दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष की फाइल दोबारा भेजने के लिए मुख्यमंत्री को खत लिखा है। खत में जंग ने पिछले कई दिनों से चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम का भी बिंदुवार जवाब दिया है।

दिल्ली की आप सरकार ने 20 जुलाई को स्वाति मालीवाल को दिल्ली महिला आयोग का अध्यक्ष व तीन अन्य लोगों को सदस्य बनाया था। इसके लिए उपराज्यपाल की अनुमति न लेने पर राजनिवास से मुख्यमंत्री को इस नियुक्ति पर एतराज जताते हुए खत लिखा गया था। उसके आधार पर महिला आयोग की सदस्य सचिव ने मालीवाल को सरकारी काम न करने की सलाह दी थी। इस पर काफी आरोप-प्रत्यारोप लगे।

विवाद बढ़ने पर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उपराज्यपाल के एतराज पर नाराजगी जताते हुए गुरुवार को मालीवाल की नियुक्ति की मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को खत लिखा और उसकी जानकारी मीडिया को दे दी थी। उस खत से विवाद घटने के बजाए बढ़ ही गया।

उपराज्यापल ने अपने चार पन्नों के खत में कहा है-हर बात में देश के प्रधानमंत्री का जिक्र करना एक केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता। हमारे दफ्तर की ओर से कही गई बात को आपने गलत ढंग से लिया है। केंद्रशासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली में सरकार का मतलब उपराज्यपाल है जो कि देश के राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त किया जाता है। इस तरह से उपराज्यपाल राष्ट्रपति और भारत सरकार का प्रतिनिधि होता है। और इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इसमें मुख्यमंत्री या चुनी हुई सरकार को खारिज किया जा रहा है।

उपराज्यपाल ने कहा-संविधान के मुताबिक, दिल्ली सरकार के सहयोग व सलाह से ही उपराज्यपाल काम करते हैं। हमने आप सरकार के नीतिगत फैसलों को मानने से भी कभी इनकार नहीं किया। लेकिन अगर बिना पूर्व मंजूरी के कोई नियुक्ति व ताबदला होता है तो उसे खारिज किया जा सकता है क्योंकि यह नियमों की अनदेखी है। दिल्ली महिला आयोग के मामले में पूर्व मंजूरी नहीं ली गई। इसलिए उस नियुक्ति पत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है। और कहा है कि नियमों का पालन करते हुए फाइल भेजी जाए।

उन्होंने यह भी साफ किया कि ऐसा कभी नहीं किया गया कि आयोग का दफ्तर सील कर दिया या फाइलें मंगवा लीं। यह सरासर गलत है। उपराज्यपाल ने आप की पहली सरकार व उससे पहले की सरकारों के तमाम उदाहरण देते हुए दोहराया है कि नियम से चलें तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। उन्होंने खत का समापन इस शेर से किया-ये जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने, लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।
खत में याद दिलाई खता
हर बात में देश के प्रधानमंत्री का जिक्र करना एक केंद्रशासित प्रदेश के मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता। हमारे दफ्तर की ओर से कही गई बात को आपने गलत ढंग से लिया है। मैं जरूर कहूंगा कि आपके खत की भाषा ने मुझे बहुत निराश किया है। सार्वजनिक मंच पर होने के कारण आपका खत राष्ट्रीय सम्मान और गरिमा को लेकर चिंता पैदा करता है।… नजीब जंग, उपराज्यपाल