अदालत में 11 हजार बस चलाने का हलफनामा देने के बावजूद पास आज तक पांच हजार से ज्यादा बसें सड़कों पर नहीं चल पाई। जो सरकार आठ किलोमीटर बस के लिए अलग रास्ता (बीआरटी कोरिडोर) नहीं चला पाई वह 90 लाख से ज्यादा दिल्ली के और हर रोज एनसीआर आने वाले लाखों वाहनों को सम और विषम नंबर पर चला पाएगी।
पिछली बार 13 फरवरी 2014 को जनलोक पाल बिल के दूसरे रूप को बिना केन्द्र की अनुमति विधान सभा में पेश करने से रोकने के लिए उप राज्यपाल ने विधान सभा को संदेश भेजा, जिससे नाराज होकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया था।इस्तीफा देते हुए केजरीवाल ने कहा था कि दोबारा सरकार में आने के 24 घंटे के भीतर वे रामलीला मैदान में विधान सभा का सत्र बुलाकर इसे पास करेंगे। वे जन लोकपाल पर एक नहीं सौ सरकार कुरबान करने को तैयार हैं। इस बार सरकार बनने के नौ महीने बाद चौतरफा दबाव पड़ने पर सरकार आनन फानन में ऐसा बिल लाई जो कभी पास ही नहीं हो पाए। पिछली बार की तरह केन्द्र सरकार की अनुमति के बिना लाई। अगर ऐसा ही करना था तो वही बिल लाते जिसपर उनके पुराने साथी एकजुट थे।
प्रदूषण से सभी चिंतित हैं और उसके लिए सरकार के कदम उठाने पर सभी साथ देना भी चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी भी उसी दिशा में है। उन्होंने कोई फैसला नहीं दिया है। जो फैसला दिल्ली सरकार ने लिया है वह किस कदर अव्यवहारिक है इसका इससे बढ़िता उदाहरण क्या हो सकता है कि खुद मुख्यमंत्री दूसरे ही दिन कह दिया कि अगर लोगों को परेशानी होगी तो इसे नहीं लागू किया जाएगा। प्रदूषण कम करने के लिए इस सरकार ने पिछले नौ महीने में कोई ठोस काम नहीं किया है। हर महीने 22 तारीख को दिल्ली के एक इलाके में कुछ घंटे कार न चलने से ज्यादा कुछ अंतर नहीं आने वाला है। इसी
दिल्ली सरकार कार लाबी के दबाव में महज आठ किलोमीटर की बनी बीआरटी कोरिडोर को तोड़ने पर करोड़ों रूपए खर्च करने की घोषणा कर दी। वाहन खरीदने वालों पर पार्किंग होना अनिवार्य नहीं कर पाई ,न ही एक परिवार के लिए एक कार से ज्यादा खरीदने पर पावंदी नहीं लगा पाई, वह सरकार दिल्ली की करीब नब्बे लाख और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) से हर रोज आने वाली लाखों वाहनों को सम और विषम नंबर पर चलाने की हास्यापद फैसला कर ली है। सरकार को फैसला लेने से पहले यह तो तय करना चाहिए था कि हर रोज घर से कामकाज के लिए निकलने वाले डेढ़ से दो करोड़ लोग किस सार्वजनिक परिवहन प्रणाली से सफर करेंगे। सरकार के इस फैसले से सड़क पर वाहनों की संख्या घटने के बजाए बढ़ेगा क्योंकि जो सामर्थवान हैं वे एक के बजाए सब और विषम नंबर की दो गाड़ियां खरीदेंगें।