मनोज कुमार मिश्र
एक तरफ इन प्रवासी मतदाताओं के ज्यादा समर्थन से लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत से दिल्ली की सरकार पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि इस बार दिल्ली सरकार 25 करोड़ रुपए खर्च करके 1100 छठ घाट बनाएगी। सभी घाटों पर शामियाने, रोशनी, साउंड सिस्टम, एलईडी स्क्रीन, पीने का पानी, शौचालय, साफ-सफाई, बिजली का पर्याप्त बंदोबस्त, एंबुलेंस इत्यादि की व्यवस्था की जा रही है। सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
केजरीवाल ने दावा किया कि उनकी सरकार बनने से पहले 2014 में 2.5 करोड़ रुपए खर्च करके दिल्ली सरकार 69 घाट तैयार कराती थी। भाजपा केंद्र सरकार और नगर निगम में अधिकारियों के शासन के कारण अलग-अलग प्रयास करके प्रवासी लोगों में अपनी पैठ बढ़ाने में लगी है। इस बार छठ पर्व पर पहले से ज्यादा बिहार और झारखंड के लिए विशेष रेलगाड़ी चलवा रही है। हरियाणा में भाजपा सरकार होने से यमुना नदी में छठ के लिए पानी पहले ही छोड़ा जा रहा है।
नगर निगम पहले से अधिक साफ-साफाई करवा रहा है। तीनों निगमों का एकीकरण होने के बावजूद तीनों निगमों के भंग होने तक केंद्र की सरकार के बूते तीनों मेयर सक्रिय हैं। कांग्रेस में ज्यादा दम बचा नहीं लेकिन उसके नेता भी सक्रिय हैं। अब दिल्ली में प्रवासियों की आबादी इतनी हो गई है कि हर चौथा-पांचवां आदमी पूर्वाचंल का प्रवासी माना जाता है।
दिल्ली की 70 में से 50 विधानसभा सीटों पर प्रवासियों की तादाद 20 से 60 फीसद तक हो गई है। यही हाल दिल्ली नगर निगमों की सीटों में है। 250 सीटों में डेढ़ सौ से ज्यादा सीटों पर पूर्वांचल के प्रवासी निर्णायक बन गए हैं। अब प्रवासियों की तीसरी-चौथी पीढ़ी दिल्ली में पैदा होने के कारण वह भी दिल्ली का मतदाता बन गई है। वैसे तो हर दल के साथ प्रवासी जुड़े हैं लेकिन बड़ी आबादी पहले कांग्रेस से, अब कुछ सालों से आम आदमी पार्टी (आप) से जुड़ गई है। उन्हें अपने पक्ष में करने के लिए ही बिहार के मूल निवासी, सांसद और लोकप्रिय भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को भाजपा ने तीन साल तक दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाया था। उसका भाजपा को लाभ भी हुआ। वे अब भी बतौर सांसद दिल्ली में छठ पर्व भव्य तरीके से मनवाने के लिए अन्य नेताओं के साथ सक्रिय हैं।
माना जा रहा है कि कभी भी निगम चुनाव की घोषणा हो जाएगी। इसलिए भी राजनीतिक दलों में प्रवासियों को लुभाने लिए होड़ ज्यादा लगी है। भाजपा लगातार चौथी बार जीत हासिल करने में लगी है, वहीं प्रचंड बहुमत से दिल्ली में सरकार चला रही आप इस चुनाव को जीतकर अपनी लोकप्रियता का प्रमाणपत्र हासिल करना चाहती है। उसके नेताओं को लगता है कि नगर निगमों में काबिज होने के बिना दिल्ली पर शासन करना अधूरा है।
कांग्रेस भी इसी बूते अपने लोगों को खड़ा करने में लगी है। छठ पर्व तो हर साल होता है, पिछले साल भी हुआ और इस साल भी होगा। राजनीतिक दल प्रवासियों को यह संदेश देने में लगे हैं कि वे वास्तव में इस पर्व का कितना सम्मान करते हैं और वे पर्व को सही तरीके के संपन्न करवाने के लिए कितने चिंतित हैं।
