दलितों को अपने पक्ष में करने की राजनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर महज कुछ घंटों के उपवास और उपवास में बैठने से पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और कुछ अन्य नेताओं के नाश्ता करने का फोटो आने के बाद तमाम सवाल उठने लगे हैं। करीब तीन साल से अजय माकन अध्यक्ष हैं और इस दौरान दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के कुशासन के तमाम अवसरों का भरपूर लाभ न उठा पाने से उनकी नेतृत्व क्षमता पर संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के निर्देश पर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत अनेक नेताओं को साथ लाने से पहले दीक्षित ने ही चुनाव जीतने के बजाय केवल मत का औसत बढ़ने पर सवाल उठाए थे।

अप्रैल 2017 के दिल्ली नगर निगम चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने पर माकन ने पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी जिसे राहुल गांधी ने नहीं स्वीकारा था। तब चुनाव से पहले दिल्ली कांग्रेस में भूचाल आया था जब पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली समेत अनेक वरिष्ठ नेता माकन पर आरोप लगाकर पार्टी से अलग हुए और डा. अशोक वालिया जैसे दिग्गज नेता अलग होते-होते रह गए। यह अलग बात है कि लवली कुछ ही महीनों में कांग्रेस में लौट आए और वालिया ही नहीं, शीला दीक्षित, जय प्रकाश अग्रवाल जैसे नेता भी मंचों पर दिखने लगे।

लंबे समय तक दिल्ली में सरकार चलाने वाली कांग्रेस 2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद हाशिए पर चली गई थी। दिल्ली के इतिहास में पहली बार 2015 के चुनाव में कांग्रेस को दस फीसद से कम वोट मिले थे। उस चुनाव में कांग्रेस ने अचानक माकन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। तब प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली थे। वे विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुए। चुनाव के बाद उन्हें हटाकर माकन को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।

कांग्रेस के वोटों पर ही रेकार्ड 67 सीटें जीतने वाली आप में घमासान शुरू हुआ और दनादन लोग उससे अलग होने लगे। कांग्रेस थोड़ी सी संभली। 2016 के निगमों के 13 सीटों के उपचुनाव में भी चार सीट लेकर कांग्रेस ने वापसी की। 13 अप्रैल 2017 को राजौरी गार्डन सीट के उपचुनाव में न केवल आप हारी बल्कि उसके उम्मीदवार को दस हजार वोट मिले। कांग्रेस के मत के औसत में 21 फीसद उछाल आया और यह 33 फीसद पर पहुंच गया। लेकिन अप्रैल 2017 के निगम चुनाव में कांग्रेस को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली। कारण बगावत बनी, जिसे रोका जा सकता था। वोट फीसद बढ़े बिना भाजपा तीसरी बार निगम चुनाव जीती। उसे 36 फीसद वोट मिले। आप को निगम चुनाव में 2015 को विधानसभा चुनाव के करीब आधा 26 फीसद और कांग्रेस को 22 फीसद वोट मिले।

बवाना विधानसभा उपचुनाव में आप की जीत और कांग्रेसी उम्मीदवार के तीसरे नंबर पर आने से पार्टी के हौसले फिर टूट गए। जिन वर्गों का वोट कांग्रेस को मिलता था उन्होंने आप को वोट दिया। कांग्रेस के नेता यह जानते हैं कि उनके मतदाताओं में अल्पसंख्यक तभी उससे जुड़ेंगे जब उन्हें एहसास होगा कि कांग्रेस ही दिल्ली में भाजपा को हरा सकती है। कांग्रेस के परंपरागत मतदाता दलित और कमजोर वर्ग के लोग भी आप के साथ जुड़ गए हैं। मौजूदा माहौल में कांग्रेस के लिए उन्हें अपने पाले में लाना कठिन काम है।
जिन वर्गों के वोट से कांग्रेस सालों चुनाव जीतती रही है, वे ही कांग्रेस से नहीं जुड़ पा रहे हैं। कांग्रेस को सालों चुनाव जिताने वालीं शीला दीक्षित को सालों कांग्रेस ने उपेक्षित किया। देर-सबेर कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हुआ तो उन्हें पार्टी ने फिर से अहमियत देनी शुरू कर दी है। भले दिल्ली कांग्रेस के ज्यादातर नेता मंचों पर इकट्ठा दिखने लगे हैं लेकिन कांग्रेस की वापसी तभी मुमकिन होगी जब वे परंपरागत मतदाताओं को फिर जोड़ पाएं।