मुख्यमंत्री ने अपने सभी मंत्रियों को पांच महीने पहले जिले का प्रभार सौंपा था। उस वक्त मंत्रियों की यह जिम्मेदारी तय की गई थी कि वे निकाय चुनाव के पहले जिले में कार्यकर्ता स्तर पर मौजूद सभी खामियों को दूर करेंगे। वहीं समाजवादी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता जो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लगातार यह भरोसा दिलाते आ रहे थे कि वे निकाय चुनाव में अपना जिला जीत कर दिखाएंगे। उनकी साख भी दांव पर है।

भाजपा आलाकमान ने निर्देश दिए थे कि निकाय चुनाव के पहले प्रदेश के 25 हजार कमजोर बूथों को दुरुस्त किया जाए। इसके लिए योगी सरकार के मंत्रियों को अलग-अलग जिलों का प्रभारी बना कर भजा गया था। योगी मंत्रिमंडल के लगभग सभी मंत्रियों को ये जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि वे अपने प्रभार वाले जिलों को जीतकर लाएं।

लेकिन निकाय चुनाव के प्रथम चरण में मतदान कम होने से मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों की जान सांसत में है। कम मतदान पर सरकार ने जिलों से जो रिपोर्ट मंगाई है, उसमें इसकी सबसे बड़ी वजह बड़ी संख्या में मतदाताओं का नाम मतदाता सूची से गायब होना बताया गया है। इस बाबत इलाहाबाद के युवा भाजपा नेता निशांत शुक्ला कहते हैं कि एक घर के दस लोगों में दो के नाम तो सूची में थे, लेकिन आठ लोगों के नाम सूची से गायब मिले। जिसकी वजह से मतदाता केंद्र पर आ कर लौट गए।

सूत्रों का कहना है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्रियों को इतनी बड़ी खामी के लिए तलब किया है। जिलों के प्रभार वाले सभी मंत्रियों से पूछा गया है कि इतनी बड़ी चूक की भनक आखिर आप लोगों को कैसे नहीं हुई? इस सवाल का जवाब अब तक कोई मंत्री दे नहीं पाया है। सबने जिला प्रशासन पर इसका दोष मढ़ने की कोशिश की लेकिन वे अपने जवाब से योगी को संतुष्ट नहीं कर सके हैं। सूत्रों का कहना है कि चार मंत्री ऐसे हैं, जिनका मंत्रिपद जाता हुआ उन्हें अभी से नजर आ रहा है।

उधर समाजवादी पार्टी में भी जिला जीत नेताओं की निकाय चुनाव परिणाम आने के बाद पोल खुलनी तय है। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद इन नेताओं ने अपने बड़बोले पन से अखिलेश यादव को प्रभावित करने की कोशिश की जरूर थी लेकिन अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के समक्ष उनकी पोल खुलनी तय मानी जा रही है।

वहीं टिकट न मिलने से पार्टी से बागी हो कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे सैकड़ों नेताओं पर निकाय चुनाव के बाद सपा से बाहर होने की तलवार लटक रही है। सपा के सूत्र बताते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले अखिलेश यादव पूरी गंभीरता से भितरघात की समस्या से लम्बे समय से जूझ रही पार्टी को इस बीमारी से स्थायी निजात दिलाने की कोशिश में हैं।

उत्तर प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की पटकथा लिखने जा रहे हैं। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि आखिर कौन सा राजनीतिक दल इस चुनाव में बाजी मार पाने में कामयाब हो पाता है।