पुनर्वास कार्यक्रम के तहत आत्मसमर्पण करने वाले पूर्व कश्मीरी आतंकियों की पत्नियों ने अब भारत की नागरिकता मांगी है। जम्मू-कश्मीर सरकार से शनिवार (04 मई) को एक अपील की। उन्होंने सरकार से कहा कि या तो उन्हें भारत की नागरिकता दी जाए या फिर निकाल दिया जाए। महिलाओं ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को पत्र लिखकर अपनी दुर्दशा को ठीक करने की मांग की है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदर्शनकारियों में शामिल जेबा ने कहा, ‘राज्य की नागरिकता लेना हमारा अधिकार है। हम भारत सरकार और राज्य सरकार से अपील करते हैं कि या तो हमें नागरिकता दी जाए या फिर निकाल दिया जाए।’ ये महिलाएं पिछले एक दशक के दौरान अपने-अपने पतियों के साथ कश्मीर आई थीं। उनका आरोप है कि राज्य सरकार उन्हें पाकिस्तान या पाक अधिकृत कश्मीर में रह रहे उनके परिवारों से मिलने के लिए यात्रा से जुड़े दस्तावेज नहीं दे रहीं।
साफिया नाम की एक दूसरी महिला ने कहा, ‘हमारा मुद्दा मानवता से जुड़ा है। हमसे कई वादे किए गए थे लेकिन किया कुछ नहीं। यहां हमारी कोई पहचान नहीं है। हममें से कई महिलाएं अवसाद से ग्रसित हैं। हमारे लिए कारवां-ए-अमन (श्रीनगर-मुजफ्फराबाद) बस सेवा की तरह पहल होनी चाहिए ताकि हम अपने परिवारों से मिल सकें। भारत-पाकिस्तान के बीच विश्वास बहाली के लिए यह बस सेवा 2005 में शुरू हुई थी, जो हर 15 दिनों में चलती है।’
पीड़ित महिलाओं ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मानवाधिकार संगठन से भी अपील की है कि उनकी मांगों पर संज्ञान लें। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 2010 में कश्मीरी लड़ाकों के लिए पुनर्वास नीति का ऐलान किया था, इनमें उन लोगों को शामिल किया गया था जो 1989 से 2009 के बीच पाकिस्तान से आए थे। सैकड़ों कश्मीरी हथियार चलाने के लिए नियंत्रण रेखा पार करके आए और फिर नेपाल बॉर्डर के रास्ते वापस चले गए। इसके चलते 2016 के बाद केंद्र सरकार ने यह नीति वापस ले ली।