शिवसेना का असली बॉस कौन? हालांकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष भी विचाराधीन है लेकिन फिलहाल चुनाव आयोग इस मसले पर एक्टिव होता दिख रहा है। आयोग के पास उद्धव ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे ने शिवसेना पर अपना हक जताया है। ANI के मुताबिक आयोग ने उद्धव की चिट्ठी शिंदे को और शिंदे की उद्धव को भेजकर 8 अगस्त तक जवाब दाखिल करने को कहा है।

चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों को पार्टी में विवाद पर अपना लिखित जवाब देने को कहा है। शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना पर कब्जे को लेकर दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे हैं। शिंदे गुट का कहना है कि उसके पास 55 में से 40 विधायकों और 18 लोकसभा सांसदों में से 12 का समर्थन है। जबकि ठाकरे कैंप कार्यकारिणी का समर्थन अपने साथ होने का दावा कर रहा है।

शिवसेना पर दावा इतना आसान नहीं है। बालासाहेब ठाकरे ने 1976 में शिवसेना के संविधान का मसौदा तैयार किया था। इसमें दर्ज है कि शिवसेना प्रमुख के बाद 13 सदस्यों की कार्यकारी समिति ही पार्टी को लेकर कोई भी निर्णय ले सकती है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, सुधीर जोशी, लीलाधर दाके, सुभाष देसाई, दिवाकर राउत, रामदास कदम, संजय राउत और गजानन कीर्तिकर शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर अभी उद्धव के साथ ही हैं।

ध्यान रहे कि महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे के साथ डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ली थी। उनके शपथ ग्रहण के बाद से मंत्रिमंडल विस्तार का कार्यक्रम अटका हुआ है। विधायकों की सदस्यता पर फैसला होने के बाद ही मंत्रिमंडल के विस्तार की अटकले हैं। महाराष्ट्र के सियासी संकट पर उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की याचिकाओं पर चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच अगली सुनवाई अब 1 अगस्त को करेगी।

मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि शिवसेना पर वर्चस्व कायम करना दोनों गुटों के लिए अहम है। शिवसैनिक बाला साहेब को भगवान सरीखा मानते रहे हैं। उनकी एक आवाज पर वो सारे सूबे में चक्का जाम तक कर देते थे। फिलहाल उद्धव को शिंदे से झटका मिला है। पार्टी उनके हाथ से फिसली तो उनके लिए फिर से पैर जमाना मुश्किल होगा। उधर, शिंदे की दिक्कत ये है कि वो शिवसेना को अपने हाथ में नहीं ले पाए तो जो जमीनी कैडर है वो उनके हाथ से फिसल सकता है।