकती है।
इस नए कानून में पट्टे के नवीनीकरण की व्यवस्था भी खत्म कर दी गई है। ऐसे में कई पुश्तों से उस जमीन पर रह रहे किराएदार कहां जाएंगे। हरियाणा से आए जोगीराम गोयल का कहना है कि यह जमीन भारत सरकार की है। बंटवारे के बाद पाकिस्तान जाने वाले मुसलिमों को वहां की जगह मिल गई और जो पाकिस्तान से भारत आए उन्हें यहां की जगह मिल गई। 1954 में वक्फ बोर्ड वजूद में आया और इन जमीनों पर अधिकार जताने लगा। वहीं कांग्रेस ने वोट बैंक की राजनीति के लिए 2013 में वक्फ बोर्ड से जुड़ा ऐसा कानून पारित कर दिया।
सोनीपत के अली शेर पठान का कहना है कि वक्फ की जमीनों पर मकान बनाने में हमने लाखों रुपए खर्च किए हैं। अगर सरकार तीन साल बाद हमारा घर तुड़वाकर ज्यादा पैसे के लालच में किसी दूसरे को जमीन दे देगी तो हमारे बाल-बच्चों का क्या होगा। सरकार को इस कानून पर गंभीरता से विचार करके इसे तत्काल रद्द कर देना चाहिए।