ओमप्रकाश ठाकुर
जंगली जानवरों की ओर से आलू की फसल को तबाह करने के बाद अब आलू बीज में पोटेटो सिस्ट निमाटोड के हमले से हिमाचल प्रदेश के आलू उत्पादकों पर संकट गहरा गया है। पोटेटो सिस्ट निमाटोड फसल मित्र कृमि नहीं बल्कि यह फसल संहारक कृमि है जिसने आलू बीज पर हमला बोला है। बीमारी लगे इस बीज को यदि प्रदेश और देश भर के किसानों को दिया जाता रहेगा तो यह बीमारी तमाम जगहों पर पहुंच जाएगी। ऐसे में इस कृमि के हमले की वजह से होने वाले नुकसान को देखते हुए चार राज्यों हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और तमिलनाडु में पैदा हुए आलू बीज पर केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने पाबंदी लगा दी है। इस पांबदी के बाद लाहुल समेत प्रदेश भर में आलू बीज पैदा करने वाले किसानों पर संकट गहरा गया है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की ओर से देश भर से आलू बीज के नमूने लिए गए थे और इनकी जांच पर पाया गया कि इन चार राज्यों के बीज पर संहारक निमाटोड ने हमला बोल दिया है। यह बीमारी दूसरे राज्यों में न फैले इसके लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इन चार राज्यों से दूसरे राज्यों के किसानों को भेजे जाने वाले बीज पर रोक लगा दी।
लाहुल स्पीति के बीज में नहीं था निमाटोड! जब प्रदेश कृषि विभाग ने लाहुल स्पीति से आलू बीज के नमूने लिए तो वहां बीज में निमाटोड नहीं पाया गया। इसके बाद निदेशक बीज प्रमाणीकरण संजय मारवाह के साथ लाहुल स्पीति के विधायक और कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा दिल्ली पहुंचे और लाहुल स्पीति से लिए गए आलू बीज के नमूने की रिपोर्ट दिखाकर लाहुल के आलू बीज को बाहरी राज्यों और देशों को बेचने पर लगी पाबंदी से बचाया।
बीजों की दूसरे देशों में भी है मांग: पाबंदी लगने से लाहुल के किसानों पर अचानक आपदा आ गई थी। सेब और मटर की फसल पहले ही सितंबर महीने में हुई बेमौसमी बर्फबारी की वजह से तबाह हो चुकी थी। प्रदेश में सबसे ज्यादा आलू बीज लाहुल स्पीति में ही उगाया जाता है और इस बीज की मांग गुजरात, महाराष्टÑ, मध्य प्रदेश से लेकर बाकी राज्यों के अलावा पाकिस्तान व श्रीलंका तक है। कृषि मंत्री के प्रयासों से लाहुल स्पीति में उगाया जाना वाला बीज तो बच गया लेकिन प्रदेश के बाकी हिस्सों के उत्पादकों को इस संकट से उबारना सरकार के लिए चुनौती बन गया है।
इन इलाकों के नमूने हुए फेल: प्रदेश के शिमला, सिरमौर, कुल्लू, मंडी, कांगड़ा और चंबा में सरकारी क्षेत्र के अलावा किसानों की ओर से भी आलू बीज उगाया जाता है। जिला शिमला में खदराला, उम्लादवार, खारापानी, सारापानी, टूटूपानी, हंसतारी तीर, पौणीधार, देवरी घाट, खड़ापत्थर, सेट्रल आलू रिसर्च स्टेशन कुफरी, सेंट्रल आलू रिसर्च स्टेशन फागू, रोहड़ू ब्लाक और चौपाल ब्लाक से लिए गए आलू बीज के नमूनों में यह निमाटोड पाया गया। इसके अलावा जिला सिरमौर के खेड़ाधार, मंडी के फूलाधर, चंबा के आहला, कुल्लू के छौवाइं और कांगड़ा के राजकुंडा आलू बीज फार्मों से लिए गए सैंपल भी खराब पाए गए। ये तमाम फार्म सरकारी क्षेत्र के थे। तमाम उत्पादकों पर पाबंदी लग गई है।
पहले जंगली जानवरों के प्रकोप ने छुड़वाई खेती: विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पहले निचले हिमाचल में ऊना, कांगड़ा, मंडी में आलू की अच्छी फसल होती थी। लेकिन जंगली जानवरों में सुअरों ने आलू के फ सल पर पूरे प्रदेश में कहर बरपाया। सुअर पूरे के पूरे खेत तबाह कर जाते है। ऐसे में किसानों ने आलू की खेती करना कम कर दिया है। नगरोटा बगवां में तो किसानों ने आलू की खेती करना ही बंद कर दिया था और अब ये नया संकट खड़ा हो गया है।
लाहुल स्पीति में सबसे ज्यादा आलू बीज: शीत मरुस्थल के नाम से विख्यात लाहुल स्पीति में अनुकूल जलवायु होने की वजह से यहां पर सबसे ज्यादा आलू बीज उगाया जाता है। लाहुल स्पीति में कुफरी, कुफरी चंद्रमुखी और कुफरी ज्योति बीज कृषि विभाग के फार्मों के अलावा किसानों की ओर से भी उगाया जाता है। 14 नवंबर तक लाहुल स्पीति से 37 हजार 693 क्विंटल आलू बीज विभाग की ओर से खरीदा जा चुका था। प्रदेश में 2014-15 में 14685 हैक्टेयर भूमि पर आलू की खेती की गई और 1 लाख 81 हजार 380 मीट्रिक टन पैदावार हुई। उसके बाद 2015 -16 में 18022 हैक्टेयर भूमि पर आलू की खेती की गई और 1 लाख 83 हजार 252 मीट्रिक टन पैदावार हुई। जबकि 2016-17 में 21 हजार 80 हैक्टेयर भूमि पर आलू लगाया गया और पैदावर 2 लाख 24 हजार 40 मीट्रिक टन हुई जबकि 2017-18 में 15 हजार 875 हैक्टेयर पर लगाए आलू से 1 लाख 98 हजार 660 मीट्रिेक टन का उत्पादन किया।
दूसरे खेतों में उगाना होगा आलू: आलू बीज में बीमारी आ जाने से राज्य के किसानों को संकटों का सामना करना पड़ सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह निमाटोड जमीन में छह से सात साल तक जीवित रह सकता है। ऐसे में जिन खेतों में आलू लगाया जाता है वहां पर आलू लगाना छोड़ देना पड़ेगा और इसे दूसरे खेतों में लगाना होगा। इसके अलावा कई दूसरी भी विधियां हैं लेकिन वे महंगी तो हैं और उनमें रसायन भी इस्तेमाल होते हैं। ऐसे में आलू की खेती करने में रोटेशन बदलना होगा।
ये हैं कृषि मंत्रालय के निर्देश: इस बारे में कृषि मंत्रालय ने साफ निर्देश हैं कि ये आलू दूसरे राज्यों में बिलकुल नहीं जाएगा। प्रदेश में इसे खाने के लिए बाजार में तो बेचा जा सकता है। बीज प्रमाणीकरण निदेशक संजय मरवाह ने कहा कि विभाग ने फील्ड में तमाम अधिक ारियों को निर्देश दे दिए हैं कि वे इस बीमारी से निपटने के लिए केंद्र के दिशा निर्देर्शों का पालन करवाएं।
विभाग को इस बीमारी के उपचार के लिए निर्देश दे दिए हैं और छह महीने के भीतर संकट हल कर दिया जाएगा। यह कोई बड़ा मसला नहीं है।
-रामलाल मारकंडा, कृषि मंत्री