कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आ जाए और आयोजक ही मौजूद न रहे तो ‘अतिथि महोदय’ का गुस्सा लाजमी है! और अगर मुख्य अतिथि सत्तारूढ़ दल का प्रभावशाली व्यक्ति हो तो भी क्या कहने! ऐसा वाकया दिखा बीते दिनों तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित एक समारोह में। कार्यक्रम में भाजपा में बड़े पद पर तैनात एक नेता को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। कार्यक्रम में समय से पहुंचे नेताजी तब हक्के-बक्के रह गए जब आयोजक व निमंत्रणदाता ही आयोजन स्थल से गायब थे। बहरहाल, नेताजी ने चालक को गाड़ी गुमाकर वापसी का आदेश दे दिया।

जैसे ही यह खबर आयोजकों को लगी, नेताजी को फोन पर मनाने की कोशिश हुई लेकिन सारी कोशिश बेकार रही! बहरहाल कार्यक्रम हुआ, दूसरे अतिथियों ने मंच संभाला तो आयोजक रूठे को मनाने में लगे रहे! किसी ने ठीक ही चुस्की ली, जन नेताओं की भी गजब समस्या है, देर से पहुंचे तो दिक्कत और समय से पहुंचे तो दिक्कत! खारकर तब, जब ‘ऐसे’ आयोजक हों।

दोस्ती के नाम

निजाम बदलते देर नहीं लगती कि लोग साधने के लिए तैयार बैठे होते हैं। यूपी के मंत्रिमंडल में नए मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंपी गई तो औद्योगिक महानगर नोएडा के हिसाब से लोग अपने संबंधित मंत्री को साधने के लिए कमर कस लिए। अब उद्योग से जुड़े इस नगर के लिए संबंधित मंत्री को जब अपनी ही जाति का पाया तो समाज के लोगों में शामिल कई बड़े लोग दरबार में हाजिरी लगाने लगे।

ये समाज के बड़े लोग सपा में भी हैं और बसपा-कांग्रेस मेंं भी। लेकिन अपना काम निकलवाने के लिए मंत्री जी के पास गुलदस्ता लेकर पहुंच रहे हैं और फोटो खिंचवा रहे हैं। अब फोटो खिंच गई तो उसका उपयोग भी होना चाहिए। यह धड़ाधड़ प्रशासन और प्राधिकरण के अधिकारियों के पास पहुंच रहे हैं। अब इसका अर्थ यह है कि अगर नजदीकी प्रचारित हो जाए तो काम बनने में देर नहीं होती।
मास्क का दौर
राजधानी में बढ़ते कोरोना के मामलों के बीच एक बार फिर लोग चिंतित हो उठे हैं। लेकिन यह चिंता न तो मास्क के रूप में दिखाई दे रही है और न ही सामाजिक दूरी के रूप में। बस चिंता इस बात की है कि कुछ बंद न हो जाए। हालांकि कोरोना के मामले घटने पर लोगों को मास्क लगाने की हिदायत फिर भी दी गई थी, वो बात अलग है कि जुर्माना नहीं लग रहा था। लेकिन अब फिर से मास्क का समय आ रहा है।

आने वाले दिनों में हो सकता है कि मास्क को लेकर दिशानिर्देश जारी हो जाएं। अभी तो लोग मास्क लेकर चल ही नहीं रहे हैं या फिर चल भी रहे हैं तो अपने जेब या बैग में रखे होते हैं। लेकिन हां, मास्क बेचने वाले फिर थोड़े उत्साह में दिख रहे हैं। पुरानी दिल्ली में एक दुकानदार के मास्क धूल फांक रहे थे। बेदिल ने बिक्री की स्थिति पूछी तो बिगड़कर बोला, कोरोना आ जाए तो यही मास्क खरीदने के लिए लोग दुकान खोजते फिरते हैं। अभी मुंह से मास्क हटाए चल रहे हैं।
नजर का नींबू
कभी प्याज की चर्चा होती थी, क्या पता था कि एक दिन नींबू इतना खट्टा हो जायेगा कि उसके आगे प्याज के आंसू सूख जाएंगे। महंगाई के इस आलम में नींबू को ही महंगा होना था, वो भी तब जब इसके शरबत बनाकर पीने के दिन आ रहे थे। और तो और बुरी नजर से बचाने वाला नींबू भी आजकल खुद टेढ़ी नजर का शिकार हो गया है। बुरी नजर से बचाने का दावा करने वाले कुछ लोग नींबू मिर्ची एक धागे में लगाकर बेचते हैं।

ये आपको घर से लेकर दफ्तर और चौराहों पर भी मिल जाएंगे। एक वाकया पिछले दिनों पूर्वी दिल्ली की एक कालोनी में दिखा। यहां हर रोज कालोनी में खड़ी होने वाली कार और घरों के दरवाजों पर कुछ लोग नींबू मिर्ची टांग कर जाते हैं। अभी तक इसके लिए लोग पांच-दस रुपए लगाने वाले ले रहे थे और तीन से चार दिन बाद नया नींबू मिर्ची टांगते थे, लेकिन जबसे नींबू के दाम आसमान पर पहुंचे तो नजरबट्टू बेचने वालों ने समझा कि उनके दिन बहुर गए।

अब एक नींबू मिर्ची की कीमत पांच रुपए से बढ़ाकर सीधे 20 से 25 रुपए पहुंच गई। कालोनी के एक निवासी को नींबू मिर्ची वाले से बेदिल ने कहते सुना, ‘अब 15-20 दिन बाद नींबू मिर्ची टांगा करो। जरूरी है कि ताजे नींबू से ही बुरी नजर दूर रहे। सूखे नींबू से भी बुरी नजर से बच सकते हैं।’ यह सुनकर विक्रेता के अरमान खट्टे हो गए।
-बेदिल