लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना के उस आरोप को खारिज किया है, जिसमें उन्होंने अहम कानूनों को बनाते समय संसद में व्यापक चर्चा न किए जाने की बात कही थी। इंडियन एक्सप्रेस से साक्षात्कार में बिड़ला ने कहा कि ये आरोप सही नहीं है। उनके कार्यकाल में हर अहम बिल पर व्यापक चर्चा कराई जाती रही है। उनका कहना था कि सब कुछ रिकॉर्ड पर है और दस्तावेज कभी झूठ नहीं बोलते। उनके तीन साल के कार्यकाल में ,संसद की कार्य प्रणाली में सुधार आया है। डिबेट लगातार हो रही हैं।
खास बात है कि सीजेआई के आरोपों से पहले विपक्ष भी संसद में बहस न कराने का आरोप लगाता रहे है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार का रवैया तानाशाही भरा रहा है। महत्वपूर्ण बिलों को बगैर चर्चा के पास करा दिया जाता है। हालांकि बिड़ला का कहना है कि उनके तीन साल के कार्यकाल में लोकसभा में बहस के लिए तय समय से ज्यादा अलाट किया गया है। question hour में पहले जहां चार सवाल ही लिए जाते थे, अब ये संख्या 6 हो चुकी है।
बीते तीन सालों के दौरान जीरो ऑवर में 4648 मामले उठाए गए। रूल 377 के तहत 92-93 फीसदी मामलों पर जवाब मिला। बजट या धन्यवाद प्रस्ताव पर भी पहले की अपेक्षा ज्यादा सांसदों ने भागीदारी की। 17वीं लोकसभा के दौरान माहौल काफी बदला है। अपने ही मंत्रियों के जवाबों से बीजेपी सांसदों की नाखुशी जताने के सवाल पर उनका कहना था कि वो इस बात को स्पीकर से कह सकते हैं। मेरा काम है कि सभी सदस्यों को उनके सवालों का संतोषजनक जवाब मिले। जब भी असंतोष दिखता है तो वो ट्रेजरी बेंच को सूचित कर देते हैं। कई बार उन्होंने खुद मंत्रियों को सही जवाब देने की नसीहत दी है।
एक सवाल पर उनका कहना था कि संसद कभी कार्यपालिका के काम में दखल नहीं देती लेकिन अगर उनकी तरफ से संसद के कामों में दखल दिया जाता है तो वो सुनिश्चित करते हैं कि ऐसा न हो। दो विधायकों को राज्यसभा चुनाव में वोटिंग के अधिकार से वंचित करने के मसले पर उनका कहना था कि पीठासीन अधिकारियों की बैठक में ये मामला उठाया जा सकता है। वैसे भी ये राज्य का मसला है। कोर्ट ने भी इस पर अपना फैसला दिया था। हम कोर्ट के फैसले में दखल नहीं दे सकते। जब कोई अरेस्ट होती है तब कोर्ट उस पर फैसला करती है। संसद इस तरह के मामले में कुछ नहीं कर सकती।
CJI ने 75वें स्वतंत्रता दिवस पर जताई थी चिंता
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना 75वें स्वतंत्रता दिवस पर एक कार्यक्रम में संसद में बिना बहस पास होने वाले बिलों पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने सांसदों के डिबेट से बचने के रवैए पर नाखुशी जताई। उन्होंने पुराने समय से तुलना करते हुए कहा कि पहले संसद के दोनों सदन वकीलों से भरे होते थे। उनका कहना था कि आज के दौर में स्थितियां अलग हैं। यह नीतियों और उपलब्धियों की समीक्षा करने का समय है।
सीजेआई ने कहा कि इस समय संसद में कानून पर ठीक से बहस नहीं हो रही है। हमें यह नहीं पता चलता कि कानून बनाने का उद्देश्य क्या है। यह व्यवस्था जनता के लिए ठीक नहीं है। पुराने समय में संसद में अच्छी बहस होती थी। आज के समय में ऐसा न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। पहले कानूनों पर चर्चा और विचार किया जाता था। इससे कानूनों को समझने में मदद मिलती थी।