मध्य प्रदेश के सीहोर की बुधनी विधानसभा अपने नाम को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई है। शहरवासियों को कई बार इसके नाम की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। दरअसल, प्रशासनिक दस्तावेजों और गजेटियर में तहसील का नाम बुधनी लिखा है जबकि कई स्थानों पर इसका नाम बुदनी लिखा हुआ है, जिसके चलते कई बार परीक्षार्थियों, अभ्यर्थियों और आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

गौरतलब है कि बुधनी स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विधानसभा है। दरअसल, समस्या यह है कि मतदाता परिचय पत्र में इसका नाम बुधनी लिखा हुआ है तो आधार कार्ड में बुदनी, जिसके चलते अभ्यर्थियों, परीक्षार्थियों और आम जनों को पासपोर्ट के आवेदन या विभिन्न शासकीय संस्थानों में प्रवेश के दौरान समस्या का सामना करना पड़ता है।

नामकरण के लिए लेनी होगी केंद्र सरकार से अनुमति: इस बारे में जानकारी हासिल करने पर पता चला कि 1950 के गैजेटियर में मौजूद सात तहसीलों के अंदर बुधनी के नाम में अंतर है, जिसकी वजह से अलग-अलग सरकारी दस्तावेजों में तहसील का नाम अलग-अलग तरीके से लिखा हुआ है। इस बारे में प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि आधिकारिक तौर पर किसी तहसील का नामकरण करने के लिए राज्य सरकार को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। ऐसे में इस समस्या को सुलझाने के लिए राज्य सरकार को आगे आकर पूरी प्रक्रिया का पालन करना होगा।

इस्स बारे में जानकारी देते हुए पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा ने बताया कि किसी भी शहर का नाम बदलने के लिए उसके कारण के साथ प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार द्वारा केंद्र सरकार को भेजा जाता है। दरअसल, किसी भी केंद्रीय मंत्रालय के कार्यालय में शहर का नाम परिवर्तन करने के लिए केंद्र की अनुमति लेना जरूरी होता है।

निर्विरोध चुनी गई पूरी सरकार: इससे पहले बुधनी के एक शहर शाहगंज ने अनूठा कीर्तिमान स्थापित किया था। यहां शहर की पूरी सरकार निर्विरोध चुनी गई थी। दरअसल, शाहगंज में पार्षद पद के लिए 15 वार्डों में सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के ही प्रत्याशी मैदान में थे। कोई अन्य प्रत्याशी न होने की वजह से सभी को निर्विरोध चुन लिया गया और इस तरह से सभी 15 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पार्षद बन गए।