गुजरात में आरक्षण के लिए शुरू हुए पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को दिल्ली में ज्यादा महत्त्व नहीं मिला। हार्दिक पटेल दिल्ली में एक, जिन बिरादरियों-गूर्जर, कुर्मी और कोइरी को पटेलों से साथ जोड़कर देश भर में आंदोलन चाहते हैं लेकिन इन बिरादरियों को यहां पहले से ही अन्य पिछड़ा वर्ग में आरक्षण मिला हुआ है।

दूसरे, जिस तरह गुजरात में पटेल सबसे मजबूत किसान कौम है, ठीक उसी तरह ये तीनों बिरादरी अपने-अपने इलाकों में हर तरह से मजबूत हैं। इतना ही नहीं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गृह राज्य गुजरात में ललकारने वाले हार्दिक पटेल को ये तीनों बिरादरियों के लोग इसलिए भी साथ नहीं दे सकते क्योंकि उनमें किसी भी दल से ज्यादा भाजपा की पकड़ है।

दिल्ली में पहली बार गूर्जर बिरादरी से सांसद बने रमेश बिधूड़ी भाजपा के हैं और आस-पास के इलाकों में भी इन तीनों बिरादरियों के अनेक नेता भाजपा के साथ पूरे दम-खम से हैं। गूर्जर बिरादरी के वरिष्ठ कांग्रेस नेता चतर सिंह का कहना था कि यह संभव ही नहीं है कि हर तरह से मजबूत दिल्ली के गूर्जर किसी और को नेता मान ले। और पिछड़े वर्ग के वे लोग क्यों किसी आरक्षण आंदोलन में शरीक होंगे, जिन्हें पहले से ही आरक्षण मिल रहा हो।

दिल्ली करीब चार सौ गांवों के बीच में बसी है। अब भी करीब दो सौ गांव मौजूद हैं। ज्यादातर गांवों में जाट और गूर्जरों का ही बोलबाला रहा है। दिल्ली में आबादी बढ़ने से भले ही गूर्जरों की खेती खत्म हुई लेकिन जमाने ने उन्हें अमीर बना दिया है। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में गूर्जरों के बिना राजनीति किया जाना संभव नहीं है। जाटों में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता चौधरी चरण सिंह ने आखिर -आखिर तक जाटों के साथ गूर्जर और मुसलमानों को साथ लाने की कोशिश जारी रखी। वे तभी सफल रहे जब तीनों का उन्हें साथ मिला।

गुजरात में धूम मचाने वाले महज 22 साल के हार्दिक पटेल यह सोच कर रविवार को दिल्ली आए होंगे कि उन्हें गूर्जर नेताओं का समर्थन मिलेगा और वे इसी सहारे देश भर में कुर्मी और कोइरी आदि समान बिरादरियों को जोड़ कर आरक्षण का आंदोलन चलाएंगे। दिल्ली में उन्हें झटका लगा। पटपड़गंज के र्गुजर महासभा के भवन में महासभा के नेता यशवीर सिंह, रामशरण भाटी और नत्थू सिंह जैसे नेता तो मौजूद थे लेकिन उन्होंने बिरादरी की ओर से कोई आश्वासन नहीं दिया उल्टे उनके सवालों के घेरे में हार्दिक फंस कर रह गए। उनका सवाल था कि क्यों गूर्जर उनका साथ दे? उन्हें किस तरह से अपना मानें, उन्होंने अन्य पिछड़ा आयोग में अपनी अर्जी दी है क्या? बिना तैयारी आरक्षण मिलने का कहीं वह हाल तो नहीं होगा जो हरियाणा में जाटों का हुआ।

प्रेस कांफ्रेंस में भी हार्दिक पटेल आरक्षण आंदोलन की कोई रूपरेखा पेश नहीं कर पाए। भाजपा नेता रमेश बिधूड़ी का कहना था इस तरह से गैर कानूनी आंदोलन चलाने से आरक्षण नहीं मिलेगा। देश के प्रधानमंत्री खुद ओबीसी हैं, उनके चलते तमाम सहुलियतें मिली हुई हैं। गूर्जर राष्ट्रवादी सोच के लोग हैं वे इस तरह के आंदोलन में शामिल नहीं होंगे। वहीं कांग्रेस नेता चतर सिंह का कहना था कि पहली बात तो यह है कि बिरादरी की राजनीति में कोई गैर बिरादरी वाले को नेता कैसे मान लिया जा सकता है। जिन बिरादरियों को पहले से आरक्षण मिला हुआ है, वे दूसरी मजबूत जाति को अपने ऊपर क्यों बैठाना चाहेगी।

हार्दिक पटेल को सलाह देने वालों ने उन्हें गुजरात के आंदोलन को देश भर में ले जाने की सलाह दी होगी। लेकिन केवल एक मजबूत बिरादरी को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन का मुद्दा किसी देश व्यापी आंदोलन का मुद्दा नहीं बन पाएगा। यह जरूर है कि 25 अगस्त को अमदाबाद में हार्दिक ने जो ताकत दिखाई, उससे बड़े-बड़े नेताओं के पसीने आ गए लकिन दिल्ली के जंतर-मंतर या रामलीला मैदान में इस मुद्दे पर दिल्ली की भीड़ जुटानी कठिन होगी। बाहर से भी लोग तब आएंगे, जब दिल्ली में भी एक मजबूत आधार दिखेगा। अभी तुरंत ऐसा होता नहीं दिख रहा है। दिल्ली में लंबा आंदोलन तो दिल्लीवाले ही चला सकते हैं, बाहर आकर कोई एक सभा भर कर सकता है।