राजनीतिक दलों की इसी होड़ से छठ करने वालों की सहुलियतें बढ़ती जा रही हैं। वैसे अपने बूते बिना पुरोहित के किए जाने वाले इस लोक पर्व के लिए लोगों को शासन से ज्यादा अपेक्षा रहती भी नहीं है। पर्व के लिए साफ-सफाई, साफ पानी, रोशनी और सुरक्षा की अपेक्षा ही सरकार से होती है। पर्व करने वाले तो खुद के श्रमदान से घाटों को तैयार करते हैं और अपनी व्यवस्था पर घाटों पर आते-जाते हैं।
पूर्वांचल के प्रवासियों के एकतरफा समर्थन से 15 साल सरकार चलाने वाली कांग्रेस को उनकी अहमियत समझ में आई। साल 2000 में शीला दीक्षित की सरकार ने दिल्ली में छठ पर्व पर ऐच्छिक अवकाश घोषित किया और बिहार के बाहर पहली बार दिल्ली में मैथिली-भोजपुरी अकादमी बनी। बिहार मूल के महाबल मिश्र के 1998 में विधायक बनने का लाभ कांग्रेस को मिला। वे इसी बूते 2009 में पश्चिमी दिल्ली से सांसद बने। अब उनके पुत्र विनय मिश्र के आप विधायक बनने और कांग्रेस के कमजोर होने के बाद उनकी राजनीतिक दिशा उलझ गई है।
भाजपा को भले ही यह राजनीति देर से समझ आई हो लेकिन उसके एक प्रदेश अध्यक्ष मांगेराम गर्ग ने भाजपा सरकार में ही सरकारी छठ घाट बनवाने शुरू कर दिए थे, जिसमें कांग्रेस सरकार ने तेजी दिखाई और आप सरकार ने तो सरकारी छठ घाटों की तादाद काफी बढ़ा दी। इतना ही नहीं निजी घाटों को भी सरकार से कई सहुलियतें दिला दीं। भाजपा ने राष्ट्रपति शासन के दौरान दिल्ली में छठ के दिन को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की। छठ पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने वाला दिल्ली बिहार और झारखंड के बाद तीसरा राज्य बना।
कहा जाता है कि पूर्वांचलियों की आबादी के दबाव में 2014 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी को टिकट दिया गया और सांसद बनने पर 2016 में दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। विधानसभा चुनाव में 1998 से पराजित होती रही भाजपा लगातार तीन बार से नगर निगमों में काबिज होती आ रही है। 2017 में भाजपा को जिताने की जिम्मेदारी मनोज तिवारी को मिली।
उन्होंने 32 टिकट बिहार मूल के उम्मीदवारों को दिलवाया, उनमें से 20 चुनाव जीते। 1993 में दिल्ली में सरकार बनने के बाद लोकसभा के अलावा किसी भी चुनाव में भाजपा को 36-37 फीसद से ज्यादा वोट नहीं मिले। 1993 के विधानसभा चुनाव में उसे 43 फीसद वोट मिले थे। बावजूद इसके 2007, 2012 और 2017 के नगर निगमों के चुनाव में भाजपा चुनाव जीत गई। उसे गैर भाजपा मतों के विभाजन का लाभ मिला और उसके अपने वोट बैंक में कमी नहीं हो पाई।
भाजपा की देखा-देखी कांग्रेस ने भी 2020 के विधानसभा चुनावों से पहले अक्तूबर में बिहार मूल के क्रिकेट खिलाड़ी कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाया, पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा था। कांग्रेस में भ्रम बना रहा और कांग्रेस को चुनाव में साढ़े चार फीसद वोट मिले। चुनाव नतीजों के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने सुभाष चोपड़ा ने इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह पर कांग्रेस ने चौधरी अनिल कुमार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया।