पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने मंगलवार को आरोप लगाया कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (एनआरसी) की कवायद राजनैतिक उद्देश्यों से की गई है ताकि लोगों को बांटा जा सके। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे देश में रक्तपात और गृह युद्ध छिड़ जाएगा। उन्होंने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से उनके आवास पर मुलाकात की और राष्ट्रीय नागरिक पंजिका विधेयक को संशोधित करने या नया विधेयक लाने की मांग की। मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने कहा कि गृहमंत्री ने भरोसा दिया है कि लोगों को परेशान नहीं किया जाएगा। इस मुलाकात से पहले कांस्टीट्यूशन क्लब में एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि यह पार्टी देश को बांटने का प्रयास कर रही है।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘एनआरसी राजनैतिक उद्देश्यों से किया जा रहा है। वे (भाजपा) लोगों को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। इस स्थिति को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश में गृह युद्ध, रक्तपात हो जाएगा।’ ममता बनर्जी ने हालात का जायजा लेने के लिए अपनी पार्टी के सांसदों की टीम असम भेजी है। दिल्ली से लौट कर वे खुद भी जाएंगी। ममता बनर्जी ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के परिवार के सदस्यों के नाम भी एनआरसी में शामिल नहीं हैं। उन्होंने भाजपा को चुनौती दी कि वह बंगाल में एनआरसी लागू करने का प्रयास करे और कहा कि वह राज्य में कभी सत्ता में नहीं आ सकती है।

‘भारत में हमारा कोई नागरिक नहीं’

असम राष्ट्रीय नागरिक पंजिका पर भारत में मच रहे राजनीतिक हंगामे के बीच बांग्लादेश से अहम प्रतिक्रिया आई है। बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन उल हक ने बांग्लादेश ने घुसपैठिए बताए जा रहे लोगों से पल्ला झाड़ लिया है और इसे भारत का आंतरिक मसला बताते हुए कहा कि बाकी पेज 8 पर उनका कोई लेना-देना नहीं। राष्ट्रीय नागरिक पंजिका में असम के 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं और उन्हें बांग्लादेशी घुसपैठिए बताते हुए वापस भेजने की मांग का मुद्दा तेज हो गया है।
बांग्लादेश के सूचना मंत्री हसन उल हक ने कहा कि जिनके नाम एनआरसी में नहीं हैं, वे लोग (40 लाख) हमारे नहीं हैं।

हो सकता है कि वे असम के पड़ोसी राज्यों के हों। इस मामले में बांग्लादेश की भागीदारी का कोई मामला नहीं बनता। हक ने कहा कि भारत सरकार ने बांग्लादेश को आधिकारिक तौर पर सूचना नहीं दी। इसलिए उनकी सरकार को आधिकारिक बयान देने की भी कोई जरूरत नहीं है। बांग्लादेश के मंत्री ने कहा कि आजादी की लड़ाई के वक्त सहमति समझौते के तहत बांग्लादेश के लोगों ने भारत में शरण ली थी, लेकिन बाद में भारत ने उन्हें वापस भेजा। इसके बाद भारत में किसी भी बांग्लादेशी शरणार्थी के होने की रिपोर्ट उनकी सरकार के पास नहीं है।