चुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस की लड़ाई थमने का नाम नहीं ले रही है। रविवार को cwc की मीटिंग में हांलांकि सोनिया गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी, जिससे कांग्रेस में एकता बनी रहे। लेकिन लगता नहीं है कि उनके इस कदम से कोई खास फर्क पड़ा है। हां, ये बात जरूर है कि इन नेताओं ने अपने तेवर थोड़े नरम कर लिए हैं।

इसकी बानगी तब दिखी जब जी 23 नेताओं ने अपनी मीटिंग के वेन्यू को आखिरी लम्हे में बदल डाला। दरअसल, पहले सारे नेता सहमत हुए थे कि मीटिंग कपिल सिब्बल के घर पर रखी जाए। लेकिन रविवार के बाद सिब्बल ने जिस तरह से गांधी परिवार को पार्टी नेतृत्व से बेदखली को मुद्दा बनाया उससे तमाम नेता एक मत नहीं दिखे। बुधवार की मीटिंग का वेन्यु आखिरी समय में बदलकर गुलाम नबी आजाद का घर कर दिया गया। वहां मीटिंग हुई तो हैरत करने वाली रही।

पहले जो नेता अपने तेवर बागी करने के लिए जाने जाते थे। इस बार उनमें कुछ और नाम भी जुड़े। सबसे खास बात है कि गांधी परिवार को अक्सर बचाने वाले शशि थरूर इस गुट में शामिल हुए। उससे भी ज्यादा चौंकाने वाला रहा मणि शंकर अय्यर भी गांधी परिवार से किनारा करते दिखे। वो भी मीटिंग में शामिल हुए। उनके अलावा पंजाब के कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परणीत कौर भी इस मीटिंग में शामिल हुईं। आजादके घर डिनर पर जुटने वाले नेताओं में उनके खुद के अलावा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, भूपेंद्र हुड्डा, पृथ्वी राज चव्हाण, राज बब्बर, अखिलेश प्रसाद सिंह, पीजे कुरियन, थरूर, अय्यर शामिल रहे।

समीक्षकों का कहना है कि बुधवार को हुए घटनाक्रम से साफ है कि बागी नेता कांग्रेस में विघटन नहीं चाहते। सिब्बल के स्वर देखकर लग रहा था कि वो आरपार की लड़ाई लड़ने पर आमाना हैं। लेकिन इस गुट के नेता संदेश दे रहे हैं कि वो गांधी परिवार से आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड़ में फिलहाल नहीं। वो नेतृत्व पर दबाव बनाकर सुधार के पक्ष में हैं। पार्टी फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो और पुराना गौरव हासिल करे, ये ही इन नेताओं के तेवरों से दिख रहा है।

लेकिन फिर भी थरूर और अय्यर का वहां पहुंचना अखरने वाला ही रहा। उनकी मौजूदगी से साफ है कि वो भी मान रहे हैं कि जीत के लिए केवल गांधी परिवार पर भरोसा करके बैठे नहीं रहा जा सकता है। इसके लिए हाल फिलहाल के दौर में कुछ तो अलग करना होगा।