इनकी क्या सुनना
दिल्ली की राजनीति में भाजपा ने चंद सीटों के साथ विधानसभा में वापसी की है। अब इन विधायकों को आगे बढ़ाने के लिए जगह- जगह बैठकें व धरने प्रदर्शन भी हो रहे हैं। पर पार्टी में सक्रिय लोगों को संगठन की बातें सुनने का अधिक इंतजार रहता है ताकि उसका लाभ आगामी चुनावी रणनीति में कर सके। भाजपा के एक विधायक ऐसी ही सभा को जब संबोधित करने के लिए पहुंचे तो वहां पार्टी के एक नेता तपाक से यह कहकर उठकर चल दिए। ‘चलो ये तो जीते हुए नेता हैं।’
नेताओं की तेजी
इन दिनों भाजपा व आम आदमी पार्टी में घमासान चल रहा है और इसका खामियाजा पुलिस को भुगतना पड़ रहा है। हाल ही में आम आदमी पार्टी के खिलाफ एक ही मामले को चमकाने के लिए भाजपा वालों ने दोबार एफआइआर दर्ज करा दी। हाल ही में ‘आप’ नेता दुर्गेश पाठक के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई है। जबकि इसी मामले में एक शिकायत भाजपा विधायक अजय महावर पहले ही दर्ज करा चुके थे। अब पुलिस इस तेजी से परेशान है।
घर वाला बैंक
औद्योगिक महानगर में प्राधिकरण पर अपनों पर करम गैरों पर सख्ती अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी का मामला इन दिनों चर्चा में है। 2011-12 में बैंकों को वाणिज्यिक गतिविधि मानते हुए रिहायशी मकानों में इनके संचालन को अवैध माना गया था। उस दौरान दर्जनों की संख्या में रिहायशी भूखंडों पर चलने वाले बैकों को प्राधिकरण ने सील करने का अभियान चलाया था। तब बैंकों के लिए प्राधिकरण वाणिज्यिक भूखंडों की योजना निकाली थी।
काफी बड़ी संख्या में बैंकों ने इन भूखंडों को खरीदकर शाखाएं खोली थीं। समय बीतने के साथ धीरे-धीरे फिर से रिहायशी मकानों में बैंक शाखाएं खुलनी शुरू हुई। वर्तमान में करीब एक दर्जन से अधिक मुख्य मार्गों पर स्थित रिहायशी मकानों में बैंक शाखाएं संचालित हैं। बताया जाता है जिन रिहायशी मकानों में बैंक शाखाएं संचालित हैं, वे अधिकांश प्राधिकरण अधिकारियों या उनकी कृपा पात्र लोगों के हैं। सवाल है कि वर्तमान में कैसे रिहायशी भूखंडों में बैंक शाखाएं संचालित करने की अनुमित दी गई है। यदि अनुमति दी गई तो पहले क्यों सील की कार्रवाई हुई। बेदिल को जवाब नहीं
मिल सका।
बड़े साहब का दर्द
पुलिस विभाग के सबसे बड़े अधिकारी का पद कांटो भरा ताज साबित हुआ है। नियुक्ति के बाद से ही उनकी परीक्षा हो रही है। रातो रात सीआरपीएफ से दिल्ली पुलिस की कमान उस वक्त दी गई जब उत्तर-पूर्वी दंगे से दिल्ली जल रही थी। उसके बाद तुरंत कोरोना के मामले शुरू हो गए। कोरोना अभी चल ही रहा है कि किसान आंदोलन शुरू हो गया। रात दिन सड़क पर बिना खाए पिए सुरक्षा व्यवस्था देखते हुए आयुक्त लगातार दौड़ते दिख रहे हैं। दिन और रात में किसान आंदोलन के चलते बार्डर के चक्कर लग रहे हैं। अब क्या करें, वर्दी की ड्यूटी ही ऐसी है। अपनों की खबर भी लेने का मौका नहीं देती। -बेदिल
