राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सूचना की मांग के लिए 40 रुपए की मांग को कायम रखने के वास्ते मुकदमे की फीस के रूप में 33 हजार रुपए का भुगतान किया, जबकि इस बारे में सूचना देने के लिए संगठन में एक वरिष्ठ अधिकारी ने निर्देश दिया था। केंद्रीय सूचना आयोग ने इस आशय की जानकारी दी है।
सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कार्यकर्ता आरके जैन ने एनजीटी से यह जानना चाहा था कि उसे कितनी संख्या में आरटीआइ आवेदन प्राप्त हुए। इनमें से कितने का निपटारा किया गया। लेकिन प्रथम अपीलीय प्राधिकार के आदेश के बाद भी केंद्रीय जनसंपर्क अधिकारी ने 20 पन्नों की सूचना प्रदान करने के लिए 40 रुपए का भुगतान करने पर जोर दिया। पर्यावरण से जुड़ी इस शीर्ष निकाय की खिंचाई करते हुए सूचना आयुक्त श्रीधर आर्चायुलु ने कहा कि एनजीटी की ओर से आरटीआइ के जवाब में दी गई जानकारी से ऐसा लगता है कि वह 20 पन्नों की जानकरी देने के संबंध में 40 रुपए के अपने दावे के लिए 33 हजार रुपए से अधिक खर्च करने को तैयार है, जबकि इस बारे में प्रथम अपीलीय प्राधिकार सूचना देने का निर्देश दे चुकी है।
आर्चायुलु ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि यह राशि भारत के लोगों की है और अधिकारी इसके ट्रस्टी जैसे हैं, जिन्हें इस धनराशि को जनहित को ध्यान में रखते हुए ही खर्च करना चाहिए। यह देखना चाहिए कि ये बेकार नहीं जाए। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को जरूरी कार्रवाई के लिए इस आदेश को एनजीटी के अध्यक्ष के संज्ञान में लाने का निर्देश दिया।
उन्होंने कहा, ‘आयोग यह सिफारिश करती है कि एनजीटी के सम्मानित अध्यक्ष, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं, जिम्मेदार अधिकारी से राशि वसूलने पर विचार करे, अगर इस मामले में एनजीटी ने कोई राशि खर्च की है और उसे एनजीटी के पक्ष में जमा कर दें।