असम के दरंग जिले के कोपाटी बाजार में दुकानदार अचानक दुकानों के शटर गिर जाते हैं। सड़क पर जा रहे लोग रुकने लगते हैं और एक छोटी सी भीड़ एक जगह पर रुक जाती है। दरअसल, एक नुक्कड़ नाटक बरबस ही उनका ध्यान अपनी तरफ खींच लेता है। एक शराबी सड़क पर गिरा हुआ है। वो बोलता दिख रहा है कि उसे कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन लेने की जरूरत नहीं है। उसे उसकी इम्युनिटी शराब से ही मिल जाती है। उसके बगल में मौजूद महिला अपने पति की हरकतों से आजिज आकर सारे मामले को हंसी मजाक की शक्ल देने की कोशिश करती है तो सड़क पर मौजूद लोगों के चेहरों पर भी मुस्कुराहट देखने को मिल जाती है।

शराबी की एक्टिंग कर रहा शख्स कहता है कि उसने सुना है कि वैक्सीन लेने के बाद दो साल के भीतर लोग मर जाते हैं। उसे मरने का कोई शौक नहीं है, इसलिए वो वैक्सीन नहीं लेना चाहता। 10 मिनट के स्ट्रीट प्ले को अंतरांगना गुस्ती ने बनाया था। ये असम का एक लोकल थिएटर ग्रुप है। इसका उद्देश्य वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में मौजूद भ्रांति को दूर करना है। उन्हें बताना है कि कोरोना की वैक्सीन लेने के बाद कोई भी मरने नहीं जा रहा। बल्कि इसे लेने के बाद वायरस से लड़ने की शक्ति मिलेगी, जो बेहद जरूरी है।

तीन हेल्थ वर्करों की कोशिशों के बाद सड़क पर गिरा शराबी उठता है और कहता दिखता है कि वो अपनी वैक्सीन की डोज लेने जा रहा है। आप लोग भी ऐसा ही करो। प्ले के डायरेक्टर पंकज सहारिया ने शराबी का रोल अदा किया था। उनका कहना है कि असम के रिमोट एरिये में वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचक है। उनका कहना है कि अखबारों के 100 विज्ञापनों और रेडियो पर होने वाले अनाउंसमेंट से ज्यादा असरदार नुक्कड़ नाटक होते हैं।

इस तरह के लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी (M-RITE) प्रोजेक्ट को भारत में जॉन स्नो इंडिया प्रा. लि. ने लागू किया है। USAID का इसे सपोर्ट है। भारत सरकार ने भी प्रोजेक्ट को अपनी मंजूरी दी है। प्रोजेक्ट का ध्येय सरकार की उन लोगों तक पहुंचने में सहायता करना है जो वैक्सीन लेने से हिचकते हैं। हाशिए पर मौजूद इन लोगों को देश के 18 सूबों में वैक्सीन दी जानी है।

स्थानीय लोगों से तालमेल और सरकारी सहयोग के चलते असम के रिमोट इलाकों में ये प्रयास लोगों को बताने में कारगर रहा कि वैक्सीन के कितने फायदे हैं। कोरोना की वैक्सीन को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान पिछले दो सालों से चल रहा है। लेकिन प्रिकाशनरी डोज को लेकर लोगों के मन में हिचक है। कोपाटी बाजार की 60 साल की नोनी देवी की बातों से ये बात साफ झलक जाती है। उनका कहना है कि कोरोना वैक्सीन की दो डोज वो ले चुकी हैं। लेकिन तीसरी डोज की उन्हें जरूरत नहीं लगती, क्योंकि अब वायरस का उतना असर नहीं है। लेकिन इस नुक्कड़ नाटक के बाद सौमेश्वरी सैकिया को भी लगता है कि प्ले असरदार रहा है।

प्रोजेक्ट मोमेंटम नोनी देवी और सौमेश्वरी सैकिया जैसी बहुत सारी महिलाओं को ये बताने में कामयाब रहा कि कोरोना वैक्सीन कितनी जरूरी है। असम में ये प्रोजेक्ट LEHS|WISH वाधवानी इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल हेल्थकेयर) HelpaAge India, TCI फाउंडेशन के साथ मिलकर चल रहा है।

project momentum
असम के रिमोट इलाकों में महिला को समझातीं प्रोजेक्ट मोमेंटम की हेल्थ वर्कर। (एक्सप्रेस फोटोः टोरा अग्रवाल)

