राजनीतिक दलों के बड़े नेता भले ही आसपास के राज्यों के चुनाव में व्यस्त हों लेकिन दिल्ली में निगम चुनाव को लेकर स्थानीय स्तर पर चुनावी घमासान शुरू हो गया है। इस बार राज्य निर्वाचन आयोग ने जो सीटों के लिए जो रोटेशन जारी किया है उससे सभी पुराने धुरंधर नेताओं के होश उड़ गए हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में अपने आप ही नेताओं की छंटनी हो गई है। बेदिल को पता चला कि भाजपा पहले चुनाव में सभी चेहरों में बदलाव की वजह से जीतकर सत्ता में आई थी।

इस बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस भी मजबूती से मैदान में है। इसलिए पार्टी महिला नेताओं को इस बार के चुनाव में तव्वजो दे सकती है। इस हालात में तय प्रावधान के अतिरिक्त सामान्य सीटों पर भी महिला दावेदार नजर आएंगे। इसलिए अब दिल्ली नगर निगम की 272 सीटों के लिए सभी दलों के सक्रिय नए चेहरे आगे आ गए हैं और मजबूरी में पुराने नेता भी अब इनके साथ नजर आ रहे हैं।

हम उठाएंगे आवाज

दिल्ली पुलिस और दिल्ली नगर निगमों में कई ऐसे संगठन हैं जिसकी न तो कोई पूछ है और न ही इनका कोई नामलेवा है। लेकिन इनके स्वयंभू नेता अपनी राजनीति चमकाते रहते हैं वे दावा करते हैं कि अपने लोगों की आवाज उठाने के लिए वे हमेशा खड़े हैं। नगर निगम में तो बेदिल के सामने ऐसे राजनीति चमकाने वाले नेताओं को देखने का लंबा अनुभव है लेकिन बीते दिनों जब दिल्ली पुलिस के एक संगठन के स्वयंभू प्रधान से मुलाकात हुई तो माजरा सामने आया। बेदिल ने जब उनसे कहा कि दिल्ली पुलिस में तो संगठन बनाने की अनुमति नहीं है फिर आप कैसे राजनीति कर रहे हैं।

छूटते ही उन्होंने कहा कि वो तो प्रशासनिक स्तर पर मनाही है न, लेकिन प्रजातांत्रिक देश में हमें कोई अपने कर्मचारियों के हितों की बात करने के लिए संगठन बनाने से थोड़े ही रोक सकता है। इसे कहते हैं अपनी राजनीति चमकते रहना चाहिए, संगठन तो आगे भी बनता बिगड़ता रहेगा।

हुआ मोह भंग

उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले चरण के खत्म होने के बाद दल बदल कर दूसरे दलों में अपना राजनीतिक भविष्य तलाशने पहुंचे नेताओं ने फिर से पुराना चोंगा पहन लिया है। लाख कोशिशें और खर्चा करने के बाद भी टिकट ना मिल पाने के बाद ऐसे नेता अपनी कार, घर समेत अन्य जगहों पर लगाए गए झंडे और बैनर अब उतारने लगे हैं। ये नेता फिर से घर वापसी कर दोबारा अपनी नेतागिरी कायम रखने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कड़ी में औद्योगिक महानगर में एक प्रमुख राजनीतिक दल का टिकट मिलने की उम्मीद लगाए एक संगठन के मुखिया भी अब फिर फेडरेशन और आरडब्लूए की राजनीति को चमकाने की जुगत में हैं।

चालान का पैसा

कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने में मास्क की महत्ता से किसी को गुरेज नहीं लेकिन इसकी आड़ में नागरिक सुरक्षा संगठन के ही लोग परेशान करने लगे तो चर्चा सड़क पर होने लगती है। एशिया की सबसे पाश मानी जाने वाली लुटियन दिल्ली का बाजार- ‘खान मार्केट’ की पार्किंग में इन दिनों यह चर्चा आम है। दर असल यहां के रेस्तरां से निकलने वाले कई लोगों का चलान कटा। पता चला कि उनकी बिना मास्क वाले फोटो लेने के लिए कई बार महकमे को लोग मानो घात लगाकर बैठे रहते हैं।

आप रेस्तरां से निकले नहीं की आपका फोटो लिया गया और सामने वाले ने 2000 रुपए की मांग कर दी। पीड़ित परिवारों की कोई दलील कोई सुनने को तैयार नहीं। हद जब बढ़ी तो कई लोगों ने, स्थानीय व्यापारियों ने, उनके संगठनों ने मीडिया में आवाज उठाई। बहरहाल अब गेंद सरकार के पाले में हैं। क्योंकि लोगों का कहना है कि -मास्क जरूरी है, चलान भी जरूरी है। लेकिन इसके कार्यपालन व कार्यपालकों की व्यवहारिकता को लेकर एक समीक्षा भी जरूरी है।

अदला-बदली

आगामी निगम चुनाव में पार्षदों की सीटों पर इस बार नाम किसी का और काम किसी और का वाली बात नजर आ सकती है। क्योंकि सीटों के रोटेशन के बाद से महिलाओं की सीट पुरुषों को और पुरुषों की सीट महिलाओं को दे दी गई। इस कारण से उम्मीदवारों को सारे पोस्टर दोबारा बनवाने पड़ गए। दरअसल हुआ यूं कि बेदिल जब घर की गली से गुजर रहा था उसने देखा कि कुछ दिनों पहले जिस निगम पार्षद सीट के लिए पुरुष उम्मीदवार की फोटो हाथ जोड़ने की मुद्रा में लगी थी उस पर अब महिला उम्मीदवार का चेहरा बड़ा-बड़ा छापा गया है। और पुरुष को कोना दे दिया गया। अब पहचान बनी रहनी भी तो जरूरी है न। इस बारे में जब बेदिल ने एक उम्मीदवार से पूछा तो उन्होंने बताया कि अब सीट तो घर आनी ही है चाहे जैसे भी आए। वे जीत जाएंगी तो काम हम कर देंगे।

अण्णा दिल्ली आओ

भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा जन आंदोलन करने वाले अण्णा हजारे केंद्र की सत्ता बदलने के बाद से खबरों से गायब हैं। महाराष्ट्र के जिस गांव से वे आते हैं वहां गाहे-बगाहे उनकी चर्चा होती रहती है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अभी कोई मुद्दा उनके हाथ नहीं लगा है। हालांकि जिस भ्रष्टाचार को हटाने के लिए उन्होंने बड़ा आंदोलन किया था वह एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। अब अण्णा महाराष्ट्र सरकार की आबकारी नीति के खिलाफ वहां अनशन करने जा रहे हैं। उसको देखते हुए दिल्ली में एक पार्टी ने उनको पत्र भेज दिया।

अब ये पत्र गंभीर है या चुटकी लेकिन उसका लब्बोलुआब यही है कि दिल्ली की जिस सत्ता को हटाकर उन्होंने अपने ‘लाडले शिष्य’ को मुख्यमंत्री बनवाया अगर मौका मिले तो उनके खिलाफ भी अनशन कर दो, क्योंकि दिल्ली की आबकारी नीति तो इसे नशे की राजधानी बना देगी। पत्र अण्णा के पास पहुंचता है कि नहीं और अगर पहुंच गया तो अण्णा दिल्ली आते हैं कि नहीं यह समय बताएगा लेकिन देशवासी एक बार फिर कह रहे हैं ‘अण्णा दिल्ली आओ।’
बेदिल