वित्त मंत्री अरुण जेटली ने देश में सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने पर बल देते हुए आज कहा कि दुनिया अब ‘हिंदू वृद्धि दर’ पर भारत का मजाक नहीं उड़ाती। उन्होंने कहा कि आर्थिक उदारीकरण से देश की वृद्धि तेज करने में मदद मिली है।

उन्होंने कहा कि आज सुधारों का समर्थन करने वाले लोग इसके विरोधियों से बहुत अधिक हैं। तीव्र आर्थिक वृद्धि से देश गरीबी दूर करने वाली योजनाओं के लिए अधिक धन पैदा कर सकता है। जेटली ने यहां स्कॉच सम्मेलन में कहा, ‘स्वतंत्रता के करीब 40 साल बाद तक भारत की वृद्धि दर 2-2.5 प्रतिशत तक सीमित थी। इसे हिंदू वृद्धि दर बताकर हमारा और हमारे देश का विश्व में मजाक बनाया जाता था। जो देश धीमी वृद्धि दर कर रहे होते थे और उससे संतुष्ट रहते थे, उन्हें व्यंग्य में हिंदू वृद्धि दर वाला कहा जाता था।’

गौरतलब है कि 1980 के दशक तक देश की वृद्धि दर कम थी। उसे अर्थशास्त्री हिंदू वृद्धि दर कहते थे। 1991 के उदारीकरण के बाद से भारत अपेक्षाकृत तेज गति से वृद्धि दर्ज कर रहा है और इनमें कुछ वर्षों में तो वृद्धि 10 प्रतिशत के ऊपर चली गयी। उन्होंने कहा कि यदि अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक तेजी से वृद्धि दर्ज करती है तो लोगों को ज्यादा रोजगार मिलते हैं, संपत्ति सृजन होता है, लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला जा सकता है और फिर एक संसाधन सपन्न देश कई तरह के गरीबी रोधी कार्यक्रम तैयार कर सकता है।

उन्होंने कहा, ‘यदि हम सुधार के मार्ग का अनुसरण करते हैं तो हम इतिहास में नया अध्याय लिखने में कामयाब हो सकेंगे।’ जेटली ने कहा कि 1970 और 1980 के दशक के अर्थशास्त्र की पुस्तकों में भारत की निम्न वृद्धि दर पर व्यंग्य किया जाता था। उन्होंने कहा, ‘1991 भारत के लिए निर्णायक क्षण था। यह भारत का दुर्भाग्य था कि जो चीज 20 साल पहले शुरू होनी चाहिए थी वह 1991 में शुरू हुई। यदि इसकी शुरूआत उससे 20 साल पहले हुई होती तो भारतीय अर्थव्यवस्था के वो दशक बर्बाद नहीं होते।’ उन्होंने कहा कि उन दशकों में प्रतिबंधात्मक प्रणाली पर जोर था। सरकार उत्पादकता बढ़ाने और धन सृजन पर ध्यान देने के बजाय अपर्याप्त संसाधनों के वितरण पर ध्यान देती रही जिससे गरीबी बढ़ी।

जेटली ने अफसोस जताया कि अभी कुछ साल पहले भारत 1991 से पहले के दौर में लौटने लगा था जिसमें वृद्धि के मुकाबले नारेबाजी को प्राथमिकता अधिक दी जाने लगी थी। उन्होंने इसी संदर्भ में कहा, ‘एक बार फिर उत्पादकता बढ़ाने के बजाय मौजूदा संसाधनों के वितरण पर जोर। लेकिन आखिरकार इस विचार को खारिज कर दिया गया और भारत ने महसूस किया कि आप जब तेजी से वृद्धि दर्ज करते हैं तभी आप अधिक से अधिक लोगों की हालत सुधार सकते हैं और तरह-तरह के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू करने की स्थिति में होते हैं।’