मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को 2019 का सेमीफाइनल कहा जा रहा है। 12 नवंबर को मध्य प्रदेश के लोग मतदान करने के साथ ही देश की राजनीति और दो दिग्गज राजनेताओं का भविष्य तय करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार व चुनाव विश्लेषक गिरिजा शंकर का कहना है कि मध्य प्रदेश का चुनाव भारतीय राजनीति के लिए अहम मोड़ साबित होगा। यहां सिर्फ दो पार्टियां ही नहीं, दो नेताओं की भी बात है। गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘पहले नेता हैं मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। वो चौथी बार चुनाव जीत जाते हैं तो भाजपा की राजनीति में यह अहम मुकाम साबित होगा। ऐसी ही स्थिति कांग्रेस के नेता कमलनाथ की है। अगर वे मध्य प्रदेश में चुनाव जीत गए तो पार्टी में उनकी हैसियत दूसरे नंबर पर हो जाएगी, मनमोहन सिंह की तरह। कांग्रेस का मध्य प्रदेश में जीतने का मतलब है कांग्रेस का भारतीय राजनीति में फिर से उभरना। और कांग्रेस का यह उभरना मध्य प्रदेश से होता है तो कमलनाथ कांग्रेस में दूसरे नंबर पर होंगे। लेकिन कमलनाथ हार गए तो उनकी राजनीति पर पूर्णविराम लग जाएगा’।

कांग्रेस ने शिवराज सिंह के मुकाबिल कमलनाथ को रखा। एक के पास 15 साल से राज्य के लोगों से जुड़े रहने और दूसरे के पास राज्य से बाहर रहने का तमगा है। तो 15 साल के इस अंदर-बाहर के अंतर को देखते हुए कमलनाथ का दांव क्या सही फैसला है? इस सवाल पर गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘कमलनाथ की दिक्कत यह है कि वे राज्य की राजनीति में कभी रहे नहीं। मध्य प्रदेश से उनकी पहचान सिर्फ छिंदवाड़ा के सांसद के तौर पर ही जुड़ी है। मध्य प्रदेश से नावाकिफ होना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। उनके लिए मध्य प्रदेश की नब्ज पकड़ना बहुत बड़ी चुनौती है। कांग्रेस ने यह फैसला करने में देर कर दी। जहां 15 साल से भाजपा का शासन है, वहां अचानक से आप बाहरी को कमान सौंप देते हैं। उन्हें बहुत कम समय मिला।

गिरिजा शंकर कांग्रेस के इस फैसले का सकारात्मक पक्ष दिखाते हुए कहते हैं कि कमलनाथ के आने के बाद से कांग्रेस में गुटबाजी बंद तो नहीं हुई है लेकिन कम होती जरूर दिख रही है। वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे हैं, इसके साथ ही प्रोटेम स्पीकर भी हैं। पहले अगर कोई फैसला लेना होता था तो कौन किससे बात करे, इसी में देर हो जाती थी। बराबरों में अगुआ कौन वाली समस्या आती थी। अब जब कमलनाथ शीर्ष नेतृत्व के करीब हैं तो उन्हें बहुत तरह के असमंजसों का शिकार नहीं होना पड़ता है। लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति से नावाकिफ होना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो सकती है’। गिरिजा शंकर कहते हैं कि कमलनाथ की अग्निपरीक्षा होगी टिकटों का बंटवारा। उम्मीदवारों के चेहरे सामने आने के साथ ही कमलनाथ की कामयाबी या नाकामयाबी सामने आ जाएगी।

कमलनाथ को कांग्रेस की मजबूरी बताते हुए गिरिजा शंकर कहते हैं, ‘कमलनाथ ने ही एक साक्षात्कार में कहा था कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 15 साल तक हारने का कारण दिग्विजय सिंह का 15 साल का शासन रहा है। कांग्रेस ही दिग्विजय के दस साल को अपने लिए नकारात्मक बता रही है तो फिर उन्हें हाशिए पर ही होना था। सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को यहां कार्यकर्ता अगुआ मानने को तैयार नहीं होते। अब यह दिक्कत नहीं है। मध्य प्रदेश में राहुल जाते हैं तो उनके एक तरफ ज्योतिरादित्य सिंधिया तो दूसरी तरफ कमलनाथ होते हैं।

