गजेंद्र सिंह

उत्तर प्रदेश में भूमिगत जल इतना दूषित हो गया है कि गहराई तक खोदे गए नलकूप भी जहरीला पानी उगल रहे हैं। पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय की ओर से जारी 2018-19 की रिपोर्ट से पता चलता है कि एक निश्चित गहराई तक खोदे गए नलकूपों का पानी तो दूषित है ही, साथ ही अधिक गहराई के नलकूपों से भी प्रदूषित पानी की आपूर्ति हो रही है। पानी में आर्सेनिक व फ्लोराइड जैसे घातक रसायन शामिल हैं साथ ही कीटाणु युक्त पानी भी आ रहा है। फील्ड टेस्टिंग किट (एफटीके) यानी मौके पर उपकरण से पानी की जांच की रिपोर्ट के अनुसार जिले की गुणवत्ता प्रोफाइल में यूपी के 54 जिलों में दूषित पानी पाया गया है। यूपी की राजधानी लखनऊ और मुख्यमंत्री के शहर गोरखपुर का पानी भी प्रदूषित है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी गांवों में पाइप से पेयजल आपूर्ति का जिम्मा उठाया है और इसके लिए नीति भी जारी कर दी गई है, लेकिन अधिकतर जिलों के गांवों में एक साल के दौरान हुई पानी की जांच में यह पीने योग्य नहीं पाया गया है।

मंत्रालय की ओर से चलाए जा रहे राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत हर महीने देशभर के गांवों में पानी की जांच की जा रही है। यह जांच प्रयोगशाला के अलावा एफटीके से निश्चित पैमाने के तहत की गई है। 2018-19 की रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ के मलीहाबाद ब्लॉक के रसूलपुर गांव में गहराई तक खोदे गए नलकूप के पानी में आर्सेनिक पाया गया है। पानी की जांच अप्रैल में राज्य जल निगम की प्रयोगशाला में की गई थी। इसी तरह गोरखपुर के गोला, गोपालपुर, पिपरौली, बराहुआ, कलेसर, सहजनवा और भरसर ब्लॉक के गांवों में भी आर्सेनिक पाया गया है। भाटहट, ब्रह्मपुर, गोला, पिपरौली, सहजनवा, सरदार नगर ब्लॉक के 43 गांवों में मानक से ज्यादा लौह तत्त्व पाए गए हैं। आगरा के चार ब्लॉक में घातक स्तर का फ्लोराइड पाया गया है। बलिया के दो ब्लॉक के 5 गांवों में आर्सेनिक मिला है। इन्हीं ब्लॉक के नौ अन्य गांवों में लौह तत्त्व अधिक पाया गया है।

लखनऊ के आसपास के जिले भी प्रदूषित पानी का दंश झेल रहे हैं। पानी और पर्यावरण के लिए काम करने वाले विशेषज्ञ डॉ डीके सक्सेना का कहना है कि आर्सेनिक जहां त्वचा रोग, और कैंसर को बढ़ावा देता है वहीं फ्लोराइड से हड्डी और दांतों के टेढ़ेपन की शिकायत होती है। दिल्ली की संस्था में पानी की गुणवत्ता पर काम करने वाले नवीन बताते हैं कि एफटीके जांच में निश्चित पैरामीटर पर ही जांच हो सकती है, लेकिन प्रयोगशाला में जांच के दौरान पैमाने में शामिल रसायनों के अलावा भी कई अन्य दूषित कारकों का पता चलता है।

लखनऊ में पानी से जुड़ी संस्था में 20 साल से काम कर रहे विशेषज्ञ पुनीत श्रीवास्तव बताते हैं कि कम गहराई में निजी तौर पर लोग नलकूप लगाते हैं, लेकिन अधिक गहराई में नलकूप सरकारी योजना या फिर ग्राम पंचायत स्तर पर ही लगता है। जांच में यह भी देखा जा रहा है कि मानक के अनुसार लगाए गए नलकूप का पानी भी दूषित पाया जा रहा है।

जांच में फिसड्डी है यूपी: मंत्रालय की ओर से 2018-19 की एफटीके (फील्ड टेस्टिंग किट) टेस्टिंग रिपोर्ट भी जारी की गई है। इसके मुताबिक यूपी ने सबसे कम 16 स्रोतों की जांच की है जबकि जांच के लिए स्रोतों की संख्या सबसे अधिक 25 लाख 79 हजार 974 है। इस रिपोर्ट में 18 जगह रसायन और 18 जगह कीटाणु युक्त पानी पाया गया।