मीना
आजकल के बच्चे पढ़ते नहीं, सिर्फ डोरेमॉन देखते हैं। रविवार को प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले में बच्चों ने बता दिया कि हम भी सब तरह के हैं, हमारा सामान्यीकरण न करें। छुट्टी के दिन भीड़ इतनी अधिक थी कि पुस्तक प्रेमियों को लाइन लगाकर स्टॉल के अंदर जाना पड़ा। हॉल नंबर 7 में बच्चों के स्टॉल पर इस भीड़ को चीरती हुई अनन्या ढेर सारी किताबें अपने हाथ में समेटे हुए है। अनन्या 7वीं कक्षा में है और रुक्मिणी देवी स्कूल में पढ़ती है। उसे फिक्शन स्टोरी पढ़ना बहुत पसंद है। स्कूल के सिलेबस के साथ ये किताबें कैसे पढ़ लेती हो? इस सवाल पर वह कहती है कि स्कूल की छुट्टियों में खूब सारी किताबें पढ़ती हूं। एनबीटी के स्टॉल में बच्चों की ज्यादा भीड़ वीरगाथा कड़ी की ओर दिखी। इस स्टॉल के एक कर्मचारी ने बताया कि हमने इस स्टॉल में बच्चों और बड़ों दोनों के लिए किताबें रखी हैं लेकिन बच्चों की किताबें ज्यादा खरीदी जा रही हैं।
बाल कोने में रंग-बिरंगे गुब्बारे से सजे-धजे स्टॉल, किताबों के ऊपर की गई कलाकारी बच्चों का मन मोह रही है। पहली कक्षा में पढ़ने वाली पीहू बार-बार अपनी मां को संबोधित कर एक स्टॉल से दूसरे स्टॉल की ओर इशारा कर रही है। पीहू की मां कहती हैं कि इसे किताबें पढ़ना बहुत पसंद है। रात भर कहानिया पढ़ती रहती है। पीहू कभी ‘बिजली के खंभे जैसे लोग’ किताब खरीदने की जिद करती है तो कभी जंगल में मंगल, कभी आसमान में ऊंची उड़ान, कभी हाथी और भंवरे की दोस्तीह्ण। और जो किताब उसे पसंद नहीं है उसे देखकर कहती है ये मेरे काम की नही है। जीवितेष की उम्र अभी केवल 10 साल है और दूसरी में पढ़ता है। अक्षरों की बहुत अधिक समझ न होते हुए भी उसे किताबों के रंग और उन पर की गई चित्रकारी खूब लुभा रही है। जीवितेष के पिता बताते हैं कि इसे कार्टून पात्र अधिक पसंद है।
हरे रंग और बांस की लकड़ियों से सजाए गए पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन का स्टॉल बच्चों और बड़े के आकर्षण का केंद्र बना है। पृथ्वी, पवन चक्की, हरे-भरे पेड़ पौधों के बीच लोग यहां सेल्फी खिंचवाते नजर आए। यह स्टॉल सेल्फी का केंद्र बना। छात्रों ने संस्कृत में श्लोक गाकर पर्यावरण बचाने का संदेश दिया। वनस्पति, जल, जंगल, जमीन, पशु-पक्षी को बचाएं। इससे आपके जीवन में शुचिता आएगी। इस बार पुस्तक मेले की थीम ‘पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन’ है। इसी थीम को ध्यान में रखते हुए बुकचोर स्टॉल पर पहले से पढ़ी गई किताबें थीं। इस स्टॉल को चलाने वाले भावेश बताते हैं कि किताबों को बनाने के लिए बहुत सा कागज इस्तेमाल किया जाता है। हम जो किताबें यहां बेचते हैं वे पाठकों से खरीदते हैं ताकि वे किताबें दोबारा इस्तेमाल में लाई जा सकें। इस तरह से हम पर्यावरण को बचाने का प्रयास करते हैं।