सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (11 जून, 2019) को बंगाल में भाजपा की युवा शाखा की लीडर प्रियंका शर्मा और सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी से संबंधित मामलों में भेद बताया। प्रियंका शर्मा को बीते दिनों बंगाल में टीएमसी एक स्थानीय नेता की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया थ। शर्मा पर आरोप था कि उन्होंने प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आपत्तिजनक मीम बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए उन्हें 14 मई जमानत दे दी। हालांकि जेल से रिहाई के लिए कोर्ट ने उनसे लिखित में माफी मांगने की शर्त रखी। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी वहां खत्म हो जाती है जहां दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन होता है।
मामले में सुनवाई करते हुए जज इंदिरा बनर्जी और अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि ‘शर्मा के मामले में हमने सोशल मीडिया में पोस्ट (मीम) देखा है, जो कि आपत्तिजनक प्रवृति का था और इसीलिए हमने उनसे माफी मांगने के लिए कहा।’ दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत कनौजिया को तुरंत जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा, ‘संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार पवित्र है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता।’ कनौजिया को यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था।
हालांकि कोर्ट ने कनौजिया को जमानत देते हुए साफ किया कि इसका यह मतलब नहीं कि कोर्ट उनके ट्वीट या पोस्ट का स्वीकृति दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कनौजिया की पत्नी जगीशा अरोड़ा की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। उन्होंने पति की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा, ‘कभी-कभी तो हमें भी सोशल मीडिया का दंश सहना पड़ता है और यह किसी समय पर उचित भी होता है, कभी गलत भी होता है। मगर हमें अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना पड़ता है।’ इस दौरान यूपी सरकार की तरफ से मौजूद अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है क्योंकि आरोपी न्यायिक हिरासत में है। इस पर पीठ ने कहा, ‘कानून बहुत स्पष्ट है। किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। अगर यह स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है तो कोर्ट हाथ बांधकर नहीं रह सकता है।’