चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बताया कि चुनावों में हिंदू- मुस्लिम एक फैक्टर जरुर होता है लेकिन उसकी वजह से किसी का यह कहना कि वह पूरे चुनाव हिंदू-मुस्लिम होने की वजह से हार गया, यह गलत है और डेटा इसके बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने वोटों के ध्रुवीकरण पर कहा कि इसे इनता बड़ा बना दिया गया, जितना यह जमीन पर नहीं है। वोटों के ध्रुवीकरण का तरीका पिछले 15 सालों में बदला है लेकिन उसका इम्पैक्ट अभी भी वही सीमित है।
इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम “ई-अड्डा” में बातचीत करते हुए ध्रुवीकरण के बारे में उन्होंने कहा कि जब हम किसी बड़े ध्रुवीकरण के बाद हुए चुनावों के डाटा को देखते हैं तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि आप किसी भी समुदाय के 50 फीसदी से अधिक लोगों का ध्रुवीकरण नहीं कर सकते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुआ कहा कि यदि मान लीजिये किसी चुनाव में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के वोटों का ध्रुवीकरण हो जाता है तो क्यों भाजपा को लोकसभा चुनाव में 38 फीसदी ही वोट पाया। यदि सभी लोगों ने केवल ध्रुवीकरण के आधार पर ही वोट दिए हैं तो भाजपा को 80 फीसदी वोट मिलने चाहिए। ये बाकी के करीब 40 फीसदी वोट कहां गए।
आगे उन्होंने कहा कि इसका सीधा मतलब है कि आधे से अधिक लोगों ने बिना किसी ध्रुवीकरण फैक्टर के वोट दिया है। इस आधार पर हमारा मानना है कि किसी भी परिस्थिति में 50 फीसदी से अधिक वोटों का नहीं हो सकता है। फिर कैसे कोई कह सकता है कि वह ध्रुवीकरण के कारण हार गया।
मेरा अपना अनुभव बताता है कि चुनाव से पहले हर नेता मानता है कि वह जीत रहा है। लेकिन जब आप चुनाव के बाद मिलेंगे तो वह कहते हैं कि हिंदू- मुस्लिम की वजह से चुनाव हार गए। वह कभी नहीं बताएंगे कि इलाके में जनता के बीच छवि, भू- माफिया होने या अन्य किसी कारण से लोग उनका समर्थन नहीं कर रहे हैं।
भाजपा की उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत के बारे में प्रशांत किशोर ने कहा कि वह हिन्दुत्व, राष्ट्रवादी छवि और लाभार्थियों के कारण मिली है।