नई दिल्ली अब विश्व का सबसे प्रदूषित शहर नहीं रहा। लेकिन चार अन्य भारतीय शहर सात सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। दिल्ली को 2014 में सबसे प्रदूषित शहर का दर्जा मिला था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गुरुवार (12 मई) को यह बात एक रिपोर्ट में कही और चेतावनी दी कि विश्व के शहरी निवासियों में से 80 प्रतिशत से अधिक खराब हवा में सांस लेते हैं। इस बीच पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली देश की कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं ने कहा है कि वायु प्रदूषण अब एक ‘राष्ट्रीय संकट’ है और इस पर लगाम लगाने के लिए सख्त और आक्रामक उपायों की जरूरत है। डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट पर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने राजधानी वासियों को बधाई दी है।

वर्ष 2008 से 2013 के बीच एकत्रित डाटा पर आधारित डब्ल्यूएचओ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली 11वां सबसे प्रदूषित शहर है जबकि चार अन्य भारतीय शहर ग्वालियर (दो), इलाहाबाद (तीन), पटना (छह) और रायपुर (सात) सबसे अधिक वायु प्रदूषण वाले सात शहरों में शामिल हैं। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि शहर के 80 प्रतिशत से अधिक शहरवासी खराब हवा में सांस लेते हैं। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार नई दिल्ली को 11वां स्थान मिला है जिसे 2014 में वायु प्रदूषण के मामले में सबसे खराब शहर का दर्जा मिला था।

कई उपायों के बाद प्रदूषण के लिहाज से दिल्ली में यह बदलाव सामने आया है जो केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों की ओर से उठाए गए। इसमें पर्यावरणीय उपकर लगाया जाना और सम-विषम वाहन योजना लागू करना शामिल है। हालांकि 1.4 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले चयनित मेगा शहरों के नमूने में नई दिल्ली सबसे प्रदूषित है जिसके बाद काहिरा और बांग्लादेश की राजधानी ढाका का स्थान है। नई दिल्ली में वायु की गुणवत्ता को पीएम 2.5 की मौजूदगी से मापा गया जिसका वार्षिक औसत 122 है। भारत के 10 अन्य शहर भी विश्व के 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। डब्लूएचओ की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में थे। रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली का पीएम 10 का वार्षिक औसत 229 था। ईरान में जाबोल सबसे खराब हवा वाले शहर के तौर पर सामने आया है।

इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, ‘डब्लूएचओ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली अब सबसे प्रदूषित शहर नहीं। दिल्लीवासियों को बधाई। उधर ग्रीनपीस इंडिया ने कहा कि रिपोर्ट ने नई दिल्ली के साथ ही ग्वालियर, इलाहाबाद, पटना और रायपुर जैसे शहरों में वायु प्रदूषण के मुद्दे के समाधान की तत्काल जरूरत पर फिर से बल दिया है।

बहरहाल दुनिया के सात सबसे प्रदूषित शहरों में चार भारतीय शहरों के शामिल होने की खबरें आने के बाद पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली देश की कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) ने गुरुवार (12 मई) को कहा कि वायु प्रदूषण अब एक ‘राष्ट्रीय संकट’ है और इस पर लगाम लगाने के लिए सख्त और आक्रामक कार्रवाई की जरूरत है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने कहा कि देश के सभी शहरों में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए आक्रामक और सख्त कार्रवाई की दरकार है। सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता चौधरी ने कहा, यह संकेत देता है कि वायु प्रदूषण अब एक राष्ट्रीय संकट बन चुका है। चौधरी ने कहा, भारत को तत्काल राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता योजना बनाने की जरूरत है जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि सभी शहरों में ऐसी स्वच्छ वायु कार्ययोजना हो जिसे समयबद्ध तरीके से लागू कर स्वच्छ हवा के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

साल 2014 में सबसे प्रदूषित बताए जाने के बाद इस बार नई दिल्ली के 11वें पायदान पर होने के मुद्दे पर सीएसई ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में वायु की गुणवत्ता में ‘सुधार’ हुआ है, लेकिन अभी काफी लंबा सफर तय करना है। ग्रीनपीस इंडिया ने कहा कि प्रदूषण राजनीतिक सीमाएं नहीं मानता। उसने कहा कि वह बार-बार एक ‘अति-आवश्यक और विस्तृत’’ राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्ययोजना बनाने की अपील कर चुका है। ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनील दहिया ने कहा, प्रदूषण राजनीतिक सीमाएं नहीं मानता। प्रदूषित हवाएं लंबी दूरी तय करती हैं। वायु प्रदूषण एक राष्ट्रीय संकट है और इस पर लगाम लगाने के लिए एक ठोस राष्ट्रीय कार्य योजना की दरकार है।

इस बीच, विश्व के शहरों में रहने वाली 80 फीसद से ज्यादा आबादी के खराब वायु गुणवत्ता वाली सांस लेने संबंधी रिपोर्ट जारी करने के बाद डब्लूएचओ ने दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों और भारत से कहा है कि वे वायु की गुणवत्ता में सुधार को अपनी ‘शीर्ष’ प्राथमिकता बनाएं, क्योंकि बढ़ता वायु प्रदूषण अरबों लोगों की सेहत जोखिम में डाल रहा है। डब्लूएचओ की दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय निदेशक पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा, वायु की गुणवत्ता में सुधार डब्लूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के देशों में शीर्ष स्वास्थ्य और विकास प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि प्रदूषण का बढ़ता स्तर अरबों लोगों की सेहत जोखिम में डाल रहा है।