गुरुवार को दिल्ली की राजनीति में भूचाल जैसी घटना देखने को मिली। राजनीतिक गलियारा दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के इस्तीफे के फैसले के बाद अटकलों और कयासों के बीच गर्म रहा। अगला उपराज्यपाल कौन होगा? क्या अगला उपराज्यपाल केंद्र के इशारे पर संघ का होगा फिर इसके यह इस्तीफा प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर हुआ है? दिल्ली में प्रचंड बहुमत से 2015 में आई आप सरकार के साथ शुरू हुई ‘प्रशासनिक और राजनीतिक रस्साकशी’ पर विराम लगेगा? या यह कोई नया मोड़ है? बहरहाल चर्चाओं का बाजार गर्म है। कयासों के दिग्गज तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। कुछ हद तक तो सुप्रीम कोर्ट के जनवरी के फैसले पर निर्भर होगा, साथ ही दिल्ली की राजनीति अब क्या करवट लेती है यह अगले उपराज्यपाल की घोषणा के बाद ही तय होगा। इन सबके बीच इस्तीफे के बाद केजरीवाल सरकार की तरफ से नजीब जंग को भविष्य के लिए ‘शुभकामनाएं’ दी गईं, लेकिन, दोनों के बीच के रिश्ते में जो सबसे अहम शब्द याद रखे जाएंगे वह है ‘जंग’। इस ‘जंग’ की एक बानगी विभिन्न मंचों से समय-समय पर हुई केजरीवाल सरकार और नजीब जंग के बीच तल्ख बयानबाजी में देखी जा सकती है।
‘जंग बनाम केजरीवाल’ में सबसे अहम मोड़ रहा 4 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला। जिस पर नजीब जंग ने कहा, ‘यह ऐतिहासिक फैसला है, इससे न नजीब जंग की जीत हुई है और न अरविंद केजरीवाल की हार। यह संविधान की जीत है।’ लेकिन जंग अपनी वरीयता जताने से नहीं चूके, ‘कोर्ट के फैसले के मद्देनजर दिल्ली सरकार को अब अपने कई फैसले सुधारने पड़ेंगे।’ इस पर दिल्ली सरकार ने पूछा, ‘लोकतंत्र के सामने बड़ा सवाल है कि दिल्ली में ‘इलेक्टेड’ लोगों का या ‘सेलेक्टेड’ लोगों का शासन हो?’
हाई कोर्ट के फैसले के कुछ ही दिन बाद जंग ने शुंगलु कमिटी का गठन कर दिल्ली सरकार के फैसले से संबंधित फाइलों की समीक्षा शुरू कर दी, साथ ही एक टीवी साझात्कार में विवादित बयान दिया, ‘मैं दिल्ली विधानसभा को भंग करने के विचार के विरोध में नहीं हैं, यदि ऐसा कोई प्रस्ताव मेरेपास आता है।’ केजरीवाल सरकार ने इस पर देश में आपात लगाने के लिए जमीनी हकिकत खंगालने की कोशिश की संज्ञा दी। जंग बनाम केजरीवाल जंग का तल्ख चेहरा हाल ही में दिल्ली महिला आयोग में सदस्य सचिव की नियुक्ति मामले में अरविंद केजरीवाल के ट्वीट में दिखा, ‘अपने आका मोदी और अमित शाह के कदमों का पालन करते हुए उपराज्यपाल नजीब जंग हिटलर की तरह बर्ताव कर रहे हैं। नजीब जंग ने उपराष्ट्रपति बनने के लिए अपनी आत्मा को मोदी को बेच दी है। पर मोदी कभी मुसलिम को उपराष्ट्रपति नहीं बनाएंगे, जंग जो मर्जी कर लें।’
नजीब जंग की तरफ से बयानबाजी कम और उनके प्रशासनिक निर्णयों के कारण विवाद ज्यादा हुए। जिसपर केजरीवाल सरकार ने भी शब्दों की खूब बौछार की। पिछले साल जून में केजरीवाल ने कहा था, ‘जंग भाजपा के पोलिंग एजंट की तरह काम कर रहे हैं, एलजी हाउस भाजपा का दूसरा मुख्यालय है, यदि अमित शाह का चौकीदार भी उन्हें बुलाए तो वह रेंगते हुए जाएंगे।’ इस पर जंग की संक्षिप्त टिप्पणी रही कि ‘ईश्वर उन्हें माफ करे क्योंकि वह नहीं जानते हैं कि वह क्या कह रहे हैं।’
हाल ही नवंबर में एक निजी चैनल के मंच से जंग ने कुछ दार्शनिक अंदाज में कहा, ‘दो साल बाद ‘आप’ आपके सामने होगी, आपका फैसला होगा कि आप ‘आप’ के साथ क्या करेंगे। संविधान को बचाना मेरा धर्म है, पर आप मुझे उसकी व्याख्या करने के लिए नहीं बोल सकते, ये मेरा काम नहीं है, एक ड्रामा चल रहा है, कोशिश है कि हम अपना किरदार सही तरीके से निभाएं।’
शायद अपने ‘किरदार’ के मुताबिक जंग दिल्ली के उपराज्यपल पद से विदा हो लिए। हालांकि, उन्होंने इस्तीफे में अपनी नई भूमिका का जिक्र किया है, लेकिन वास्तव में क्या उनका किरदार यहीं तक सीमित होगा, यह तो केंद्र के सियासी फैसलों पर निर्भर है। लेकिन, ‘हिटलर’, ‘भाजपा के पोलिंग एजंट’ और ‘केंद्र की कठपुतली’ अन्य तमाम तमगों से नजीब जंग को नवाजने वाले अरविंद केजरीवाल सरकार की उत्सुकता का नया विषय है कि उपराज्यपाल की गद्दी पर कौन बैठेगा और जो बैठेगा वह इस ‘जंग’ को किस ओर ले जाएगा।