भाजपा और कांग्रेस के जमीनी हालात पर बात करते हुए गिरिजा शंकर कहते हैं कि भाजपा और कांग्रेस जिस दिन अपने उम्मीदवार तय कर देगी उसी दिन इस राज्य का चुनावी परिणाम भी घोषित किया जा सकता है। एंटी इन्कंबैंसी के सवाल पर गिरिजा शंकर सीधे कहते हैं कि जिस दिन भाजपा अपने उम्मीदवार तय कर देगी और सारे टिकट नए चेहरों को दिए जाएं तो उसी दिन सरकार की सारी एंटी इन्कंबैंसी खत्म हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘भाजपा में एंटी इन्कंबैंसी अलग तरह की है। यह सरकार के खिलाफ कम और मुख्यमंत्री के खिलाफ और भी कम है। स्थानीय विधायक व प्रशासन स्तर पर लोगों का गुस्सा है। अहम यह है कि शिवराज सिंह को यह अहसास हो गया कि उनकी लोकप्रियता कम हो गई है। यह अहसास होते ही वे भूल सुधार के लिए निकल पड़े। वे युद्ध स्तर पर यात्राएं और अन्य तरह के जनसंपर्क कर रहे हैं। चुनाव में तकलीफ पहुंचाने वाले मुद्दे होते हैं। उन्होंने सवर्ण, दलित जैसे मुद्दों का रुख अमीर-गरीब और खुशहाली की ओर मोड़ दिया है’।

भाजपा और कांग्रेस के चुनाव अभियान की तुलना करते हुए गिरिजा शंकर साफ कहते हैं कि गाय, गोशाला, राम और राहुल गांधी को शिवभक्त साबित करने का मुद्दा कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएगा। वहीं भाजपा मंदिर-मस्जिद की बात कम और अमीर-गरीब व नए मध्य प्रदेश की बातें ज्यादा कर रही है। आरक्षण के मसले पर वे कहते हैं कि यहां यह देखना सबसे अहम होगा कि बहुजन समाज (ओबीसी) किसके साथ जाएगा। आरक्षण के मसले पर दोनों पार्टियां खुल कर अपना पक्ष नहीं रख रही हैं कि वे सवर्ण के साथ हैं कि दलितों के साथ। गिरिजा शंकर ने कहा, ‘गौरतलब है कि आरक्षण का बिल सारी पार्टियां साथ लेकर आई थीं, लेकिन आज इसे लेकर सबको पाला पड़ गया है।

अभी दोनों पार्टियां कह रही हैं कि वे दलितों के साथ हैं। लेकिन सवर्ण किसके साथ रहेंगे, दलित किसके साथ रहेंगे से ज्यादा आज सबसे अहम है कि ओबीसी किसके साथ रहेंगे। बिना ओबीसी के सवर्ण अकेले हैं तो कुछ नहीं कर सकते। ओबीसी अगर एकजुट होकर अपनी भूमिका निभाते हैं तो चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होंगे। भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि वह ओबीसी को अपने साथ रखे’। गिरिजा शंकर कहते हैं कि मध्य प्रदेश का इस बार का चुनाव बहुत कुछ 1998 जैसा है। दिग्विजय सिंह जब दोबारा आए थे तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि वे वापसी करेंगे। उस वक्त कोई लहर नहीं थी, किसी के पक्ष में कोई माहौल नहीं था, एंटी इन्कंबैंसी थी। इस बार भी मध्य प्रदेश में वही हाल है कि किसी के पक्ष में कोई लहर नहीं। उन्होंने टिकटों के बंटवारे पर सबसे ज्यादा जोर देते हुए कहा कि एक बार विधायकों के चेहरे सामने आने के साथ ही मध्य प्रदेश की सियासत का समीकरण भी साफ हो जाएगा।