स्ट्रीट प्ले में शराबी शख्स बताता है कि वैक्सीन से उसे बुखार होगा तो घर कौन चलाएगा। उसकी ये बात सैंकड़ों किलीमीटर दूर स्थित ब्रह्मपुत्र के रेतीले टीले में भी सुनाई देती है। 48 साल का मुजीबुर कहता है कि वैक्सीन लेने के बाद उसे दो दिनों तक बुखार रहा। ऐसे में उसकी रोजी रोटी का क्या होगा। हालांकि हालात में थोड़ा बहुत सुधार हुआ। लेकिन ब्रह्मपुत्र की रेत में बसे सुदूर इलाकों में ये बात आम है कि वैक्सीन लेने के बाद उन्हें बैडरेस्ट करना होता है। ऐसे में उनके सामने अपना घर चलाने में दिक्कतें आती हैं।

रहमान नाम का श्ख्स बताता है कि ये कठिन जीवन है। सोनितपुर जिले के छार में रहने वाला शख्स बताता है कि पहले कैसे उसके घर को नदी ने छीन लिया। अपने छार के वैक्सीन आउटरीच प्रोग्राम में लाईन में खड़ा शख्स बताता है कि कैसे वैक्सीन की पहली डोज लेने के लिए उसने अपने खर्च पर नाव से यात्रा की थी। तभी वो सरकारी वैक्सीन सेंटर में जाकर कोरोना की पहली डोज ले सका। उसका कहना है कि हेल्थ वर्कर्स ने वैक्सीन ड्राईव बोट से उनके इलाके में आकर बूस्टर डोज की अहमियत के बारे में बताया।

हालांकि हेल्थ वर्कर्स के लिए ऐसे इलाकों में पहुंचना कोई आसान काम नहीं था। छार के इलाकों में पहुंचना ही बहुत बड़ा काम है। वैसे सरकार नाव का जुगाड़ तो कर देती है। लेकिन बहुत से इलाके ऐसे भी हैं जहां पर नाव के जरिये भी नहीं पहुंचा जा सकता है। वैक्सीन बोट प्रोजेक्ट असम के पांच जिलों में चल रहा है। हालात देखकर लगता है कि इसे काफी दूर तक जाना है। सोनितपुर जिले के चीफ मेडिकल एंड हेल्थ ऑफिसर बिमान शर्मा कहते हैं कि उनके सामने दो तरह की चुनौतियां होती हैं। पहली लोगों तक पहुंचने की और फिर उन्हें वैक्सीन के लिए मनाने की।

गर्भवती महिलाओं के सामने एक अलग तरह की हिचक होती है तो दूसरे लोगों के सामने दूसरी तरह की। लेकिन प्रोजेक्ट मोमेंटम दूर दराज के इलाकों में जाकर लोगों की दुविधा दूर करने का काम करता है। हेल्थ वर्कर्स भी लोगों को अपने तरीके से मनाते हैं। प्रोजेक्ट मोबाइल वैन से लोगों को समझाने में काफी मदद मिलती है। दरंग जिले के खरपेटिया गांव के 76 वर्षीय निजाम अली कहते हैं कि ये सारे प्रयास काफी कारगर हैं। उनका कहना है कि जो लोग वैक्सीन लेने से हिचकते हैं, उनके लिए ये काफी कारगर है।

Disclaimer: मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी प्रोजेक्ट को भारत में जॉन स्नो इंडिया प्रा. लि. ने लागू किया है। USAID का इसे सपोर्ट है। भारत सरकार ने भी प्रोजेक्ट को अपनी मंजूरी दी है। प्रोजेक्ट का ध्येय सरकार की उन लोगों तक पहुंचने में सहायता करना है जो वैक्सीन लेने से हिचकते हैं। हाशिए पर मौजूद इन लोगों को देश के 18 सूबों में वैक्सीन दी जानी है। इसके लिए स्वयं सेवी संगठनों से तालमेल कर प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जा रहा है। (विज‍िट करें: https://usaidmomentum.org/)