कांग्रेस के लिए मिशन 2024 की राह बेहद मुश्किल होती दिख रही है। 10 साल तक लगातार देश की सत्ता चलाने वाली सोनिया गांधी का हाल इस समय बेहाल है। आलम ये है कि नेशनल हेराल्ड केस में गांधी परिवार को समन भेजा गया तो किसी भी सहयोगी दल ने कोई प्रतिक्रिया तक नहीं जताई। केवल शिवसेना ने सामना में केस का जिक्र कर गांधी परिवार के प्रति थौड़ी बहुत सहानुभूति जताने की कोशिश की।

हालांकि राहुल गांधी ने यहां तक कहा कि बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस अकेली ही काफी है। क्षेत्रीय दलों के पास न तो विचारधारा है और न ही सेंट्रलाइज अप्रोच। उनका ये बयान क्षेत्रीय दलों की पेशानी पर बल डालने के लिए काफी है। लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि कांग्रेस आज की तारीफ में क्षेत्रीय दलों के पीछे चलने वाली पार्टी बनती जा रही है।

कांग्रेस की मुश्किलों का ये आलम है कि कभी उसके सहयोगी रहे सारे दल उसे आंखें दिखाने से बाज नहीं आ रहा। झारखंड मुक्ति मोर्चा से पार्टी राज्यसभा सीट देने की गुहार लगाती रही लेकिन होमंत सोरेन ने एक न सुनी। कांग्रेस को बताए बगैर ही उन्होंने अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया। बिहार में पहले ही विधानसभा उपचुनाव के दौरान लालू यादव की पार्टी गांधी परिवार को आंखें दिखा चुकी है। उप चुनाव दो सीटों पर था पर राजद ने कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी। पार्टी ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे पर दोनों जमानत जब्त करा बैठे।

असम की बात करें तो राज्यसभा चुनाव के दौरान aiudf विधायकों की क्रॉस वोटिंग की वजह से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। तमिलनाडु में डीएमके से दोस्ती पर कांग्रेस अक्सर इठलाती थी। लेकिन असेंबली चुनाव के दौरान स्टालिन ने उसे 25 सीटें देकर औकात दिखा दी। उससे पहले चुनाव में पार्टी को 41 सीटें मिली थीं। लेकिन थकी हारी कांग्रेस ने 25 सीटों पर भी चुनाव लड़ने का फैसले मन मसोसकर कर ही लिया।

हरियाणा और राजस्थान के हालात भी ठीक नहीं हैं। हरियाणा के राज्यसभा चुनाव को लेकर आईलाकमान जीत के प्रति आश्वस्त तक नहीं दिख रहा। अपने पसंदीदा रणदीप सुरजेवाला को उसे राजस्थान कोटे से टिकट देना पड़ा। माना जा रहा है कि राजस्थान में राज्यसभा चुनाव के बाद कोई फेरबदल हो सकता है। हाईकमान नहीं चाहता कि राजस्थान का हाल पंजाब जैसा हो।