अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी का संत समाज में काफी प्रभाव रहा है। उनके संदिग्ध दशा में आत्महत्या कर लेने से पूरा संत समाज स्तब्ध है। वह एक ऐसे संत थे, जिनके अनुयायी सभी दलों के और सभी धर्मों के नेता रहे हैं। यही वजह है कि यूपी में चाहे जिसकी सरकार रही हो, उनका रुतबा हमेशा बरकरार रहा है। सभी दलों के नेता अब भी प्रयागराज आने पर उनसे मिलने उनके मठ या संगम तट स्थित लेटे हनुमान जी के मंदिर पर जरूर आते रहे हैं।
पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, सीएम योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, सपा मुखिया अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव, आजम खान, बसपा नेता सतीश मिश्रा आदि सभी नेता उनके पास आते रहे हैं। इसके अलावा बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं। नरेंद्र गिरी ने खुद को उनके पुत्र के समान बताया था। प्रयागराज के कुंभ मेले में उनकी भूमिका सबसे अधिक होती थी।
सरकार चाहे भाजपा, सपा, बसपा या कांग्रेस की रही हो, लेकिन तैयारियां उनकी देखरेख में ही होती थी। वह अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के अलावा प्रयागराज के लेटे हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी थे। इससे पहले वे निरंजनी अखाड़े के सचिव भी रहे हैं। मार्च 2015 में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव और बाघंबरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरि को सर्वसम्मति से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था। इससे पहले महंत ज्ञानदास अध्यक्ष थे। साल 2019 में उन्हें दोबारा अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था।
नरेंद्र गिरी के निधन के बाद उनके आश्रम पहुंची उनकी छोटी बहन ने बताया कि वह दो बहनों और चार भाइयों में दूसरे नंबर के थे। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही संन्यास का फैसला कर लिया था। उनका जन्म प्रयागराज के छितौना गांव में हुआ था। उनके बड़े भाई गांव में ही रहते हैं, जबकि छोटे भाई गाजियाबाद के एक इंटर कॉलेज में शिक्षक हैं। वह ठीक से लिख भी नहीं पाते थे। किसी तरह 12वीं की पढ़ाई करने के बाद वे घर छोड़ दिए थे। उन्होंने कभी शादी नहीं की।
उनकी बहन ने बताया कि नरेंद्र गिरी कभी भी आत्महत्या नहीं कर सकते हैं। उनके मुताबिक उनके साथ कुछ गलत हुआ है, लेकिन उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया। नरेंद्र गिरी के भतीजे ने पूरे मामले की सीबाईआई जांच कराने की मांग की है।
महंत नरेंद्र गिरी कई बार विवादों में भी फंसे थे। 2004 में जब वह मठ बाघंबरी गद्दी के महंत बने थे, तब उनका सबसे पहला विवाद तत्कालीन डीआईजी आरएन सिंह के साथ हुआ था। यह विवाद काफी चर्चित हुआ था। डीआईजी ने जमीन के विवाद में हनुमान मंदिर के सामने कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन भी किया था। बाद में सीएम मुलायम सिंह यादव ने डीआईजी को निलंबित कर दिया था। इसके अलावा उनके शिष्य आनंद गिरी के साथ भी उनका काफी विवाद रहा है। आनंद गिरी ने महंत पर करोड़ों रुपए के लेनदेन में घपला किए जाने का आरोप लगाया था। 2012 में सपा नेता और हंडिया से विधायक रहे महेश नारायण सिंह के साथ हुआ विवाद भी काफी चर्चा में रहा।