उत्तराखंड में हर राजनीतिक दल आजकल राज्य में रह रहे पूर्व सैनिकों को साधने में लगा हुआ है। इस सीमांत राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के हर घर से एक व्यक्ति सेना में जरूर मिलेगा और राज्य के हर गांव में पूर्व फौजी जरूर मिलेंगे। फौज में जाने का इस पर्वतीय राज्य के लोगों में जुनून है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था सेना की नौकरियों पर ज्यादा निर्भर है। इस राज्य में सेना के कई कैंट बने हुए हैं। भारतीय सेना में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रही गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं बटालियन का गौरवशाली इतिहास रहा है।
राज्य के सैनिक कल्याण निदेशालय के आंकड़ों मुताबिक राज्य में पूर्व सैनिकों की तादाद दो लाख से ज्यादा है, जबकि भारतीय सशस्त्र सेनाओं में सेवारत सैनिकों की तादाद एक लाख से ज्यादा है। इसके अलावा केंद्रीय सुरक्षा बलों में भी उत्तराखंड के नौजवान बड़ी तादाद में कार्यरत हैं। गढ़वाल राइफल्स के चंद्र सिंह गढ़वाली का आजादी की लड़ाई में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय थल सेना को उत्तराखंड ने दो सेना प्रमुख जनरल विपिन चंद्र जोशी और जनरल बिपिन रावत दिए हैं। भारतीय सेना में इस पर्वतीय राज्य की कई प्रतिभाएं सेना, अर्धसैनिक बलों और देश की उच्च गुप्तचर एजंसियों में प्रमुख पदों पर कार्यरत हैं।
इस साल भारतीय सैन्य अकादमी में क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे ज्यादा 42 सैन्य अफसर देश को दिए। इस तरह हर साल देश की सीमाओं की रक्षा के लिए उत्तराखंड के जांबाज युवा सैनिक अपना बलिदान देते हैं। इसी को ध्यान रखते हुए प्रधानमंत्री ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड को पांचवें धाम सैन्य धाम की संज्ञा दी थी और उत्तराखंड की भाजपा की राज्य सरकार ने देहरादून में सैन्य धाम बनाने का एलान किया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सैन्य धाम की स्थापना के लिए भूमि पूजन भी किया।
उत्तराखंड की जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए भाजपा ने सबसे पहले सेना के रिटायर्ड फौजी अफसर भुवन चंद खंडूरी को 1990 के लोकसभा चुनाव में पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट से टिकट दिया। फौजी पृष्ठभूमि वाले राज्य के खंडूरी पहले पूर्व फौजी मुख्यमंत्री बने। उत्तराखंड राज्य का गठन होने के बाद राज्य में फौजियों की भावनाओं का दोहन करने के लिए लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं में एकाएक सैनिकों के प्रति अपार प्रेम जागृत होने लगा। कुछ महीने पहले आम आदमी पार्टी ने 2022 के चुनाव के लिए कर्नल अजय कोठियाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया तो भाजपा व कांग्रेस में भी सैनिकों के प्रति अत्यधिक सम्मान देने की भावना बलवती हो गई।
अपने पूर्व सैनिक बोट बैंक को बचाने के लिए भाजपा ने तीन महीने में दो बार मुख्यमंत्री बदल डाले और पूर्व सैनिक के बेटे पुष्कर सिंह धामी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। साथ ही पूर्व फौजी गणेश जोशी को सैनिक कल्याण मंत्री बनाकर सैनिकों की भावनाओं को आगामी विधानसभा चुनाव में भुनाने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। भाजपा सरकार पूरे प्रदेश में पूर्व सैनिक और शहीद सम्मान यात्रा निकाल रही है।
देहरादून में जिस सैन्य धाम का भूमि पूजन किया गया उस धाम में राज्य के सभी पूर्व सैनिकों के घरों की मिट्टियों का मिश्रण किया गया ताकि राज्य के सभी पूर्व सैनिकों की भावना इस सैन्य धाम से मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से जुड़ी रहे। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में पूर्व सैनिकों और शहीद सैनिकों के सम्मान का मुद्दा जितनी जोर-शोर से उठ रहा है, उतना कभी पहले नहीं उठा। इस मुद्दे को उठाने का ोय आप को जाता है। आप और भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी इस मुद्दे पर कूद पड़ी है।