दूरदर्शन स्पांसर प्रोग्राम शुरू कर चुका था और बाहर के निर्माताओं से कार्यक्रम बनवा रहा था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी की इच्छा के बाद दूरदर्शन पर ‘बुनियाद’, ‘भारत एक खोज’ और ‘मालगुडी डेज’ जैसे धारावाहिकों का प्रसारण हुआ। मगर जिन दो धारावाहिकों ने दूरदर्शन पर अपार कामयाबी पाई वे थे ‘रामायण’ और ‘महाभारत’। दरअसल इस कदम को उठाने की जरूरत इसलिए भी पड़ी थी कि राजीव गांधी की सरकार पर तुष्टिकरण के आरोप लग रहे थे और उसे लगता था कि इसका खामियाजा उसे 1989 के चुनावों में उठाना पड़ सकता था।

1984 में पूर्ण बहुमत से राजीव गांधी की सरकार बन गई थी मगर उसके सामने समस्याओं का अंबार था। सिख विरोधी दंगे और भोपाल गैस त्रासदी के बाद शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद में पलट देने के कारण गांधी की आलोचना हो रही थी। फिर उन्होंने ‘रामायण’ धारावाहिक शुरू करवा दिया।
सरकार के मंतव्य को ध्यान में रखते हुए एसएस गिल ने सितंबर 1985 में दो लोगों को पत्र लिखे। ये दोनों लोग पत्रकार थे मगर पत्रकारिता छोड़ मुंबई में फिल्में बना रहे थे। एक थे चंद्रमौली चोपड़ा यानी रामानंद सागर और दूसरे थे बलदेव राज चोपड़ा यानी बीआर चोपड़ा। गिल ने सागर से कहा कि वे ‘रामायण’ पर दो हफ्तों में एक पायलट एपिसोड बना कर मंडी हाउस में जमा करें।

रामानंद सागर ने पायलट बना कर जमा कर दिया। मगर दूरदर्शन में एक ऐसा तबका भी था जिसे हड़बड़ी में लिया यह निर्णय रास नहीं आ रहा था। उसका मानना था कि दूरदर्शन की धर्मनिरपेक्ष छवि है। ‘रामायण’ का प्रसारण दूरदर्शन पर 25 जनवरी, 1987 से हुआ। तब देश में टीवी सेट्स की संख्या बहुत कम थी लिहाजा एक टीवी के ढेर सारे लोग बैठ कर बड़ी श्रद्धा से सामूहिक तौर पर ‘रामायण’ देखते थे। 1985 में जब भगवान राम छोटे परदे पर उतरे, तो मानो सब कुछ ठहर गया। सदियों से रामलीला की खुराक पर पले लोग सारे काम छोड़ कर रविवार की सुबह टीवी पर फूल चढ़ा, अगरबत्ती लगा 35 मिनटों तक मंत्रमुग्ध बैठे रहते थे। रामायण 55 देशों के 65 करोड़ लोगों तक पहुंची। 25 जनवरी,1987 से 31 जुलाई,1988 तक ‘रामायण’ प्रसारित हुई और इसके दो महीने के बाद दूरदर्शन पर ‘महाभारत’ का प्रसारण शुरू कर दिया गया। विपक्ष सरकार की इस रणनीति की आलोचना कर रहा था मगर लाचार भी महसूस करते हुए इसका तोड़ खोज रहा था। 1989 के चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस से निकले विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी, जिसे 85 सीटें जीतने वाली भाजपा ने समर्थन दिया।